होटल रिसेप्शन पर आया 'जर्सी वाला' मेहमान, जिसने सबका दिन बना भी दिया और बिगाड़ भी!
होटल की रिसेप्शन डेस्क पर काम करना वैसे ही आसान नहीं होता, ऊपर से अगर कोई अजीबोगरीब मेहमान आ जाए तो समझिए मसाला पूरा हो गया! आज मैं आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रही हूँ, जिसमें एक मेहमान ने होटल स्टाफ और बाकी मेहमानों को ऐसा तजुर्बा दिया, जिसे वे जिंदगी भर नहीं भूलेंगे।
कहते हैं ना, “सौ सुनार की, एक लोहार की।” इस घटना में तो एक की जगह सौ मिर्ची वाले मेहमान ने एंट्री मारी, और सबकी शांति भंग कर दी!
पहली मुलाकात: 'साबुन दीजिए, और वो वाली रिसेप्शनिस्ट कहाँ है?'
कुछ हफ्ते पहले की बात है। एक सज्जन (या कहें 'महाशय') कई दिनों से होटल में आते-जाते दिख रहे थे। कभी-कभी लगा कि शायद मेहमान हैं, क्योंकि सुबह-सुबह फ्री ब्रेकफास्ट का मजा लेते और फिर रिसेप्शन डेस्क की तरफ बढ़ते।
एक दिन, वे बड़े आराम से आकर बोले, “जरा पीछे से साबुन ला दोगी?” अब होटल में काम करने वालों को पता है कि ऐसे सवालों के पीछे अक्सर कोई और मंशा छुपी होती है। मैंने जैसे ही पीछे जाने को कदम बढ़ाया, महाशय बड़े अजीब लहजे में पूछ बैठे, “वो दूसरी रिसेप्शनिस्ट और मैनेजर आज हैं क्या? दोनों बड़े अच्छे हैं!”
अब भला, कौन बताता कि कौन कब ड्यूटी पर है! मैंने विनम्रता से कहा, “माफ कीजिए, मैं ये जानकारी नहीं दे सकती।” उनकी शक्ल देखने लायक थी—जैसे शकर में नमक डाल दिया हो। खैर, वापस आई तो वे गायब, और उनकी जगह एक 'मित्र' खड़े थे, जिन्हें साबुन पकड़ा दिया और मामला खत्म।
दूसरी मुठभेड़: 'तुम्हारी शक्ल तो अच्छी नहीं है!'
कुछ दिन बाद फिर वही जनाब बाहर से आते दिखे—इस बार टूथब्रश मांगने के बहाने। मैंने सोचा शायद मुफ्त चाहिए, तो सीधा कह दिया, “माफ कीजिए, मुफ्त नहीं है!” फिर ध्यान आया, शायद खरीदना चाहते हों, तो हँसते हुए बताया, “हमारे पास बिक्री के लिए है!”
जनाब ने ऐसे आँखें घुमा दीं, जैसे मैंने उनका बड़ा अपमान कर दिया हो। चुपचाप बाहर चले गए। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। कुछ सेकंड बाद फिर लौटे और बड़ी बेहयाई से बोले, “तुम मुझे कभी पसंद नहीं आई! तुम्हारा वाइब अच्छा नहीं है! तुम बदसूरत हो!”
मैं तो सुनकर सन्न रह गई। बस 'ओके' बोलकर हँसी में टाल दिया। सोचिए, किसी के पास कितना फालतू वक्त है!
होटल की लॉबी में हंगामा: 'जर्सी वाला' स्टाइल
हफ्ते भर बाद, मैं एक दूसरे मेहमान की बुकिंग में लगी थी। पीछे एक बहुत ही प्यारी महिला और उनकी माँ खड़ी थीं। तभी अचानक शोर मचने लगा। देखा तो वही 'जर्सी वाला' महाशय किसी औरत पर चिल्ला रहे हैं—“तेरे बाल कितने गंदे हैं! तू भी गंदी है! यही स्टाइल है जर्सी का!”
(अब जर्सी मतलब अमेरिका का एक राज्य, लेकिन भाई साहब जैसे हरियाणा के छोरे 'जाट हूँ मैं जाट' कहते हैं, वैसे ही ज़ोर-ज़ोर से जर्सी का राग अलाप रहे थे!)
मैंने हस्तक्षेप किया और कहा, “आप और मेहमानों से ऐसे बात नहीं कर सकते, प्लीज बाहर जाइए।” बस, उनका गुस्सा मुझ पर फूट पड़ा—“आई होप यू डाई ऑफ कैंसर, बी*च!” (मतलब—“मैं दुआ करता हूँ, तुम्हें कैंसर हो जाए!”) बार-बार चिल्ला रहे थे, जैसे कोई बद्दुआ की फैक्ट्री हो।
सच कहूँ, मेरी तो हँसी छूट गई—इतनी घटिया बात भी कोई मुंह से कहता है? आखिरकार वे बाहर चले गए। पुलिस तक बुलानी पड़ी, पर तब तक महाशय फुर्र हो चुके थे।
कम्युनिटी की प्रतिक्रिया: “भाई, ये तो दिमागी मरीज लगते हैं!”
रेडिट पर इस किस्से को पढ़ने के बाद लोगों ने भी जमकर राय दी। एक यूज़र ने लिखा, “ऐसे लोगों को होटल में घुसने ही मत दो, चाहे वे मेहमान हों या नहीं—DNR (Do Not Rent) लिस्ट में डाल दो!” किसी ने कहा, “लगता है या तो दिमागी बीमारी है या नशे का असर है।”
एक मजेदार कमेंट था—“ये 'जर्सी' वाले स्टाइल में नहीं होता, भाई!” वैसे ही जैसे हमारे यहाँ दिल्ली के नाम पर हर बात नहीं होती। कई लोगों ने होटल स्टाफ की हिम्मत की तारीफ की कि उन्होंने बदतमीजी का डटकर जवाब दिया।
एक पाठक ने लिखा, “कैंसर जैसी बीमारी तो दुश्मन को भी न हो। ऐसी बद्दुआ देना बहुत गलत है।” सच बात है, हमारे यहाँ भी कहते हैं—“किसी के लिए बुरा मत सोचो, बुराई अपने आप लौट आती है।”
होटल में ऐसे मेहमानों से कैसे निपटें?
होटल, दुकान, ऑफिस—हर जगह ऐसे अजीबोगरीब लोग मिल जाते हैं। जरूरी है कि हम अपनी गरिमा और पेशेवर व्यवहार बनाए रखें। होटल कर्मचारी ने जिस तरह शांति और संयम दिखाया, वो काबिल-ए-तारीफ है।
अगर आपके आस-पास भी कोई इस तरह की हरकत करे, तो तुरंत सीनियर या सुरक्षा गार्ड को सूचित करें। हमारे देश में भी अब होटल और मॉल्स में 'ब्लैकलिस्ट' और 'नो एंट्री' नियम लागू हो रहे हैं।
और हाँ, ये 'जर्सी वाला स्टाइल' वाली बात बिलकुल मत मानिए—हर जगह अच्छे और बुरे दोनों किस्म के लोग होते हैं, जगह से नहीं, इंसानियत से पहचान बनती है!
निष्कर्ष: आपके साथ कभी ऐसा हुआ है?
दोस्तों, ये थी होटल की उस रिसेप्शनिस्ट की कहानी, जिसने न सिर्फ खुद को संभाला, बल्कि बाकी मेहमानों को भी सुरक्षित महसूस कराया।
क्या आपके साथ भी कभी किसी ग्राहक ने ऐसी बेहूदा हरकत की है? क्या आपने भी ऐसे किसी 'जर्सी' वाले या अपने ही मुहल्ले के 'खतरनाक' मेहमान का सामना किया है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर लिखिए—शायद आपकी कहानी भी किसी की मुस्कान या सीख बन जाए!
आखिर में, होटल हो या घर—इंसानियत और तहजीब ही सबसे बड़ा 'स्टाइल' है, है कि नहीं?
मूल रेडिट पोस्ट: 'Die of Cancer you stupid b*tch!'