विषय पर बढ़ें

poker की जुगलबंदी: जब दोस्ताना खेल में चालबाज़ी पकड़ी गई

मित्रवत लेकिन संदिग्ध पोकर खेल का कार्टून-3D चित्रण, मेज पर खिलाड़ी, चिप्स और कार्ड के साथ।
इस जीवंत कार्टून-3D चित्रण के साथ पोकर की दिलचस्प दुनिया में डूबें, जो एक प्रतीत होने वाले मित्रवत खेल का माहौल दिखाता है, जिसमें छिपे हुए इरादे भी हो सकते हैं। क्या फिल का निमंत्रण मज़े की ओर ले जाएगा या भाग्य का मोड़ बनेगा?

कहते हैं न, “जहां पैसा दिखे, वहां चालाकी भी छुपी नहीं रहती।” दोस्तों के साथ poker खेलना वैसे तो मस्ती की बात होती है, लेकिन अगर कोई आपकी जेब हल्की करने की साजिश रचे तो मामला बड़ा दिलचस्प हो जाता है। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें दोस्ती की आड़ में खेला जा रहा था चालबाज़ी का खेल, और आखिर में कैसे एक समझदार खिलाड़ी ने अपने ही अंदाज में छोटी-सी बदला ले लिया।

poker की महफ़िल: दोस्ती या चालाकी?

कहानी की शुरुआत होती है एक फोन कॉल से, जब फिल नाम के सज्जन ने अपने बेटे के पुराने क्रिकेट साथी के पिता को हफ्ते में एक poker गेम के लिए बुलाया। फिल एकदम अपनापन दिखा रहे थे — घर बुलाया, अच्छा संगीत, हँसी-मज़ाक। पहली बार में ही हमारा नायक (रेडिट पोस्ट के लेखक) 25 डॉलर हार गया, लेकिन मज़ा इतना आया कि उसे लगा, “अरे, 25 डॉलर अगर ऐसे हँसी-ठहाकों में चले जाएं तो कोई ग़म नहीं!”

कुछ हफ्तों तक सब ठीक चला, लेकिन फिर धीरे-धीरे खेल के अंदर की चालाकी पर नज़र गई। फिल और उनके साथी ‘गाय’ हमेशा मौजूद रहते, और बाकी खिलाड़ी बदलते रहते। दिलचस्प बात ये थी कि इन दोनों का बैठने का तरीका हमेशा तय रहता—फिल एक सिरे पर और गाय उसके दो-तीन सीट दूर। जब भी ‘डीलर’ बनने की बारी इन पर आती, ये दोनों हमेशा वही जटिल poker वेरिएंट चुनते जिसमें नियम ऐसे होते कि बाकी खिलाड़ियों को ज़्यादा पैसे लगाना पड़ता। और फिर वही पुरानी कहानी, जब बाकी सब fold कर जाते, तो फिल और गाय आपस में पैसा बांट लेते या फिर गाय आख़िरी वक्त पर fold कर देता और फिल की जेब भर जाती।

चाल समझ में आई, फिर भी खेलना क्यों?

यहां तो वही बात हो गई—“सांप भी मर जाए, लाठी भी न टूटे।” हमारे नायक को खेल में गड़बड़ी का शक पहली ही रात हो गया था, लेकिन मज़ा इतना आ रहा था कि वो हर बार लौट आता। कभी थोड़े पैसे हारता, कभी जीतता, लेकिन असली मज़ा तो बाकी खिलाड़ियों के साथ हँसी-ठहाकों में था। एक कमेंट में किसी ने लिखा, “आप bluff कर रहे थे”—वाकई, मज़ा के लिए खेलना भी तो अपने आप में एक bluff ही है!

रेडिट की चर्चा में कई लोगों ने कहा, “इतनी मेहनत बस 50 डॉलर के लिए?” लेकिन असल बात ये है कि कई poker गैंग्स में छोटे-छोटे ‘फिश’ (नए या मासूम खिलाड़ी) को बार-बार बुला कर उनसे पैसे निकलवाए जाते हैं। एक यूज़र ने लिखा, “मेरे पापा भी ऐसे poker पार्टी बुलाते थे जब उन्हें जल्दी पैसे चाहिए होते!” यानी, ये ‘मौहल्ले’ की चाय-शतरंज वाली संस्कृति से कुछ अलग नहीं—बस यहां stakes थोड़े बड़े हैं।

बदले की छोटी-सी चाल: “आ रहा हूँ दोस्त, बस पाँच मिनट में!”

अब आती है असली ‘petty revenge’ की बारी! ये poker गेम हमेशा कम-से-कम चार खिलाड़ियों पर टिका था। जैसे ही फिल ने शुक्रवार को मैसेज किया, “तीन लोग हैं, तुम चौथे बन जाओ, खेल जम जाएगा,” हमारे नायक ने हाँ कर दी। लेकिन असल प्लान कुछ और था—हर आधे घंटे पर नया बहाना, “भैया, बीयर लेने गया हूँ, बस पहुँच रहा हूँ,” “ट्रैफिक फँसा है,” वगैरह-वगैरह। रात भर फिल बेचारे मैसेज करते रहे, और हमारे खिलाड़ी ने तसल्ली से उनकी पूरी शाम खराब कर दी। आखिरकार, फिल ने हार मान ली।

किसी ने कमेंट में लिखा, “ये petty revenge है? बस ना जाकर?” लेकिन भाई, कभी-कभी सबसे मज़ेदार बदला वही होता है जिससे सामने वाले की पूरी प्लानिंग चौपट हो जाए! और यही हुआ—उनकी ‘शिकारी मंडली’ उस रात खाली बैठी रह गई।

poker के पीछे की चाल: जुगाड़ और जुगलबंदी

कई लोगों को शक था कि कहीं कोई शीशे की अलमारी या रिफ्लेक्शन से तो फिल और गाय एक-दूसरे के कार्ड नहीं देख रहे थे। भारत में भी कई बार ताश के पत्तों में चालाकी के किस्से सुनने को मिलते हैं—कहीं कोई पत्ता मोड़ देता है, कोई पान का इक्का छुपा लेता है। बड़े-बड़े कसीनों में भी ‘collusion’ यानी मिलीभगत आम बात है, जैसा कि एक यूज़र ने बताया—“कसीनो को फ़र्क नहीं पड़ता, पैसा तो उनका कट लगता ही है!”

तो अगली बार जब मोहल्ले या ऑफिस की poker पार्टी में कोई बार-बार जटिल गेम्स चुने, अजीब तरीके से बैठे, या हर बार वही दो लोग जीतें—तो समझ जाइए, वहां ‘फिक्सिंग’ का तड़का लगा है।

आख़िरी बात: खेल-खेल में सीख!

कहानी का असली मज़ा ये है कि कभी-कभी छोटी सी बदला भी बड़ा सुकून दे जाता है। हमारे नायक ने न तो किसी का नुकसान किया, न ही कोई हंगामा—बस चुपचाप पत्ते फेंटे और ‘शिकारियों’ की पूरी शाम खराब कर दी। यही तो असली ‘petty revenge’ है—मौका देखकर चौका!

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है? या आप भी किसी मोहल्ला पार्टी में ऐसी कोई चालाकी पकड़ चुके हैं? कमेंट में जरूर बताएं—क्योंकि आखिरकार, हर ताश के खेल में असली पत्ता तो आपके पास ही होना चाहिए!


मूल रेडिट पोस्ट: Suspicious Friendly Poker Game