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होटल रिसेप्शन की ड्यूटी: खेल माता-पिता और वो 'जल्दी चेक-इन' की जिद!

डेस्क पर बैठे एक तनावग्रस्त कर्मचारी का कार्टून 3डी चित्र, जो लंबे घंटों और अप्रत्याशित शिफ्ट से अभिभूत है।
इस जीवंत कार्टून-3डी चित्र में, हम एक थके हुए कर्मचारी को उनके डेस्क पर देखते हैं, जो अप्रत्याशित रूप से लंबे शिफ्ट की चुनौती का सामना कर रहे हैं। जैसे इस ब्लॉग पोस्ट में, कभी-कभी जिंदगी हमें अप्रत्याशित चुनौतियाँ देती है, और यह इस दबाव को कैसे संभालते हैं, इस पर निर्भर करता है।

सोचिए, आप सुबह-सुबह होटल के रिसेप्शन पर ड्यूटी कर रहे हैं, चाय की चुस्की तक नहीं ली और मोबाइल पर मैनेजर का मैसेज आता है – “आपका रिप्लेसमेंट आज नहीं आ रहा, क्या आप रात 9 बजे तक काम कर सकते हैं?” पहले तो माथा ठनका, फिर सोचा – चलो, एक्स्ट्रा घंटे और ओवरटाइम का पैसा कौन छोड़ता है! लेकिन 14 घंटे की शिफ्ट? हे भगवान!

वैसे भी, होटल का माहौल आज कुछ ज्यादा ही गरम था – चार-पाँच अलग-अलग ग्रुप्स, एक के बाद एक, सुबह-सुबह FFA कन्वेंशन से चेक-आउट कर रहे थे, और अब रात के लिए 80 नए चेक-इन! छोटे से होटल में ये तो जैसे पूरा होटल ही उलट-पुलट गया। ऊपर से फोन की घंटी रूके ही नहीं, हर दूसरी कॉल – “भैया, जल्दी चेक-इन करा दो, बेटे को मैच के लिए आराम चाहिए!”

जब हर कोई कहे – “मेरा बेटा बहुत स्पेशल है”

भारत में भी देखा होगा, जब स्कूल या कॉलेज का क्रिकेट/फुटबॉल टूर्नामेंट होता है तो माता-पिता बच्चों को ऐसे तैयार करके लाते हैं, जैसे देश का भविष्य उन्हीं के बेटे के सिर पर टिका हो। वैसे ही, होटल की रिसेप्शनिस्ट बहनजी को भी फोन पर एक मोहतरमा ने घेर लिया – “मेम्बरशिप है हमारे पास, जल्दी कमरा दीजिए, मेरा बेटा तो खेल का हीरा है!”

रिसेप्शनिस्ट का जवाब – “मैडम, सभी को लिस्ट में डाल रहे हैं, 3 बजे से पहले पक्का नहीं कह सकते।”
महिला – “अरे बेटा, ज़िंदगी में कुछ भी पक्का नहीं है, मैं तो होटल आते हुए एक्सीडेंट भी कर सकती हूँ! फिर तुम क्या बोल रहे हो?”

अब भला, ऐसे अजीब जवाब का क्या जवाब दें!
रिसेप्शनिस्ट ने भी वही पुराना राग अलापा – “आपका नाम लिस्ट में डाल दिया है, कोशिश करेंगे।”
मैडम ने फोन पटक दिया!

खेल माता-पिता – होटल वालों के लिए सिरदर्द क्यों?

एक लोकप्रिय कमेंट में किसी ने लिखा, “अगर बेटे को सच में आराम चाहिए, तो कार में सीट पीछे करके सुला दो, होटल में जल्दी घुसने की ज़रूरत क्या है?”
दूसरे ने चुटकी ली – “ये ‘आराम’ दरअसल होटल की लॉबी में बैठकर बीयर पीने और बच्चों को पूल में मस्ती करने देने का बहाना है!”
बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारे यहाँ शादी-ब्याह में बच्चे नीचे भागते-फिरते रहते हैं और बड़ों की पार्टी ऊपर चलती है।

खुद पोस्ट करने वाले ने बताया – “वीकेंड पर हमारे होटल में नॉन-स्पोर्ट्स गेस्ट बेचारे तंग आ जाते हैं, माता-पिता लॉबी में मस्त और बच्चे होटल में धमा-चौकड़ी!”
किसी और ने कहा, “अगर इतनी जल्दी थी तो एक दिन पहले ही कमरा बुक कर लेते!”
एक और कमेंट – “आपकी प्लानिंग की कमी, मेरी इमरजेंसी कैसे हो गई?”

ग्राहक भगवान है...पर रिसेप्शनिस्ट भी इंसान है!

हमारे देश में भी कहावत है – ‘ग्राहक भगवान होता है’, लेकिन भगवान भी जब सिर चढ़ जाए तो कोई नारायण नहीं, नागराज बन जाता है।
एक कमेंट में किसी ने सलाह दी, “हर बार ‘हो सकता है’ मत बोलो, सीधा मना कर दो। लोग ‘शायद’ को भी ‘हाँ’ समझ लेते हैं।”
एक और मज़ेदार कमेंट – “अगर आप इतनी ही टेंशन लेती रहीं, तो जॉब छोड़कर अस्पताल का रास्ता पकड़ लेंगी। खुद को बचाइए, नियमों का पालन कीजिए और बाकी सबको भगवान पर छोड़ दीजिए।”

एक कमेंट में तो सलाह थी – “अगर कोई बार-बार तंग करे, तो बोल दो – अभी एक मिनट, किसी बच्चे ने कुछ गिरा दिया है, आपको बाद में कॉल करता हूँ!”
ऐसी जुगाड़ भारतीय ऑफिसों में भी खूब चलती है!

होटल की असली जंग – खेल टीम बनाम बाकी मेहमान

अक्सर देखा गया है, होटल में खेल टीमों के आने से बाकी मेहमानों की नींद हराम हो जाती है – कोई हॉल में दौड़ता-चिल्लाता है, कोई दरवाजा पटकता है।
एक सज्जन ने अपनी आपबीती सुनाई – “ऑपरेशन के बाद अस्पताल से होटल में आराम करने गया था, लेकिन खेल टीमों का शोर सुनकर आंख खुलती रही। अब तो होटल वाले हर ग्रुप से लिखवाकर कोड ऑफ कंडक्ट साइन करवाते हैं।”

निष्कर्ष: रिसेप्शनिस्ट का धैर्य और हमारी जिम्मेदारी

तो भाइयो-बहनो, अगली बार जब आप होटल जाएं और रिसेप्शनिस्ट बोले – “सर, अभी कमरा तैयार नहीं है”, तो थोड़ा सब्र रखें।
हर किसी का काम आसान नहीं होता, और कभी-कभी सामने वाले की मजबूरी भी समझिए।
जैसा एक कमेंट में लिखा था – “सौ साल बाद कोई नहीं पूछेगा, आपने जल्दी चेक-इन कराया या नहीं। लेकिन आपकी विनम्रता लोगों को हमेशा याद रहेगी।”

अंत में, होटल रिसेप्शनिस्ट को ढेर सारी शुभकामनाएँ – आप धैर्य रखें, जॉब बदलनी है तो बदलें, लेकिन अपना आत्मसम्मान कभी न खोएं।
और आप सब – कभी होटल में ‘खास’ बनने की जिद करें, तो रिसेप्शन पर खड़े इंसान की हालत जरूर याद करिएगा!

आपकी राय क्या है? क्या कभी आपको भी ऐसे अजीब ग्राहक या रिसेप्शनिस्ट से दो-चार होना पड़ा है? कमेंट में जरूर बताइए!


मूल रेडिट पोस्ट: This 🤏🏻 close to losing my cool.