होटल में 'पिज़्ज़ा पार्टी' विवाद: जब सफाईकर्मी बन गए हीरो और रिसेप्शन वाले रह गए भूखे
कभी सोचा है कि होटल के अंदर ही अंदर क्या राजनीति चलती है? बाहर से तो सब चमचमाता दिखता है, लेकिन अंदर कौन किससे नाराज है, किसको कितनी इज्जत मिल रही है और कौन रह गया है भूखा—ये सब जानना बड़ा दिलचस्प होता है। खासकर जब बात हो पिज़्ज़ा पार्टी की और कोई अपने हिस्से की एक स्लाइस तक न पा सके!
आज की कहानी है एक होटल की, जहां सफाईकर्मियों (हाउसकीपिंग) के सम्मान सप्ताह के नाम पर चार बार पिज़्ज़ा पार्टी हो चुकी है। रिसेप्शन यानी फ्रंट डेस्क वालों को हर बार यह कहकर टरका दिया जाता है—'अगर बचा तो तुम्हारे लिए भी पिज़्ज़ा है', लेकिन किस्मत देखिए, कभी एक टुकड़ा तक नहीं बचता! अब आप सोचिए, दिनभर मुस्कराते रहो, मेहमानों की शिकायतें झेलो, और बदले में सिर्फ सूखी उम्मीद मिलती रहे—कोई भी नाराज हो जाएगा।
होटल की राजनीति: 'हम' बनाम 'वे'
हमारे देश में ऑफिस की राजनीति कोई नई बात नहीं। चाय-पानी के ब्रेक पर अक्सर यही सुना जाता है—'अरे, बॉस तो अपने चहेतों को ही सब देता है!' यही हाल इस होटल का है। रिसेप्शन टीम को बार-बार अनदेखा किया गया। सफाईकर्मी और मेंटेनेंस को उपहार, गिफ्ट वाउचर, यहां तक कि लॉटरी टिकट और रैफल प्राइज तक मिल गए। रिसेप्शन वालों को सिर्फ 'अगर बचा तो...' का वादा!
एक कमेंट में मैनेजर साहब (u/Texass01) ने लिखा—'मैं तो सभी विभागों का सम्मान करता हूं। सफाईकर्मियों का काम कठिन है, लेकिन रिसेप्शन वालों को भी गेस्ट की डांट-फटकार झेलनी पड़ती है!' उन्होंने माना कि सभी टीम का मनोबल बढ़ाना मैनेजर की जिम्मेदारी है। ये बात हमारे यहां भी सच है—जहां बॉस सबको बराबर समझे, वहां काम में भी उत्साह आता है।
'फेवरेट हाउसकीपर' और बढ़ती तकरार
अब जरा इस होटल के सबसे विवादित हिस्से पर आते हैं—'फेवरेट हाउसकीपर' प्रतियोगिता। हर किसी को वोट देना था कि उन्हें कौन सा सफाईकर्मी सबसे पसंद है। जैसे ही परिणाम आया, एक सफाईकर्मी जो पहले से नाराज थी, उस पर भड़क गई। उसने आरोप लगाया कि रिसेप्शन वालों ने वोटिंग में गड़बड़ी की है! ऊपर से वो खुलेआम कह रही है—'बोनस मिलते ही नौकरी छोड़ दूंगी!' नतीजा, कमरों की सफाई लेट, गेस्ट परेशान, रिसेप्शन पर गुस्सा, और माहौल बन गया 'हम' बनाम 'वे' का।
एक पाठक ने मजाकिया अंदाज में लिखा—'अरे भई, अगर पिज़्ज़ा चाहिए तो खुद सफाईकर्मी बन जाओ!' लेकिन दूसरी तरफ कईयों ने कहा कि जबसे पुराने मैनेजर गए हैं, सब गड़बड़ हो गया है। स्थायी नेतृत्व न होने से हर कोई परेशान है।
रिसेप्शन टीम की दुविधा: भूखे रहो या आवाज़ उठाओ?
अब हालत ये हो गई है कि दो रिसेप्शन वाले विरोध में नौकरी पर नहीं आएंगे। जो आएगा, उसे दो शिफ्ट करनी पड़ेगी क्योंकि स्टाफ ही कम है। कमेंट में किसी ने सुझाव दिया—'मैनेजमेंट से खुलकर बात करो, बताओ कि हमारी भी अहमियत है।' किसी ने मजाक में कहा—'अपनी पार्टी खुद करो, बिल मैनेजमेंट को थमा दो, लिख दो—फ्रंट डेस्क एप्रीसिएशन डे!'
असल में ये कहानी सिर्फ पिज़्ज़ा के लिए नहीं है, ये सम्मान की लड़ाई है। कोई भी विभाग हो, अगर उसे लगातार अनदेखा किया जाए, तो मन में कसक आ ही जाती है। एक और कमेंट में कहा गया—'हमारे यहां तो बाकी शिफ्ट के लिए खाने का बचा हिस्सा जरूर रखा जाता है, ताकि कोई भी खुद को अलग-थलग महसूस न करे!' यही तो असली टीम वर्क है।
सम्मान सबका, पार्टी सबकी
भारत में ऑफिस की पार्टी हो या कॉलोनी की होली मिलन, असली मजा सबको साथ बिठाकर खिलाने में है। हर टीम का योगदान जरूरी है—कोई कमरा साफ करे, कोई गेस्ट को हैंडल करे, कोई बल्ब बदले। अगर सिर्फ एक को गिफ्ट मिले और दूसरा भूखा रहे, तो टीम का माहौल बिगड़ना तय है।
यहां तक कि खुद कहानी लिखने वाले (OP) ने भी माना—'मैं खुद सफाईकर्मियों को रोज शुक्रिया कहता हूं, लेकिन हम भी तो दिनभर खड़े रहते हैं, बिना ब्रेक। कम से कम एक स्लाइस पिज़्ज़ा तो बनता है!'
अंत में यही कहना है—सम्मान बांटने से बढ़ता है, और पिज़्ज़ा भी! होटल हो या कोई भी ऑफिस, अगर सबको साथ लेकर चलोगे, तभी असली टीम स्पिरिट आएगी। वर्ना 'हम' और 'वे' की दीवारें खड़ी हो जाएंगी, और पिज़्ज़ा...वो तो हमेशा खत्म ही मिलेगा!
आपके विचार?
क्या आपके ऑफिस में भी ऐसा 'हम' बनाम 'वे' का माहौल है? कभी आपको भी अपने हिस्से की पिज़्ज़ा या सम्मान नहीं मिला? नीचे कमेंट में जरूर बताएं—कहानी शेयर करें, दिल हल्का करें, और हो सके तो अपने ऑफिस में भी सबको साथ खिलाने की परंपरा शुरू करें!
मूल रेडिट पोस्ट: Housekeeping appreciation...