होटल रिसेप्शन पर गुस्सैल मेहमान और असली ‘स्लैप ऑन द रिस्ट’ की कहानी
होटल में काम करने वाले कर्मचारियों की जिंदगी जितनी चमकदार बाहर से दिखती है, अंदर से उतनी ही रंगबिरंगी और जटिल होती है। कभी कोई मेहमान गुलाब जैसा मुस्कुराता है, तो कभी कोई कांटे की तरह चुभ जाता है। आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ एक ऐसी कहानी, जिसमें एक मेहमान की नाराज़गी ने होटल स्टाफ के धैर्य की परीक्षा ले ली, और बात जा पहुँची एक हल्की-फुल्की ‘थप्पी’ तक!
सुबह-सुबह की परेशानी: जब नींद में खलल पड़े
मान लीजिए आप होटल में रिसेप्शन पर बैठे हैं, चाय की चुस्कियाँ ले रहे हैं और सुबह का माहौल शांति से भरपूर है। तभी आपके फोन पर एक मेहमान का गुस्से से भरा मैसेज आता है — “इतनी सुबह-सुबह ये निर्माण कार्य क्यों? क्या आपको शांति नाम की कोई चीज़ पता है?” इस कहानी के हमारे ‘Mr. Miserable’ यानी ‘श्री दुखी’ जी, दो दिन से लगातार बाहर के शोर से परेशान थे।
अब बताइए, अगर आपके घर के बाहर सड़क पर काम चल रहा हो, तो क्या आप कॉल करके होटल के मालिक से कहेंगे, “भाई साहब, बाहर के मजदूरों को बोलिए, थोड़ा धीरे हथौड़ी चलाएँ”? लेकिन श्री दुखी जी का गुस्सा किसी और लेवल पर था।
“यहाँ सब मेरी ज़िम्मेदारी है क्या?” – होटल कर्मी की व्यथा
रिसेप्शनिस्ट ने बड़े प्यार से जवाब दिया, “महोदय, मुझे तो कोई निर्माण कार्य यहाँ नहीं दिख रहा, वैसे आपके कमरे की खिड़की मुख्य सड़क की ओर है, जहाँ पिछले कई हफ्तों से सड़क मरम्मत चल रही है।” मगर श्री दुखी जी ने मानने से इनकार कर दिया— “मैं देख सकता हूँ, नीचे मजदूर हथौड़ा चला रहे हैं!”
कई बार समझाने और खुद जाकर जाँच करने के बाद भी रिसेप्शनिस्ट को न तो आवाज़ मिली, न कोई मजदूर दिखा। मगर मेहमान का गुस्सा कम नहीं हुआ। फोन पर बहस इतनी बढ़ गई कि रिसेप्शनिस्ट की सहकर्मी को भी अपनी शांति खोनी पड़ी। आखिरकार, हमारे रिसेप्शनिस्ट ने फोन अपने हाथ में लिया और कहा, “मैं अभी-अभी वहाँ से आ रहा हूँ, कुछ नहीं दिखा।” जवाब में श्री दुखी बोले— “क्या आपको आकर दिखाना पड़ेगा?” और फोन पटक दिया।
आमने-सामने की भिड़ंत: तस्वीरों की जंग और वह ‘थप्पी’
कुछ ही मिनटों में श्री दुखी जी गुस्से से भरे होटल लॉबी में पहुँचे। सीधे रिसेप्शन पर आकर फोन सामने तान दिया, जिसमें एक पिकअप ट्रक की फोटो दिखाई— “ये दिख रहा है आपको?” रिसेप्शनिस्ट ने शांति से कहा, “जी, ट्रक तो है, पर कोई आवाज़ या मजदूर नहीं दिखे।”
अब श्री दुखी जी पूरे उबाल पर आ गए— “आप लोग सीरियस नहीं हैं! जाकर उन लोगों से कहिए, काम बंद करें!” रिसेप्शनिस्ट ने जवाब दिया, “महोदय, मैं सिर्फ रिसेप्शन संभालता हूँ, बाहर के कामों पर मेरा कोई अधिकार नहीं है।” ऊपर से उन्होंने कागज़ और पेन माँगा, और रिसेप्शनिस्ट ने मैनेजर का विज़िटिंग कार्ड भी आगे बढ़ा दिया।
बस यहीं खेल हो गया— श्री दुखी जी ने गुस्से में कार्ड को झटकते हुए रिसेप्शनिस्ट के हाथ पर हल्का सा ‘स्लैप’ मार दिया। रिसेप्शनिस्ट ने सख्ती से कहा, “महोदय, कृपया मेरे डेस्क से दूर हो जाइए!” और श्री दुखी जी अपना नोट लिखकर चले गए।
ग्राहक सेवा या आत्मसम्मान? – पाठकों की राय और होटल कर्मी का अनुभव
अब यहाँ पर सवाल उठता है— कहाँ तक ग्राहक सेवा, और कब आए आत्मसम्मान की बारी? कई पाठकों ने Reddit पर लिखा, “अगर मेरे साथ ऐसा हुआ होता, तो उसी पल मेहमान को होटल से बाहर का रास्ता दिखा देता!” एक अन्य ने कहा, “ऐसा व्यवहार बिल्कुल बर्दाश्त नहीं—कंपनी को सूचित कर देना चाहिए था कि उनके मेहमान ने स्टाफ को हाथ लगाया।”
कुछ ने भारतीय अंदाज में सलाह दी— “भाई, ग्राहक भगवान सही, पर गुस्सैल भगवान का भी इलाज है!” एक और कमेंट बड़ा मजेदार था, “क्या कभी किसी ने सोचा है, जो आवाज़ हमें ना सुनाई दे, वो शायद किसी के लिए तूफ़ान हो?” लेकिन कोई भी श्री दुखी जी की हरकत को सही नहीं ठहरा सका।
स्वयं कहानी के लेखक ने भी लिखा कि उन्होंने मामले को और बढ़ाने की जगह शांति से निपटाना बेहतर समझा—“हर लड़ाई लड़ने लायक नहीं होती, कभी-कभी बस जाने देना ही ठीक है।”
निष्कर्ष: होटल की दुनिया में हर रोज़ नया ड्रामा!
होटल की ड्यूटी वैसे ही तनावपूर्ण होती है, ऊपर से ऐसे गुस्सैल मेहमान के साथ धैर्य रखना किसी तपस्या से कम नहीं। कभी-कभी हम सबको अपने काम में ऐसे ‘श्री दुखी’ मिल ही जाते हैं, जो अपनी सारी कुंठा हमारे ऊपर निकालना चाहते हैं।
अगर आप भी कभी होटल में जाएँ, तो याद रखिए—सड़क पर चल रहे निर्माण के लिए होटल कर्मी को दोषी न ठहराएँ, और किसी के हाथ पर थप्पड़ मारना तो बिलकुल भी नहीं!
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा अजीबोगरीब अनुभव हुआ है? कमेंट में जरूर बताइए। और हाँ, अगली बार होटल में गुस्सा आए तो गहरी साँस लीजिए, रिसेप्शनिस्ट भी इंसान हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: A slap on the wrist...literally