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होटल में 'कोयला खान सर्विस डॉग' की अनोखी दलील: ग्राहक का कारनामा सुनकर आप भी हँस पड़ेंगे!

होटल कर्मचारी एक मेहमान को बिना पालतू जानवरों की नीति के बारे में मदद कर रहा है, जिसमें एक सेवा कुत्ता भी है।
एक फोटो-यथार्थवादी दृश्य में, एक होटल कर्मचारी सहानुभूति के साथ मेहमान को बिना पालतू जानवरों की नीति की चुनौतियों से निपटने में मदद कर रहा है, जिसमें सेवा कुत्तों की अनोखी भूमिका को उजागर किया गया है। यह क्षण मानव संबंध को दर्शाता है, जो नियमों को पार करता है, यहां तक कि कोयले की खदान जैसे अप्रत्याशित स्थानों पर भी।

अगर आप कभी होटल में रात की ड्यूटी कर चुके हैं या किसी रिसेप्शनिस्ट से मिल चुके हैं, तो जानते होंगे कि वहाँ हर रात कोई न कोई अनोखा किस्सा जरूर होता है। लेकिन आज जो किस्सा मैं सुनाने जा रहा हूँ, वो न केवल मज़ेदार है बल्कि सोचने पर मजबूर भी कर देता है कि लोग कभी-कभी बहानेबाज़ी में कितनी दूर जा सकते हैं!

जब ग्राहक की फरमाइशें भी थक जाएँ

ये कहानी है एक होटल के फ्रंट डेस्क कर्मचारी की, जिनकी रात की शिफ्ट वैसे ही बेहद शांत चल रही थी कि तड़के 2 बजे अचानक फोन बजता है। उधर से एक महिला पूछती है—“आपके यहाँ नए गद्दे (mattress) लगे हैं क्या? आज रात रूम मिलेगा?” कर्मचारी बड़े शिष्टाचार से जवाब देते हैं। महिला कहती है, “आपसे बात करके तो लग रहा है, आपके होटल में जितनी महिलाएँ काम करती हैं, सब अयोग्य हैं, बस आप ही इंसानी अंदाज़ में बात कर रहे हैं।” अब हमारे यहाँ तो ‘अतिथि देवो भवः’ चलता है, तो कर्मचारी भी मुस्कराकर धन्यवाद बोल देते हैं।

कुछ हफ्तों बाद वही महिला फिर फोन करती है और वही सवाल—“नया गद्दा मिलेगा?” इस बार भी कर्मचारी सब व्यवस्था कर देता है, लेकिन महिला कहती है, “मैं तो थर्ड पार्टी वेबसाइट से ही बुकिंग करूंगी, वहाँ मुझे स्पेशल डील मिलती है।” खैर, बुकिंग हो जाती है। जब कर्मचारी रूम ब्लॉक करने की बात कहता है, तो महिला नाराज़ हो जाती है—“ये रिक्वेस्ट कैसी? आपने तो गारंटी की थी!” समझाने पर शांत होती है, और बात वहीं खत्म हो जाती है... या शायद नहीं!

'सेवा' के नाम पर बहाना, और पप्पी का कमाल

रात के करीब 4 बजे, होटल की ऑडिटर का मैसेज आता है—“जिस महिला को आपने 209 नंबर रूम दिया है, वो एकदम सिरफिरी है!” अब हुआ ये कि महिला ने होटल की ‘नो पेट्स’ पॉलिसी के बावजूद एक लैब्राडोर पप्पी चुपके से अंदर घुसा लिया। जब पकड़ी गई, तो बोली—“ये मेरा सर्विस डॉग है, CO2 डिटेक्शन डॉग! अगर कमरे में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ जाए तो ये मुझे बता देगा।”

यहाँ तो सबका माथा ठनका—CO2? यानी वही गैस जिसे कोयला खानों में कैनरी (चिड़िया) की जान परखा जाता था? औरत तो जैसे गाँव के मेले में नकली झाड़-फूंक वाला बाबा निकली! असल में, CO2 डिटेक्शन डॉग्स होते हैं, लेकिन वो अपने मालिक के सांस या ऑक्सीजन लेवल में बदलाव महसूस करके अलर्ट करते हैं, हवा में CO2 नहीं सूँघ सकते। ऊपर से वो पप्पी सिर्फ 4-5 महीने का—मतलब ट्रेनिंग की भी उम्र नहीं हुई!

होटल कर्मचारी बोले—'ऐसी अम्मा से तो भगवान भी बचाए!'

जब महिला से कहा गया कि रूम बदलना नियम के खिलाफ है (क्योंकि थर्ड पार्टी बुकिंग थी), तो उसने लगभग आधा घंटा होटल की ऑडिटर को परेशान किया। होटल के कर्मचारियों के लिए ये आम बात बन गई है—कोई न कोई 'करेन' (यानी ज़िद्दी और बेमतलब तर्क देने वाला ग्राहक) रोज़ मिल जाता है, जो हर बात में झगड़ा करता है।

रेडिट पर इस घटना पर लोगों ने खूब चुटकी ली। एक यूज़र ने लिखा—“ऐसे लोग जो झूठ बोलकर सर्विस डॉग का बहाना बनाते हैं, असल ज़रूरतमंद लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ा देते हैं।” एक अन्य ने कहा—“अगर सच में आपको मेडिकल सर्विस डॉग चाहिए होता, तो आप उसे छुपाते नहीं, बल्कि गर्व से साथ लाते।”

एक और मज़ेदार कमेंट था—“CO2 तो हम हर वक्त साँस में छोड़ते हैं, वो पप्पी तो होटल में सबको सूँघते-सूँघते पगला जाएगा!” किसी ने ये भी बताया कि असली सर्विस डॉग्स बहुत अनुशासित होते हैं, ना इधर-उधर दौड़ते हैं, ना किसी को परेशान करते हैं। असली मालिक तो खुद नियमों का पालन करते हैं, झगड़ते नहीं।

होटल और भारतीय समाज—बहानों की कोई सीमा नहीं!

ऐसी घटनाएँ भारत में भी आम हैं—कोई अपने बच्चे को ‘स्पेशल’ बता के ट्रेन में पूरे डिब्बे पर हक जमा लेता है, कोई ‘डॉक्टर की सलाह’ पर होटल में स्पेशल खाना मांग लेता है। असल में ये बहानेबाज़ी केवल पश्चिमी देशों तक सीमित नहीं, हमारे यहाँ भी चतुराई की कमी नहीं है!

इसी बहाने हमें समझना चाहिए कि असल सेवा-जानवर (Service Animal) और Emotional Support Animal में फर्क है। असली सर्विस डॉग्स को गम्भीर मेडिकल या शारीरिक ज़रूरत होती है, और वो खूब ट्रेनिंग पाते हैं। झूठ बोलकर नियम तोड़ने वाले न केवल होटल कर्मचारियों, बल्कि असली ज़रूरतमंद लोगों के लिए भी मुश्किलें बढ़ा देते हैं।

निष्कर्ष—क्या आपको भी ऐसे 'बहानेबाज़ी' के किस्से सुनने हैं?

दोस्तों, होटल हो या रेलवे स्टेशन, ऐसे अतरंगी ग्राहक हर जगह मिल जाते हैं। कभी-कभी उनकी बातें सुनकर गुस्सा तो आता है, लेकिन हँसी भी छूट जाती है। अगली बार जब कोई अपने कुत्ते को 'कोयला खान डिटेक्शन डॉग' कहे, तो याद रखिए—सच्चाई हमेशा बहानेबाज़ी से ऊपर होती है।

क्या आपके साथ भी कभी कोई ग्राहक या मेहमान ऐसी अजीब दलील लेकर आया है? अपनी कहानी नीचे ज़रूर साझा करें... और हाँ, अगली बार होटल जाएँ तो कर्मचारियों का सम्मान ज़रूर करें—उनकी नौकरी आसान बिल्कुल नहीं!


मूल रेडिट पोस्ट: Coal Mine Service Dog?