होटल में मम्मी के लाडले का ड्रामा: जब बालिग बेटे की शिकायत करने खुद माता-पिता ने फोन घुमा दिया!
होटल में काम करने वाले लोगों की जिंदगी हमेशा रंगीन और चौंकाने वाली घटनाओं से भरी रहती है। खासकर जब सुबह-सुबह किसी ग्राहक के घरवाले होटल रिसेप्शन पर ड्रामा करने पहुंच जाएं – और वो भी बालिग बेटे के लिए! सोचिए, सुबह-सुबह आप ऑफिस पहुंचे, चाय भी पूरी न हुई हो, और सामने मम्मीजी की शिकायतों की बौछार शुरू हो जाए तो कैसा लगेगा?
मम्मी-पापा की टेलीफोनिया सेवा: बेटे के लिए होटल में हंगामा
ये किस्सा किसी छोटे बच्चे का नहीं, बल्कि एक पूरे बालिग आदमी का है, जो होटल में ठहरा था – और उसके लिए होटल स्टाफ को मम्मी के साथ-साथ पापा की भी डांट सुननी पड़ी!
हुआ यूं कि सुबह करीब साढ़े सात बजे रिसेप्शन पर फोन घनघनाया। दूसरी तरफ एक बुजुर्ग महिला – यानी मम्मीजी – गुस्से में बोलीं, "ये बताइए, आपने मेरे बेटे का कमरा क्यों किसी और को दे दिया? उसे ग्राउंड फ्लोर का कमरा चाहिए था, आपने तो तीसरे माले का गंदा कमरा पकड़ा दिया!" अब रिसेप्शनिस्ट महाशय बेचारे 30 मिनट पहले ही ड्यूटी पर आए थे, उन्हें तो कुछ पता ही नहीं। लेकिन मम्मीजी के सामने कौन बोल सकता है! आखिर भारतीय समाज में भी तो मां की बात पत्थर की लकीर होती है – "मेरा बेटा थक गया है, बारह घंटे गाड़ी चलाकर आया है, सुबह तीन बजे होटल पहुंचा...उसे आराम चाहिए, फौरन कमरा दो!"
होटल के नियम बनाम मम्मीजी की ममता
जैसा कि हर होटल में होता है, रात दो बजे के बाद अगर कोई मेहमान नहीं पहुंचता है तो उसका बुकिंग 'नो-शो' मान ली जाती है – मतलब बुकिंग अपने आप कैंसिल। अब ये तो नियम है, लेकिन मम्मीजी का तर्क था, "ये तो बहुत बुरा नियम है, मेहमान के साथ नाइंसाफी!" रिसेप्शनिस्ट सोच रहे थे, "अरे भई, अगर आपको देर से आना है तो कम-से-कम फोन तो कर देते!"
यहां एक कमेंट करने वाले ने बड़ी सही बात कही – "हमें मेहमान या गैर-मेहमान की जानकारी किसी को नहीं देनी चाहिए। अगर बेटे को दिक्कत है, तो खुद रिसेप्शन पर आकर बताएं।" (हिंदी में कहें तो – 'बड़े हो गए हैं साहब, अब मम्मी के जरिए बात करवाना अजीब है!')
पापा भी मैदान में: पूरा परिवार एकजुट
कुछ घंटों बाद फिर से फोन बजा, इस बार पापा लाइन पर थे! "आपने मेरे बेटे को गंदा कमरा क्यों दे दिया?" अब रिसेप्शनिस्ट को लगा जैसे कोई घरेलू पंचायत होटल में ही बैठ गई हो। खैर, उन्होंने विनम्रता से बताया कि ग्राउंड फ्लोर का कमरा अब तैयार है, आप बेफिक्र रहें।
यहां एक और कमेंट मजेदार था – "लगता है मेहमान खुद ही मम्मी-पापा बनकर कॉल कर रहा है, जैसे फिल्म 'सदमा' में कमल हासन ने किया था!"
असली 'मम्मी का लाडला' निकला बालिग मर्द!
अब तक रिसेप्शनिस्ट के मन में यही चल रहा था कि शायद कोई 16 साल का लड़का है, तभी तो मम्मी-पापा इतना हाय-तौबा मचा रहे हैं। लेकिन जब मैनेजर खुद कमरे में गए, तो सामने आए एक अधेड़ उम्र के सज्जन – सिर पर बाल कम, दाढ़ी में सफेदी!
अब समझिए, होटल स्टाफ भी हैरान – क्या सच में ये मम्मी-पापा के कहने पर फोन करवाते हैं, या माता-पिता खुद ही बेटे के होटल के मामलात में इतना दखल देते हैं? एक कमेंट में तो किसी ने लिखा, "लगता है साहब खुद अपने घरवालों से भागे हैं!"
भारतीय समाज में 'मम्मी के लाडले' का चलन
यह घटना भले ही पश्चिमी देश की हो, लेकिन हमारे यहां भी 'मम्मी का लाडला' और 'पापा का राजदुलारा' का कॉन्सेप्ट खूब चलता है। चाहे कॉलेज एडमिशन हो, या शादी-ब्याह, या जॉब इंटरव्यू – मां-बाप की चिट्ठी, फोन या सिफारिश आज भी हर जगह चलती है।
होटल में भी कई बार ऐसा होता है जब पूरी फैमिली मिलकर रेट कम करवाने, या रूम बदलवाने के लिए रसूख दिखाती है। कई बार तो सीनियर सिटीजन खुद आकर बोलते हैं, "बेटा हमारे बेटे को ख्याल रखना, वो अकेला है, जरा सी बात पर परेशान हो जाता है।"
पाठकों से सवाल: आप क्या सोचते हैं?
तो दोस्तों, सोचिए – आप रिसेप्शनिस्ट की जगह होते तो क्या करते? क्या वाकई बालिग लोगों को अब भी मम्मी-पापा की जरूरत है, या थोड़ा-बहुत आत्मनिर्भर होना भी जरूरी है?
कमेंट्स में जरूर बताइए कि आपके साथ कभी ऐसा कोई फनी अनुभव हुआ है क्या? क्या आपके घर वाले भी कभी आपके लिए होटल या ऑफिस में फोन घुमा चुके हैं?
समाप्ति में यही कह सकते हैं – चाहे पश्चिम हो या पूरब, मम्मी-पापा की ममता किसी भी उम्र में कम नहीं होती। लेकिन कभी-कभी उनकी चिंता होटल स्टाफ के लिए सिरदर्द भी बन जाती है!
अगर आपको यह किस्सा पसंद आया हो, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और नीचे कमेंट में अपनी राय जरूर दें – क्या आप भी 'मम्मी के लाडले' हैं, या खुद की लड़ाइयाँ खुद लड़ लेते हैं?
मूल रेडिट पोस्ट: Mama’s boy