दफ्तर की राजनीति और 'टी' की लकीर: जब नोट्स ने बचाई नौकरी
हमारे भारतीय दफ्तरों में एक कहावत बहुत चलती है—"काम से काम रखो, बाकी भगवान जाने!" लेकिन क्या हो अगर आपका काम ही आपको भगवान बना दे? आज की कहानी एक ऐसे बंदे की है, जिसने सिर्फ अपनी मेहनत और नोट्स की बदौलत न सिर्फ अपने सहकर्मी की मदद की, बल्कि कंपनी को भी भारी जुर्माने से बचा लिया।
सोचिए, शुक्रवार की शाम, सब घर जाने को तैयार, तभी एक साथी क्रेन के पहिए के बीच फिसल कर घायल हो जाता है। वह जैसे-तैसे घर पहुंचता है, लेकिन असली दिक्कत सोमवार को पता चलती है—उसे टांग में गंभीर चोट है! अब यहां शुरू होती है असली कहानी, जिसमें सरकारी कागज, बॉस की तकरार और एक-एक मिनट का हिसाब सब कुछ बदल देता है।