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होटल रिवॉर्ड्स: परिवार का नहीं, हर सदस्य का अपना है खेल!

होटल चेक-इन डेस्क पर पुरस्कार सदस्यता नियमों से जूझती एक परिवार की एनीमे-शैली की चित्रण।
इस जीवंत एनीमे दृश्य में, एक परिवार होटल में पुरस्कार सदस्यता के साथ अप्रत्याशित चुनौतियों का सामना कर रहा है। उनके चेहरे की भावनाएँ ब्रांड नीतियों के जटिलताओं को हास्य और निराशा के साथ व्यक्त करती हैं, यह याद दिलाते हुए कि निष्ठा कार्यक्रम कभी-कभी पारिवारिक यात्रा को जटिल बना सकते हैं।

होटल में चेक-इन करने का अपना ही मज़ा है—कभी लाइन में खड़े-खड़े लोग आपस में बातें करते हैं, तो कभी रिसेप्शन पर चाबी मिलने के लिए जुगाड़ भिड़ाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि होटल के इनाम (रिवॉर्ड्स) अकाउंट्स का खेल भी कुछ-कुछ शादी-ब्याह के रिश्तों जैसा हो गया है? “जो मेरा है, वो तुम्हारा है”—पर होटल वालों की नज़र में ये इतना आसान नहीं!

जब पति-पत्नी का अकाउंट बना ‘फैमिली पैक’

अभी कुछ दिन पहले की बात है, एक बुजुर्ग महिला होटल में आईं। बड़े आत्मविश्वास से आईडी दी, लेकिन कंप्यूटर पर रिजर्वेशन तो उनके पति के नाम पर था। रिसेप्शन वाले भैया ने पूछा, “मिस्टर सीमेंट साथ में हैं?” उन्होंने मुस्कराकर जवाब दिया, “नहीं-नहीं, वो तो घर पर हैं। ये तो हमारा फैमिली अकाउंट है, सब इसी से बुक करते हैं।”

अब रिसेप्शनिस्ट का मन तो किया माथा पीट ले, पर दिखाया नहीं। बड़े शांति से बोले, “मैडम, अगर आपके पति यहाँ नहीं हैं, तो उनसे फ़ोन पर कंफर्मेशन लेना पड़ेगा।” अब तक हंसती-खिलखिलाती मैडम थोड़ा खिन्न हो गईं—“अरे! ये क्या मज़ाक है, वो मेरे पति हैं।” फिर भी फोन लगाया, और पति देव से कहने लगीं, “ये लोग कह रहे हैं कि जब तक आप हाँ नहीं बोलेंगे, चाबी नहीं देंगे!” उधर से भी आवाज़ आई, “हाँ-हाँ, ये सब बेकार की बातें हैं।” रिसेप्शनिस्ट ने फॉर्मलिटी पूरी की, चाबी थमाई, और मैडम चली गईं।

जाते-जाते मैडम ने पूछा, “अगली बार क्या करें?” रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कराकर कहा, “मैडम, अगली बार बुकिंग के वक्त अपना नाम भी जुड़वा दीजिए, या होटल को फोन करके नाम अपडेट करवा लीजिए।”

अकाउंट के नाम पर ऑफिस का खर्चा—जुगाड़ का नया तरीका

अगली शिफ्ट में वही किस्सा उल्टा हुआ—अब पति जी आए, पत्नी के नाम की बुकिंग पर। आते ही बोले, “मुझे कंपनी के लिए बिल चाहिए, लेकिन हर बार रिसिप्ट पर उनकी (पत्नी) का नाम रहता है। मेरा नाम कैसे आए?” रिसेप्शनिस्ट ने मन ही मन सोचा—वाह भाई! पत्नी के रिवॉर्ड्स से बिज़नेस ट्रिप का फायदा भी, और नाम भी अपना चाहिए।

स्पष्ट जवाब मिला—“सिर्फ तभी हो सकता है, जब आपकी पत्नी अपनी सदस्यता हटवाने की अनुमति दें।” जनाब बोले, “सच में? और कोई तरीका नहीं?” जवाब—“नहीं।” फिर पत्नी को फोन किया, और रिसेप्शनिस्ट ने खुद सारी जानकारी कन्फर्म की। मामला निपटा।

रिवॉर्ड्स का खेल: ‘घर की मुर्गी’ नहीं, ‘अपना-अपना हिसाब’

अब सोचिए, क्यों होटल वाले इतने सख्त होने लगे हैं? कमेंट्स में, एक सज्जन ने बड़ा सटीक सवाल उठाया—“आप कैसे मान लेते हैं कि फोन पर बोलने वाला असली अकाउंट होल्डर है? कहीं कोई और तो नहीं?” जवाब में, होटल वाले ने बताया कि वे नाम, पता, फोन नंबर, ईमेल और कार्ड के आखिरी चार अंक पूछते हैं—फिर भी, गड़बड़ी की संभावना रहती है।

एक कमेंट में किसी ने बड़ी गहरी बात कही—“सोचिए, अगर तलाक की लड़ाई चल रही हो और पति के नाम की बुकिंग पर पत्नी होटल में आ जाए, और होटल वाले बिना पूछे चाबी दे दें—क्या ठीक रहेगा?” असल में, बहुत बार लोग रिवॉर्ड्स अकाउंट को ऐसे बांटते हैं जैसे घर का राशन। जब अड़चन आती है, तो हैरान हो जाते हैं।

एक और कमेंट में सलाह दी गई—“जैसे एयरलाइन में रिवॉर्ड्स पॉइंट्स से किसी और के नाम की टिकट बुक हो जाती है, वैसे ही होटल में भी होना चाहिए। अकाउंट से पॉइंट्स कटे, लेकिन बुकिंग उसी के नाम से हो जो रुकने वाला है।” लेकिन होटल वालों का तर्क है—होटल में बार-बार वही मेहमान आते हैं, तो उनकी वफादारी (loyalty) मायने रखती है। अगर कोई और उनके नाम पर रुकता है और गड़बड़ करता है, तो अकाउंट भी ब्लैकलिस्ट हो सकता है।

भारतीय नजरिए से: “परिवार में सब चलता है” का ज़माना गया!

हम भारतीयों को तो आदत है—“घर की चीज़ सबकी है!” बचपन में भाई-बहन की आईडी से वीडियो गेम खेलना, या पिताजी के नाम पर मोबाइल रिचार्ज कराना—हमारे लिए आम बात है। लेकिन होटल रिवॉर्ड्स में ये जुगाड़ हर बार नहीं चलता। आजकल हर चीज़ पर्सनल है—मोबाइल नंबर से लेकर आधार तक। होटल वाले भी अब इसी ट्रेंड पर चल रहे हैं।

एक और कमेंट में किसी ने हँसी-मज़ाक में लिखा—“लोग रिवॉर्ड्स अकाउंट ऐसे बांटते हैं जैसे दाल-चावल, फिर चेक-इन पर अचरज करते हैं!” किसी ने सलाह दी, “भई, पत्नी के नाम से अकाउंट चलाने के बजाय, खुद का अकाउंट बना लो—सारा झंझट ही खत्म।”

सीख: “अपना-अपना अकाउंट, सबका भला!”

मामला चाहे होटल का हो या घर का, अकाउंट शेयरिंग का चक्कर अक्सर मुसीबत मोल ले आता है। होटल की दुनिया में हर चीज़ का हिसाब-किताब पर्सनल है—रिवॉर्ड्स भी। अगर आप खुद चेक-इन नहीं कर रहे, तो बुकिंग उसी के नाम से करें, जो आने वाला है। नहीं तो, कभी फोन पर पति को बुलाओ, कभी पत्नी को—और रिसेप्शनिस्ट बेचारा बीच में फँस जाए!

आखिर में, होटल वाले भी कहते हैं—“हम तो बस काम कर रहे हैं, नियम कंपनी के हैं!” तो अगली बार होटल रिवॉर्ड्स का फायदा उठाना हो, तो थोड़ा हिसाब से चलिए। आख़िर, ‘अपने नाम की बुकिंग—अपना सुकून’!

आपका क्या अनुभव रहा है होटल रिवॉर्ड्स या चेक-इन के दौरान? कमेंट में जरूर बताइए, और अगर आपके पास भी कोई मज़ेदार किस्सा हो, तो साझा करें—शायद अगली बार आपकी कहानी यहाँ पढ़ने को मिले!


मूल रेडिट पोस्ट: Rewards memberships are not a family affair