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होटल में 'सोल्ड आउट' का मतलब क्या सच में 'सोल्ड आउट' है? एक नाइट शिफ्ट की कहानी

एक रात के ऑडिटर की एनीमे चित्रण, जो होटल में प्रैंक कॉल और रात की हलचल से अभिभूत है।
इस जीवंत एनीमे चित्रण के साथ देर रात के होटल शिफ्ट की अराजक दुनिया में गोता लगाएँ, जो उन लंबे, बेहोशी भरे रातों में आने वाली चुनौतियों और frustrations को जीवंत करता है। प्रैंक कॉल से लेकर अकेले ड्यूटी निभाने तक, यह चित्रण उन संघर्षों को दिखाता है जो रात की इस नौकरी के साथ आती हैं।

रात के डेढ़ बजे का वक्त, होटल का रिसेप्शन, और मैं – नाइट ऑडिटर। सोचिए, जब सब लोग मीठी नींद में होते हैं, मैं यहां रात का पहरा दे रहा हूँ। आठ साल से इस नाइट शिफ्ट का तजुर्बा है, और हर बार याद आता है कि क्यों ये ड्यूटी इतनी इम्तिहान वाली लगती है। रात के अजीब फोन कॉल्स, कोई भी गड़बड़ हो जाए तो सीधा रिसेप्शनिस्ट की गलती, और साहब – कुछ खास ‘वीआईपी’ मेहमानों की तो बात ही निराली है!

जब "सोल्ड आउट" सुनकर भी मेहमान नहीं मानते

तो जनाब, हुआ यूं कि होटल पूरी तरह से बुक्ड था – एक भी कमरा खाली नहीं। कुछ मेहमानों की देर से आने की उम्मीद थी, बाकी सब आ चुके थे। तभी ऊपर से एक साहब लुड़कते-झूमते नीचे आए – नशे में थोड़े टुन। आते ही बोले, "भैया, एक और कमरा दे दो।"
मैंने विनम्रता से कहा, "माफ़ कीजिए, आज होटल पूरी तरह से सोल्ड आउट है। एक भी कमरा खाली नहीं।"
साहब ने गुस्से में मोबाइल मेरी तरफ़ ठेल दिया, "झूठ बोल रहे हो! देखो, ऐप में तो कमरे दिखा रहा है।"

अब आप समझिए, ऐप अगले दिन के लिए कमरे दिखा रहा था, लेकिन हमारे सिस्टम में अभी तक पुराना दिन चल रहा था। मैंने समझाने की कोशिश की, मगर वो साहब तो मुझपर ही बरस पड़े – "तुम तो काम ही नहीं करना चाहते, बदतमीज हो!"
फिर तो क्या, उन्होंने अपना ‘एलीट मेंबरशिप’ कार्ड भी फेंक दिया, सोच रहे थे शायद इससे कमरा जादू से निकल आएगा!

"ग्राहक भगवान है" का मतलब ये तो नहीं!

हमारे यहां तो हमेशा कहते हैं, "ग्राहक भगवान है", लेकिन भगवान भी अगर ज़िद्दी हो जाए तो क्या किया जाए? एक कमेंट में किसी ने बहुत बढ़िया कहा – "जी हां, हमारे पास कमरे हैं, लेकिन चेक-इन कल दोपहर 3 बजे से है। अभी नहीं!"
ऑरिजिनल पोस्टर ने भी लिखा, "मैंने जब यही बोला तो साहब ऐसे भड़क गए, जैसे कोई बच्चा अपना खिलौना छीन लिए जाने पर रोता है।"

होटल इंडस्ट्री में ये आम बात है – लोग मानते ही नहीं कि अगर कमरे बिक गए हैं तो सच में बिक गए हैं। एक और कमेंट में बड़ी मज़ेदार बात लिखी थी – "कई बार ऐसा होता है कि लोग बार-बार पूछते हैं, ‘क्या आप पक्का कह रहे हैं कि कोई कमरा नहीं?’ भाई, मैं क्यों झूठ बोलूंगा? जितने ज़्यादा कमरे बिकेंगे, उतना होटल का फायदा, और शायद मेरी तनख्वाह भी बढ़े!"

किसी और ने तो तंज कसते हुए कहा – "अगर होटल हमेशा कुछ कमरे ‘स्टैंडबाय’ पर रखे, तो फिर कभी भी ‘हाउसफुल’ नहीं होगा। इससे होटल का क्या भला?"
बिल्कुल वैसा ही जैसे कोई मिठाईवाला हर दिन कुछ रसगुल्ले सिर्फ़ देर से आने वालों के लिए छुपा कर रखे। अरे भई, व्यापार का नियम है – जितना माल बिके उतना अच्छा!

कुछ ग्राहक तो ‘जुगाड़’ में ही लगे रहते हैं

होटल में ऐसे मेहमान भी आते हैं जो समझते हैं कि वो बड़ा तगड़ा जुगाड़ लगा लेंगे। एक कमेंट में किसी ने लिखा – "मेरा पसंदीदा वो लोग हैं जो आधी रात को बाहर खड़े होकर होटल की तरफ़ टकटकी लगाकर ऐसे देखते हैं, जैसे ऊपर से कोई कमरा छलककर नीचे गिर जाएगा!"

एक और मज़ेदार किस्सा – कई बार लोग मोबाइल ऐप से तुरंत बुकिंग कर लेते हैं और फिर रिसेप्शन पर आकर बोलते हैं, "देखिए, मैंने तो अभी कमरे की बुकिंग कर ली है!"
रिसेप्शनिस्ट का जवाब – "बहुत बढ़िया! आपका चेक-इन कल दोपहर 3 बजे है। अभी नहीं।"
फिर उन ग्राहकों के चेहरे देखने लायक होते हैं!

रात की शिफ्ट – धैर्य और हास्य का इम्तिहान

नाइट शिफ्ट में काम करना अपने आप में एक कला है। किसी ने कमेंट किया – "ऐसे लोगों को देखकर बस मन करता है कि जोर से ‘ना!’ बोल दूं, जैसे किसी शरारती बिल्ली को पानी की बोतल से डराते हैं।"
कई बार तो शक होने लगता है कि कहीं ये ग्राहक सच में समझ नहीं पा रहे हैं या तंग करने आए हैं। एक टिप ये भी थी – "अगर कोई समझने को तैयार नहीं, तो उल्टा उसे बैठाकर पानी-पिलाकर पूछो, ‘भैया, आप ठीक तो हैं? कोई मदद चाहिए?’ कभी-कभी इससे भी अक्ल ठिकाने आ जाती है।"

और हां, होटल का स्टाफ़ भी इंसान है। किसी ने कमेंट में लिखा – "मेरा तो सारा सुख इस बात पर निर्भर है कि कितने कमरे बेचूं। जितने ज़्यादा कमरे बिकेंगे, उतनी मेरी खुशहाली। तो भैया, अगर कह रहा हूँ कि कमरे नहीं हैं तो सच में नहीं हैं!"

निष्कर्ष: अगली बार होटल जाएं तो रिसेप्शन वाले को समझें भी

तो दोस्तों, अगली बार अगर आप होटल में जाएं, और रिसेप्शन पर कोई आपको ‘सोल्ड आउट’ बोले – तो मान लीजिए। रिसेप्शनिस्ट झूठ नहीं बोल रहा, न ही उसके पास कोई गुप्त कमरा है, और न ही आपकी ‘वीआईपी’ मेम्बरशिप से जादू होगा।
कभी-कभी ‘ना’ का मतलब सच में ‘ना’ होता है – चाहे वो होटल हो, ट्रेन टिकट हो या फिर ज़िंदगी के बाकी फैसले!

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कोई मज़ेदार वाकया हुआ है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और हां, अगली बार होटल स्टाफ़ से ज़रा मुस्कराकर मिलिए – उनकी रात की नींद की क़ीमत बहुत बड़ी होती है!


मूल रेडिट पोस्ट: Sold out means sold out