होटल रिसेप्शन पर ‘Whyyyy notttt?’ : जब ग्राहक बन गया सिरदर्द!
कभी-कभी हमारी नौकरी हमें ऐसे अनुभव दे जाती है, जिनका ज़िक्र करते ही हँसी भी आ जाती है और गुस्सा भी। खासकर जब आप होटल की रिसेप्शन पर बैठी हों, तो हर तरह के मेहमान मिलते हैं – कोई नम्र, कोई चुपचाप, तो कोई ऐसा कि भगवान बचाए! आज मैं आपको एक ऐसी ही घटना सुनाने जा रही हूँ, जिसे सुनकर आप भी कहेंगे – “भैया, ये लोग कहाँ से आते हैं?”
तो बात कुछ दिन पुरानी है। मैं होटल की रिसेप्शन पर बैठी थी, जैसे रोज़ की तरह। तभी एक युवक आया, उम्र से मेरी ही बराबरी का। आते ही बड़ा ताव से बोला – “मैम, आपके होटल में क्या-क्या सुविधाएँ हैं? कौन-कौन से कमरे हैं?” अब ये तो रोज़ का सवाल है, मैंने भी बड़े संयम से सब समझा दिया। फिर पूछता है – “कमरे अच्छे हैं क्या?” सच कहूँ तो हमारे होटल के कमरे कोई पाँच सितारा तो हैं नहीं, लेकिन ईमानदारी से जवाब देते हुए मैंने कहा, “पहली मंज़िल पर एक कमरा खाली है, चाहें तो देख सकते हैं।”
अब जनाब का मूड अचानक बदल गया। मुस्कराकर बोलता है – “क्या आप भी मेरे साथ अंदर चलेंगी?” मुझे तो जैसे झटका सा लगा! ऐसे सवाल तो फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं, असल ज़िंदगी में तो सुनते ही मुँह बिगड़ जाता है। मैंने तुरंत कहा, “नहीं।”
अब असली ड्रामा तो यहाँ से शुरू हुआ। भाईसाहब ने बच्चे जैसी आवाज़ में, जैसे कोई टॉफी न मिलने पर बच्चा मचल जाए, बोला – “Whyyyy notttt?” (क्यों नहीं?) ऐसा लगा मानो कोई आठ साल का बच्चा जिद कर रहा हो। मैंने फिर साफ़-साफ़ ‘ना’ कह दिया। लेकिन साहब की जिद्द इतनी कि पूरे आठ बार यही सवाल अलग-अलग अंदाज़ में दोहराया! अंत में मेरा भी सब्र जवाब दे गया। मैंने कह दिया, “भाई, अपनी इज़्ज़त की खुद चिंता कर लो, और मत शर्मिंदा हो।”
लेकिन किसे समझाना? आखिरी बार फिर पूछ ही लिया! फिर अचानक पूछता है – “यहाँ चेक-इन के लिए उम्र कितनी होनी चाहिए?” मैंने कहा – “इक्कीस साल।” सुनते ही बोला – “फिर तो मेरे काम का नहीं!” और बड़बड़ाते हुए चला गया, जाते-जाते मुझे भला-बुरा भी कह गया।
अब आप ही बताइए, ऐसे मेहमानों का क्या किया जाए? एक तरफ़ ग्राहक सेवा का दबाव, दूसरी तरफ़ समाज की सोच का बोझ! यही हालात तो आजकल हर कामकाजी महिला के साथ होते हैं। औरतें जहाँ भी काम करें, ऐसी हरकतें सहनी ही पड़ती हैं। जैसे एक पाठिका ने लिखा – “महिलाओं को लगता है, जैसे पुरुषों को हमारे मुस्कुराने और शरीर पर अधिकार है।” सोचिए, कहाँ तक गिरावट आ गई है!
किसी ने बड़ी सही बात कही – “कुछ लोगों को लगता है कि लड़की अगर सामने है, तो उसका हाँ करना उनका हक है। जैसे वो कोई चीज़ खरीदने आए हैं!” ऐसे लोगों की परवरिश ही शायद ठीक नहीं हुई। एक पाठक ने तो यहाँ तक कहा, “मेरी माँ होती, तो मुझे ऐसा करते देख पीट देती!”
हिंदी समाज में भी कई बार महिलाएँ खुद को बचाने के लिए नकली मंगलसूत्र या सिन्दूर लगा लेती हैं, ताकि सामने वाला ‘समझदार’ बन जाए। लेकिन कुछ लोग तो फिर भी बाज नहीं आते। एक बहन ने लिखा – “मैं नकली शादी की अंगूठी पहनती हूँ, इससे कुछ बेवकूफ तो दूर रहते हैं, लेकिन सब नहीं।”
सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि ऐसे लोगों को खुद का व्यवहार कितना बचकाना लग रहा है, इसका अंदाजा ही नहीं होता। एक और पाठक ने बड़ी चालाकी से कहा, “इस तरह के लोगों को ज़रा सा भी मना करो, तो तुरंत बदतमीजी पर उतर आते हैं।” और तो और, कई बार तो होटल के सुरक्षा नियमों का सहारा लेना पड़ता है। किसी ने सुझाव दिया – “तीसरी बार पूछे, तो सीधा पुलिस बुलाने की धमकी दे दो।”
सोचिए, एक सीधी-सादी नौकरी, जिसमें बस लोगों को कमरा दिखाना और बुकिंग करना है, वहाँ भी महिलाओं को कितनी सावधानी रखनी पड़ती है। इस कहानी की नायिका ने तो बड़ी हिम्मत दिखाई और डटकर जवाब दिया। उसने खुद कहा – “मुझे बुरा लगा, लेकिन कम से कम मैं किसी बचकाने, रेंगते आदमी की तरह बर्ताव नहीं कर रही थी!”
इस पर एक पाठिका ने बढ़िया टिप्पणी की – “उसने तुम्हें जो नाम दिया, उसे गर्व से अपनाओ – ‘B.I.T.C.H’ यानी ‘Babe In Total Control of Herself’ (पूरी तरह अपने आप पर काबू रखने वाली महिला)!” क्या शानदार जवाब है!
अंत में यही कहना चाहूँगी – हर जगह, हर पेशे में ऐसे लोग मिलेंगे। लेकिन अगर महिलाएँ एकजुट होकर, दृढ़ता से ‘ना’ कहना सीख जाएँ, और समाज भी ऐसे लोगों को आईना दिखाए, तभी बदलाव आएगा। अगली बार जब कोई ‘Whyyyy notttt?’ जैसा सवाल करे, तो मुस्कुराकर कहिए – “क्योंकि मैंने मना कर दिया, और यही काफी है!”
अब आप बताइए – क्या आपके साथ या आपके जान-पहचान में कभी ऐसी कोई घटना घटी है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा करें। और हाँ, अगली बार होटल में जाएँ, तो रिसेप्शन पर बैठी बहन का आदर जरूर करें, क्योंकि उनकी मुस्कान के पीछे कई अनकही कहानियाँ छुपी होती हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: “Whyyyy nottttt?”