होटल रिवॉर्ड पॉइंट्स नहीं मिले – भेदभाव या गलतफहमी? एक मज़ेदार होटल कथा
भाई साहब, अगर आप कभी होटल में ठहरे होंगे तो रिवॉर्ड पॉइंट्स का लालच आपको भी हुआ ही होगा! सोचिए, हर बार ठहरने पर कुछ अंक मिलें और फिर उन अंकों से कभी फ्री रात, कभी डिनर या कभी अपग्रेड! लेकिन क्या हो जब ये पॉइंट्स न मिलें, और ऊपर से ग्राहक आपको भेदभाव का आरोप भी लगा दे? आज की कहानी ऐसी ही एक अजीबोगरीब होटल घटना की है, जहाँ फ्रंट डेस्क कर्मचारी की रात की नींद हराम हो गई थी, सिर्फ इसलिए कि एक मेहमान को अपने रिवॉर्ड पॉइंट्स नहीं मिले।
होटल रिवॉर्ड्स का झोलझाल – कंप्यूटर बोलेगा तभी मिलेगा
कहानी का सीन सेट होता है एक होटल में, जहाँ एक महिला नवंबर की 3 तारीख से 30 तारीख तक रुकीं, फिर दोबारा लॉन्ग टर्म बुकिंग पर चेकइन किया। रात के एक बजे, यानी जब आम आदमी सपनों में खोया रहता है, तब मैडम ने फ्रंट डेस्क पर फोन किया—"भैया, मेरे रिवॉर्ड नंबर सही हैं क्या?" कर्मचारी ने चेक किया, सब कुछ ठीक था।
अब अगला सवाल, "मुझे पिछले स्टे के पॉइंट्स क्यों नहीं मिले?" जवाब साफ था—"मैडम, आप थर्ड पार्टी से बुकिंग की थीं, इनके नियमों के अनुसार ऐसे मामलों में पॉइंट्स नहीं मिलते।" मैडम का पारा चढ़ गया—"ये तो मेरे बस की बात नहीं थी, मेरी कंपनी ने बुकिंग की थी, अब मेरा क्या कसूर?" कर्मचारी ने बड़ी शांति से समझाया, "कंपनी हो या आप, थर्ड पार्टी बुकिंग में पॉइंट्स नहीं मिलते। चाहें तो कंपनी में शिकायत डाल दीजिए।"
"रंगभेद" का इल्ज़ाम और होटल स्टाफ की उलझन
अब कहानी में ट्विस्ट आया जब मैडम नीचे काउंटर पर आईं और अचानक बोलीं, "मैंने अपनी गोरी सहकर्मी को मैसेज किया, उसे तो पॉइंट्स मिल गए, मुझे क्यों नहीं?" कर्मचारी सन्न! अब यह मामला रिवॉर्ड पॉइंट्स से निकलकर समाजशास्त्र का हो गया। कर्मचारी ने बार-बार समझाया कि मामला बुकिंग के तरीके का है, रंग का नहीं! स्टाफ ने सॉरी भी बोला, मैनेजर का कार्ड भी दे दिया, लेकिन मैडम का गुस्सा कम न हुआ।
सच कहें तो भारत में भी कई बार ग्राहक, जब बात उनकी उम्मीद के मुताबिक न हो, तो "भेदभाव" या "जान-बूझकर टालना" जैसे आरोप लगा देते हैं। यहाँ भी वही हाल था। कर्मचारी सोच रहा था—"भैया, मैं तो बस नियम बता रहा हूँ, मेरी मर्जी से थोड़ी पॉइंट्स मिलते हैं!"
होटल कम्युनिटी के मज़ेदार तजुर्बे और टिप्पणियाँ
अब बात करें ऑनलाइन कम्युनिटी की, तो एक साहब ने बढ़िया लिखा—"भाई, किसी भी होटल चेन में थर्ड पार्टी बुकिंग पर पॉइंट्स नहीं मिलते। ये होटल वालों की साजिश नहीं, बल्कि उनकी मार्केटिंग रणनीति है, ताकि लोग सीधे होटल से बुकिंग करें।"
एक और कमेंट था—"मालिक, अगर कंपनी बुकिंग कर रही है, तो रिवॉर्ड्स भी कंपनी को मिलने चाहिए, ग्राहक को नहीं।" भारत में भी अक्सर ऑफिस टूर पर लोग इसी चक्कर में रहते हैं—कंपनी के पैसों से पॉइंट्स अपनी जेब में डाल लें!
कुछ लोगों ने तो ये तक कह दिया—"अगर कोई रंगभेद का कार्ड खेलता है, तो सीधा कह दो, मैनेजर से बात कर लो। या फिर मज़ाक में बोलो—'हम आपकी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पा रहे, चाहें तो दूसरी जगह चले जाएँ!'"
एक होटल कर्मचारी ने साझा किया—"भाई, क्या पता आपकी सहकर्मी को थर्ड पार्टी के अपने रिवॉर्ड्स मिल गए हों, होटल वाले नहीं। ये गलतफहमी भी हो सकती है।"
तकनीकी गड़बड़ और होटल स्टाफ की मजबूरी
असल में, होटल रिवॉर्ड्स का सिस्टम एकदम कंप्यूटराइज्ड है—फ्रंट डेस्क कर्मचारी को वैसा ही करना पड़ता है, जैसा सॉफ्टवेयर बोले। चाहे भारत हो या विदेश, बड़े होटल ब्रांड्स में काउंटिंग, रिवॉर्ड्स, सब अपने-अपने नियम से होते हैं। यहाँ भी कर्मचारी ने वेबसाइट से नियम निकालकर देख लिया, उसमें साफ लिखा था—"थर्ड पार्टी बुकिंग पर पॉइंट्स नहीं मिलेंगे।"
फिर भी, कर्मचारी ने कोशिश कर डाली—मिसिंग स्टे का क्लेम फाइल कर दिया, ताकि ऊपर से जवाब आए और मामला शांत हो। आखिरकार, कॉर्पोरेट ऑफिस से वही जवाब आया जो कर्मचारी पहले ही दे चुका था—"थर्ड पार्टी बुकिंग, नो पॉइंट्स!"
निष्कर्ष: ग्राहक हमेशा सही नहीं होता!
इस कहानी से एक बात तो साफ है—हर समस्या में भेदभाव ढूँढना ठीक नहीं। कभी-कभी नियम ही ऐसे होते हैं कि सामने वाले के हाथ बँधे होते हैं। होटल कर्मचारी भी आखिर इंसान है, उसका भी दिल है, और नियम-कायदे का झंझट है।
प्यारे पाठकों, अगली बार जब आप होटल में ठहरें और रिवॉर्ड पॉइंट्स का लालच करें, तो बुकिंग का तरीका ज़रूर देख लें। और अगर पॉइंट्स न मिलें, तो बेचारे फ्रंट डेस्क वाले पर गुस्सा न निकालें—कंप्यूटर का क्या भरोसा, वो तो कमाल ही कर देता है!
आपका क्या अनुभव रहा है होटल रिवॉर्ड्स को लेकर? कभी आपको भी ऐसा कोई झोल महसूस हुआ? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, और अगर कहानी पसंद आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलिए!
मूल रेडिट पोस्ट: not receiving points = racism?