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हर साल की मेहमानियत: कनाडा से मेक्सिको तक मेनोनाइट्स की अनोखी यात्रा

अल्बर्टा से मेक्सिको की ओर यात्रा करते मेनोनाइट्स का सिनेमाई दृश्य।
इस सिनेमाई चित्रण में मेनोनाइट्स के वार्षिक प्रवास की सुंदरता का अनुभव करें, जो अल्बर्टा से मेक्सिको के लिए छुट्टियों में यात्रा कर रहे परिवारों की परंपरा और भावना को दर्शाता है।

क्या आपने कभी ऐसे मेहमान देखे हैं जो साल में एक बार पूरे परिवार के साथ देश-दर-देश घूमने निकल पड़ते हैं? और वो भी इतने बड़े काफिले में कि होटल वाले भी माथा पकड़ लें! आज हम बात करने जा रहे हैं मेनोनाइट्स की, जो हर साल कनाडा से मेक्सिको और फिर वापस लौटते हैं। इनकी यात्रा जितनी दिलचस्प है, उतनी ही हैरान करने वाली भी। होटल वालों के लिए तो ये मौसम किसी परीक्षा से कम नहीं होता – कभी नकली कार्ड, कभी नकली छूट, और कभी गिनती से दोगुना मेहमान!

तो आइए, इस किस्से में झांकते हैं और जानते हैं, आखिर कौन हैं ये मेनोनाइट्स, क्यों करते हैं ऐसी सालाना यात्रा, और होटल इंडस्ट्री के लोगों को क्यों आ जाती है इनके नाम से पसीना!

मेनोनाइट्स: अमीश जैसे दिखने वाले, पर तकनीक से दोस्ती

मेनोनाइट्स की कहानी बिलकुल किसी गाँव के मेले जैसी है, जहाँ हर कोई अपने पूरे कुनबे के साथ आता है। इनका पहनावा देखिए, तो लगेगा जैसे “अमीश” (Amish) समाज का हिस्सा हैं – महिलाएँ लम्बे कपड़े, सिर ढका हुआ; पुरुष सादी पोशाक में। लेकिन फर्क है – मेनोनाइट्स तकनीक और गाड़ियों का इस्तेमाल करने में हिचकिचाते नहीं। एक कमेंट में किसी ने मज़ाक में कहा, “ये अमीश जैसे दिखते हैं, पर तकनीक में माहिर हैं। सात लोग एक ही कमरे में ऐसे ठूंस लेते हैं जैसे चार्ली के दादा-दादी एक ही बिस्तर में।”

असल में, मेनोनाइट्स की जड़ें मेक्सिको में हैं। 1960 के दशक में कई परिवार मेक्सिको से कनाडा चले गए, पर हर साल छुट्टियों में वापिस अपने रिश्तेदारों और दोस्तों से मिलने मेक्सिको जाते हैं। ये यात्रा बिलकुल वैसी है, जैसे भारत में प्रवासी परिवार हर साल गाँव लौटते हैं – फर्क बस इतना कि इनके साथ 6-8 बच्चों का पूरा जत्था चलता है!

होटल में मेनोनाइट्स: ‘दो बेड’ का मतलब ‘दो कमरे’!

अब आते हैं असली किस्से पर – होटल वालों के लिए ये समय सबसे बड़ा सिरदर्द है। सोचिए, एक परिवार आया और बोला, “हमें दो बेड वाला कमरा चाहिए।” होटल वाला मुस्कुरा कर चाबी दे देता है, पर थोड़ी देर में देखता है – दो माता-पिता, दो महिलाएँ, तीन छोटी लड़कियाँ, दो छोटे लड़के और दो टीनएज लड़के – कुल 10 लोग!

जब होटल मैनेजर ने टोका कि “साहब, एक कमरे में चार लोगों की ही इजाज़त है, बाकी कहाँ सोएंगे?” तो जवाब मिला, “अरे, बच्चे तो नीचे ज़मीन पर भी सो जाएंगे!” होटल वाले ने फायर सेफ्टी का हवाला दिया, और परिवार गुस्से में होटल छोड़ गया। जाते-जाते बोले, “दूसरे होटल तो बच्चों को ज़मीन पर सुला देते हैं, आपको क्या परेशानी है?”

इस पर एक कमेंट में किसी ने खूब चुटकी ली – “ये लोग होटल के ब्रेकफास्ट में भी जुगाड़ करते हैं – सुबह-सुबह लाइन में लगकर खाते हैं, फिर जाते-जाते बचे-खुचे खाने को भी पैक कर जाते हैं!”

नकली कार्ड, नकली छूट – जुगाड़ में माहिर मेनोनाइट्स

पैसे बचाने की कला में मेनोनाइट्स को महारत हासिल है। न क्रेडिट कार्ड रखते हैं, न ऑनलाइन पेमेंट पर भरोसा करते हैं – “सिर्फ़ नकद लेंगे।” होटल वाले अब तो नकद लेना ही बंद कर चुके हैं, क्योंकि कई बार इनके पास नकली नोट निकल आते हैं। मज़े की बात ये कि अक्सर ये खुद ठगे जाते हैं – सीमा पार के दलाल इन्हें नकली नोट थमा देते हैं, और ये बेखबर होटल वालों के पास ले आते हैं।

छूट की बात करें, तो ‘AAA’ या ‘CAA’ जैसी असली-नकली सदस्यताओं के कार्ड भी दिखा देते हैं – कई बार तो पेट्रोल पंप पर किसी ने नकली कार्ड बेच दिया, और ये समझ बैठे कि होटल में छूट मिल जाएगी। एक कमेंट में किसी ने कहा, “ये लोग इतने जुगाड़ू हैं कि सरकारी रेट भी मांग लेते हैं, बस सुना है कि कोई होटल चेक नहीं करता!”

कम्युनिटी की परछाई: अफवाहें, बीमारी, और समाज की असलियत

मेनोनाइट्स की दुनिया भी उतनी ही जटिल है, जितनी किसी भी बंद कम्युनिटी की हो सकती है। कुछ कमेंट्स में लोगों ने चिंता जताई – “इस साल कनाडा और अमेरिका में खसरे (measles) की महामारी फैली, जिसकी शुरुआत अल्बर्टा के मेनोनाइट्स से हुई।” होटल वालों को सलाह दी गई – “अगर मेनोनाइट्स का जत्था आए, तो दो घंटे तक मास्क पहने रहें, बीमारी फैल सकती है।”

वहीं, एक और कमेंट में बड़ा गहरा तजुर्बा साझा किया गया – “ऐसी बंद कम्युनिटी में अपने-पराए का फर्क बड़ा गहरा होता है। बाहरी लोगों को धोखा देना इन्हें गलत नहीं लगता, क्योंकि इनके लिए अपने समाज के बाहर वाले ‘दुनियादारी’ हैं।” एक स्वास्थ्यकर्मी ने लिखा, “हमारे इलाके में ये लोग खुलेआम झूठ बोलते, तरह-तरह के बहाने बनाते हैं – पहली बार सुनकर हैरानी होती है।”

पर पूरी तस्वीर एक जैसी नहीं। कई लोगों ने बताया कि कुछ मेनोनाइट्स बेहद ईमानदार और अच्छे भी होते हैं – बस, भरोसा आँख मूंदकर न करें, जैसे हम हिंदुस्तान में किसी अनजान को तुरंत घर में नहीं बैठाते!

मेनोनाइट्स का समाज – विविधता और सच्चाई

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। कुछ लोगों ने बताया कि सभी मेनोनाइट्स एक जैसे नहीं – “मेरे दोस्त मेनोनाइट हैं, कॉलेज प्रोफेसर हैं, मॉडर्न कपड़े पहनते हैं, सिर्फ़ एक बच्चा है, और लाइफस्टाइल बिलकुल आम लोगों जैसी है।” असल में, इनका समाज भी कई रंगों का है – कुछ पुराने रीति-रिवाजों वाले, कुछ बिलकुल नए ज़माने के।

तो अगली बार जब आप किसी ‘अजीब’ से दिखने वाले, बड़े परिवार के होटल आने की कहानी सुनें, तो याद रखिए – हर समाज के अपने रंग, अपनी कमजोरियाँ और अपनी अच्छाइयाँ होती हैं। और होटल वाले? उनकी तो किस्मत ही ऐसी है – कभी नकली नोट, कभी खचाखच भरे कमरे, और कभी हँसी-ठहाके!

निष्कर्ष: तो क्या आप मेनोनाइट्स के साथ रह सकेंगे?

मेनोनाइट्स की यात्रा हमें ये सिखाती है कि दुनिया बड़ी रंगीन है – हर समाज में अच्छे-बुरे लोग होते हैं, और होटल वालों को हर किस्म के मेहमान झेलने पड़ते हैं। कभी-कभी थोड़ा सतर्क रहना ही बेहतर है, पर साथ ही इंसानियत और समझदारी बनाए रखना भी ज़रूरी है।

आपका क्या अनुभव रहा है? क्या आपके यहाँ भी ऐसे मेहमान आते हैं? कमेंट में ज़रूर बताइए, और अगर आपको ये किस्सा मज़ेदार लगे, तो शेयर करना न भूलें!


मूल रेडिट पोस्ट: Annual Migration of the Mennonites