होटल रिसेप्शनिस्ट की हिम्मत और पुलिस की बेरुख़ी: जब परेशान करने वाला मेहमान बना सिरदर्द
होटल में काम करने वाले लोग अक्सर कहते हैं – “यहाँ हर दिन एक नई कहानी मिलती है।” लेकिन सोचिए, जब कहानी में रोमांच के साथ-साथ डर और हिम्मत भी मिल जाए? आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ एक ऐसी रिसेप्शनिस्ट की कहानी, जिसने न सिर्फ़ अपने काम का फ़र्ज़ निभाया, बल्कि एक बदतमीज़ मेहमान को उसकी औकात भी दिखा दी।
यह किस्सा है एक महिला रिसेप्शनिस्ट का, जो होटल के फ़्रंट डेस्क पर काम करती थी। उसका सामना हुआ एक ऐसे ‘नियमित’ मेहमान से, जिसकी बदतमीज़ी और अभद्रता की कोई सीमा ही नहीं थी। लेकिन असली ट्विस्ट तब आया जब पुलिस भी हाथ खड़े कर बैठी।
जब मेहमान बना मुसीबत की जड़
हमारे देश में तो मेहमान को भगवान् माना जाता है – “अतिथि देवो भवः” – लेकिन कभी-कभी कोई-कोई मेहमान राक्षस से कम नहीं लगता। इस महिला रिसेप्शनिस्ट के होटल में ऐसा ही एक आदमी बार-बार आता था। उसके व्यवहार में महिलाओं के प्रति गज़ब की नफरत और गुस्सा था।
हर बार जब वो आता, रिसेप्शनिस्ट उसे मुस्कुराकर “कैसा रहा आपका दिन?” पूछती। अब यह तो हर होटल कर्मचारी का रूटीन होता है। लेकिन जनाब को ये भी नागवार गुज़रा! एक दिन तो सीधा बोल पड़ा, “मुझसे मत बोलो।” रिसेप्शनिस्ट ने भी जवाब दिया, “मैं आपकी नौकर नहीं, अपना काम कर रही हूँ।” बस, उस दिन से उसकी आँखों में रिसेप्शनिस्ट की दुश्मनी और भी गहरी हो गई।
धीरे-धीरे वह आदमी अपनी हदें पार करने लगा – कभी बेमतलब की बातें, कभी शारीरिक टिप्पणियाँ, कभी इंस्टाग्राम पर पीछा करना, और कभी-कभी तो खुलेआम बदतमीज़ी। यहाँ तक कि उसने रिसेप्शन पर खड़े-खड़े उसकी तस्वीरें लेकर ताने मारे – “तू तो फोटो में अलग दिखती है, सब एडिटिंग है।”
पुलिस आई... और चली गई: न्याय का मज़ाक
अब आप सोचेंगे कि जब मामला इतना बिगड़ गया, तो होटल मैनेजमेंट या पुलिस ने कुछ तो किया होगा! लेकिन हुआ ठीक उल्टा। मैनेजर ने तो सीधे-सीधे कह दिया – “ग्राहक चले गए तो नुकसान हो जाएगा, ऐसे ही मैनेज कर लो।”
आख़िरकार, तंग आकर रिसेप्शनिस्ट ने पुलिस को बुला लिया। उम्मीद थी कि पुलिसवाले उस बदमाश को होटल से बाहर कर देंगे। लेकिन पुलिस ने भी ऐसी बहानेबाज़ी दिखाई कि सुनकर गुस्सा आ जाए! बोले, “हमारा काम नहीं है, सिक्योरिटी बुलाओ।” अब बताइए, छोटे होटल में सिक्योरिटी कहाँ से लाएँ?
रेडिट पर एक कमेंट करने वाले (u/SkwrlTail) ने तो बड़ा मज़ेदार ताना मारा – “अगर मैं थाने जाकर हंगामा करूँ और निकलने से मना कर दूँ, तब क्या करोगे?” यानी, पुलिस जब अपने दफ्तर में हो तो सब चलता है, बाहर किसी और की परेशानी हो तो पल्ला झाड़ लो!
अंत भला, तो सब भला? नहीं!
कहानी में असली मोड़ तब आया जब उस आदमी ने होटल की डिपॉजिट देने से मना कर दिया। अब नियम के अनुसार, बिना डिपॉजिट के कमरा नहीं मिलता। रिसेप्शनिस्ट ने उसे सीधा मना कर दिया और होटल से बैन कर दिया। उधर महाशय ने ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, लेकिन रिसेप्शनिस्ट ने भी दरवाज़ा बंद कर लिया।
उसने मैनेजर को ईमेल लिखा – लेकिन मैनेजर ने साफ़ कह दिया, “हाँ, अब आप होटल में नहीं आ सकते।” आखिरकार, रिसेप्शनिस्ट ने अपनी नौकरी छोड़ दी, लेकिन जाते-जाते उस शैतान को सबक सिखा गई।
रेडिट पर एक और कमेंट u/Langager90 ने लिखा – “अब वो यही सोचेगा कि किसी औरत ने उसे होटल से निकलवाया। और वो बिलकुल सही है, क्योंकि असली गड़बड़ तो उसी में थी!”
क्या सीखा? हिम्मत और सिस्टम की पोल
इस किस्से से दो बातें निकलकर सामने आती हैं – एक, किसी भी महिला को अपने आत्मसम्मान के लिए आवाज़ उठानी चाहिए, चाहे सामने कितना भी बड़ा सिरफिरा हो। दूसरी, हमारे सिस्टम में अब भी बहुत-सी खामियाँ हैं। पुलिस भी कभी-कभी “चलता है” वाले रवैये में रहती है, जिससे पीड़ित को और ज़्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है।
कुछ पाठकों ने सुझाव भी दिया कि ऐसे मामलों को सोशल मीडिया या न्यूज़ चैनलों तक ले जाना चाहिए, ताकि सिस्टम की नींद खुले। एक मज़ाकिया कमेंट था कि "कर्मा ऐसे लोगों के साथ खूब खेलने वाला है!"
आपकी राय क्या है?
क्या आपने भी कभी किसी ऑफिस, होटल या दुकान में ऐसे किसी ग्राहक या सहकर्मी का सामना किया है? क्या आपको भी सिस्टम की लापरवाही का शिकार होना पड़ा है? नीचे कमेंट में अपनी कहानी ज़रूर साझा करें।
और याद रखिए – “अगर आप सही हैं, तो किसी की भी चिल्लाहट आपके आत्मसम्मान से बड़ी नहीं।”
मूल रेडिट पोस्ट: Called the cops nothing happened