तकनीकी सहायता में ‘ज्योतिषी’ बनना ज़रूरी है क्या?
सोचिए, आप ऑफिस में बैठकर अपनी चाय की चुस्की ले रहे हैं और तभी फोन की घंटी बजती है। आप मुस्कराकर अपने रटी-रटाए संवाद से शुरुआत करते हैं—“नमस्ते, तकनीकी सहायता में आपका स्वागत है, कृपया अपना पहचान क्रमांक बताइए।” अचानक फोन के दूसरी तरफ से कोई गुस्से में दहाड़ता है, “तुम्हें तो पता ही नहीं कि क्या परेशानी है!” और अगले 15 मिनट तक आप बस सुनते रह जाते हैं, समझ नहीं पाते कि असल समस्या है क्या। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है?
आज की कहानी है उन्हीं तकनीकी सहायता कर्मचारियों की, जिनसे हर कोई उम्मीद करता है कि वे न सिर्फ कंप्यूटर ठीक करेंगे, बल्कि मन की बात भी पढ़ लेंगे!