होटल में मेहमानों की ‘शाही फरमाइशें’: कभी-कभी तो हद ही हो जाती है!
कभी-कभी लगता है कि होटल में काम करने वाले स्टाफ का सब्र किसी योगी से कम नहीं! हमारे देश में भी, “अतिथि देवो भव:” का नारा खूब चलता है, लेकिन जब कोई मेहमान देवता की जगह खुद को राजा-महाराजा समझने लगे, तो क्या हो? आज की कहानी एक ऐसे ही ‘विशेष’ मेहमान की है, जिसकी फरमाइशें सुनकर होटल स्टाफ को अपनी हँसी रोकना मुश्किल हो गया।
‘मेरे लिए तो होटलवाले Uber भी बुक करें, और पैसे भी दें!’
सोचिए, आप होटल के रिसेप्शन पर हैं। एक साहब आते हैं, चेहरे पर भारी आत्मविश्वास, और बोलते हैं – “मुझे सुबह 5:30 बजे एयरपोर्ट जाना है, होटल की शटल चाहिए।” रिसेप्शनिस्ट बड़ी विनम्रता से बताते हैं, “शटल सेवा केवल सुबह 8 बजे से 4 बजे तक ही है, सोमवार से शुक्रवार तक।” साहब भड़क उठते हैं, “मुझे तो बताया गया था 24 घंटे है! आप झूठ बोल रहे हैं!”
यहाँ दो बातें होती हैं – या तो उन्हें किसी तीसरे व्यक्ति (जैसे ट्रैवल एजेंट या वेबसाइट) ने गलत जानकारी दी, या फिर उन्होंने खुद शर्तें पढ़ने की जहमत नहीं उठाई। लेकिन साहब का गुस्सा रुकने वाला कहाँ था! अब फरमाइश आई – “Uber मुझसे नहीं बुक होगी, आप अपने फोन से बुक करो और पेमेंट भी आप ही करो। आखिर मुझे असुविधा हुई है, तो उसका हर्जाना तो बनता है ना!”
‘अरे भाई, होटलवाले भी इंसान होते हैं!’
यहाँ पर होटल के कर्मचारी ने बड़े धैर्य से समझाया – “Uber तो आपके फोन से ही बुक होगी, क्योंकि पेमेंट आपकी कार्ड डिटेल्स से ही कटेगा।” लेकिन साहब पर इसका कोई असर नहीं, बार-बार वही राग – “आपके फोन से बुक करो, आप पे करो!”
इसी बीच Reddit के एक यूज़र ने मजेदार कमेंट किया – “आपको चार बार समझा दिया, लेकिन समझाना तो आपके बस में नहीं!” (सीधे हिंदी में कहें तो – ‘समझा-समझा के थक गए, समझना आपके बस का नहीं’)। एक और पाठक ने तंज कसा, “कभी-कभी लगता है सामने वाला अंग्रेजी में सुन तो रहा है, लेकिन दिमाग में कुछ और ही चल रहा है!”
‘विदेशी होटल्स और भारतीय मेहमान-नवाज़ी: क्या है फर्क?’
कुछ Reddit यूज़र्स ने अपने अनुभव भी साझा किए। किसी ने बताया कि इटली के एक छोटे होटल में सुबह 5 बजे के लिए टैक्सी बुक की थी, तो होटलवाले ने पूछा – “क्या हमारे किचन वाला 4 बजे आकर आपके लिए ब्रेकफास्ट बनाए?” इसी तरह जापान में एक होटल के स्टाफ ने सुबह-सुबह बेंटो (पैक्ड ब्रेकफास्ट) पैक कर दिया। वेल्स (Wales) में एक होटल मालिक ने खुद अपनी गाड़ी से गेस्ट को स्टेशन छोड़ा। ऐसे अनुभव सुनकर लगता है कि कुछ देशों में मेहमान-नवाज़ी वाकई दिल से होती है।
लेकिन हर जगह यह संभव नहीं होता। एक कमेंट में लिखा था – “कुछ देशों में होटल की सर्विस स्ट्रक्चर ही ऐसी होती है, और उसकी कीमत भी उसी हिसाब से होती है। लेकिन हर होटल से वही उम्मीद रखना, और फिर कर्मचारी से जेब से पैसे दिलवाना... यह कहां का इंसाफ है?”
‘ऐसी फरमाइशें हमारे यहाँ भी...’
अगर आप सोच रहे हैं कि भारत में ऐसा नहीं होता, तो ज़रा याद कीजिए – कितनी बार किसी सरकारी दफ्तर, बैंक या होटल में लोग कह देते हैं – “भाई, थोड़ा अपना फोन दे दो, हमसे नहीं होगा!” या “आप फॉर्म भर दो, हमको समझ नहीं आता।” हद तो तब हो जाती है, जब कोई ग्राहक कहता है – “चाय तो यहीं बना दो!” या “गाड़ी का पेट्रोल भी आप डलवा दो, हम तो मेहमान हैं!”
एक और कमेंट में किसी ने लिखा – “मैं जब होटल में जल्दी निकलना था, शटल नहीं मिली, तो खुद टैक्सी बुक की, पैसे दिए, बात खत्म!” असल में, सुविधा की उम्मीद रखना ठीक है, लेकिन जब वो संभव न हो, तो उसका हर्जाना मांगना... यह ‘अधिकार’ की भावना कहीं-न-कहीं बहुत गहराई तक बैठ गई है।
निष्कर्ष: ‘अतिथि देवो भव’, पर इंसानियत भी जरूरी है!
तो दोस्तों, अगली बार जब आप किसी होटल, बैंक, या किसी भी सेवा स्थल पर जाएं, तो याद रखिए – सामने वाले भी इंसान हैं, उनकी भी सीमाएँ हैं। हमारे देश में ‘अतिथि देवो भव’ जरूर कहा गया है, लेकिन देवता भी अपने भक्तों से तर्क-संगत आचरण की अपेक्षा रखते हैं!
आपका क्या अनुभव रहा है ऐसे अतिथियों या ग्राहकों के साथ? क्या कभी किसी ने आपसे भी ऐसी अजीब डिमांड्स की हैं? कमेंट में जरूर बताइए – आपकी कहानियाँ पढ़कर और भी मजा आएगा!
मूल रेडिट पोस्ट: Peoples entitlement never ceases to amaze me