जब अनुबंध का डंडा दोनों ओर चला: एयरलाइन कर्मचारी ने कंपनी को उसी की भाषा में जवाब दिया
कभी-कभी दफ्तरी ज़िंदगी में नियम-कायदों से ऐसी जंग छिड़ जाती है, जैसे मोहल्ले की गली में बच्चे क्रिकेट की बैटिंग को लेकर उलझ जाते हैं। कोई कहता है “मेरी बारी!” तो दूसरा टस से मस नहीं होता। आज की कहानी भी कुछ ऐसी है—जहाँ कंपनी का अनुबंध और कर्मचारी की जिद, दोनों आमने-सामने आ जाते हैं।
सोचिए, अगर आपका दफ्तर आपसे कहे – “एक ही पार्किंग! और कोई बहस नहीं!” – और जब आप भी उन्हीं की भाषा में जवाब दें, तो क्या होगा? चलिए, जानते हैं इस दिलचस्प दफ्तरिया ड्रामे की पूरी दास्तान।