होटल में ऐसी चालाकी! जब मेहमान सामने खड़ा था, फिर भी रिफंड की जुगाड़
होटल के रिसेप्शन पर काम करना वैसे तो रोज़मर्रा की घिसी-पिटी नौकरी लग सकती है, लेकिन यकीन मानिए, यहाँ हर दिन कोई न कोई ड्रामा ज़रूर होता है। कभी कोई मेहमान चाय में कम शक्कर मांगता है, तो कभी कोई तकिया बदलवाने के लिए घंटों बहस करता है। लेकिन आज जो किस्सा सुनाने जा रहा हूँ, वो तो सारी हदें पार कर गया। सोचिए, सामने मेहमान खड़ा है, होटल में हर दिन नाश्ता कर रहा है, कमरा साफ़ करवा रहा है, और फिर भी OTA यानी ऑनलाइन ट्रैवल एजेंसी से शिकायत आ रही है कि 'साहब, हमारा मेहमान आया ही नहीं, रिफंड चाहिए!'
जब हदों से बाहर हो गया जुगाड़ – मेहमान की जुगलबंदी
यह घटना एक ऐसे वीकेंड की है, जब होटल पूरा भरा हुआ था। उसी समय OTA से कॉल आती है—"हमारे साझा मेहमान के लिए सहायता चाहिए। वो कह रहे हैं कि उन्हें चार्ज तो कर लिया, पर वो होटल में ठहरे ही नहीं। प्लीज़ रिफंड कर दीजिए।" पहली बार सुनकर लगा, शायद कोई तकनीकी गड़बड़ होगी। लेकिन मज़ा तब आया, जब वही कॉल बार-बार आने लगी।
यहाँ तक कि, जिस कार्ड से पेमेंट हुआ था, वो फिज़िकली स्वाइप हुआ था, मेहमान हर दिन नाश्ते पर आते थे, हाउसकीपिंग भी रोज़ करवाते थे, और वीकेंड के अंत में रिसेप्शन पर आकर खुद अपनी रसीद लेकर गए। अब बताइए, और क्या सबूत चाहिए कि मेहमान होटल में ही था?
होटल कर्मचारी की दुविधा – सामने खड़ा है फिर भी 'नदारद'?
यही नहीं, एक पाठक ने कमेंट में लिखा – "ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मेहमान को खुद चेक-इन किया, और उसी समय OTA का फोन आ गया कि वो होटल में हैं ही नहीं।" सोचिए, जैसे कोई आपके सामने खड़ा हो और कोई कहे, "भैया, ये तो यहाँ है ही नहीं!"
एक और मज़ेदार सुझाव आया—"ऐसी स्थिति में पुलिस को बुला लिया जाए कि कहीं कोई धोखाधड़ी तो नहीं हो रही?" हमारे यहाँ तो कहावत है, 'नाच न जाने आंगन टेढ़ा', लेकिन यहाँ तो आंगन भी सीधा था, नाच भी बढ़िया, फिर भी 'मेहमान' नजर नहीं आ रहा था!
ऑनलाइन एजेंसियों की भूमिका – 'शोल्डर श्रग' और मूकदर्शक
जब होटल कर्मचारी ने OTA को सबूतों के साथ बताया कि 'दिख रहा है भाई, मेहमान यहीं है', तो OTA ने बस कंधे उचकाकर कहा, "ओह अच्छा, धन्यवाद।" यानी, ना कोई रजिस्टर में नाम काटा, ना कोई चेतावनी दी। कमेंट्स में एक और पाठक ने लिखा, "उम्मीद है उन्होंने अपने सिस्टम में उस मेहमान को ब्लैकलिस्ट (DNR) तो कर ही दिया होगा," लेकिन शायद यहाँ 'चलता है' वाला रवैया चल रहा था।
बदलती सोच: मेहमान भी अब जुगाड़ू
किसी ने कमेंट में बढ़िया लिखा—"आजकल लोग पैसे बचाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं। होटल सस्ता नहीं करते, तो लोग झूठ और बहस करके पैसे वापस लेने की कोशिश करते हैं।" जैसे हमारे यहाँ कई लोग सस्ता टिकट पाने के लिए ट्रेन छोड़कर बस पकड़ लेते हैं, वैसे ही यहाँ छुट्टी में भी जुगाड़ से रिफंड लेने का नया तरीका इजाद हो गया है।
एक पाठक ने तो यहां तक कह दिया, "कहीं न कहीं किसी ने ये चालाकी कर ली, अब सबको लग रहा है शायद उनके साथ भी हो जाए।" इसपर एक और कमेंट आया, "अगर सस्ती छुट्टी चाहिए, तो कैम्पिंग कर लो। हम तो कभी-कभी स्टेशन पर बेंच के नीचे भी सो जाते हैं!"
हास्य और सीख – ग्राहक सेवा की दुनिया में सब जायज़ है?
यह किस्सा सिर्फ हँसी का पात्र नहीं है, बल्कि ग्राहक सेवा में काम करने वाले हर कर्मचारी के लिए एक सबक भी है—हर बार ग्राहक सही नहीं होता। कई बार ग्राहक 'दिखते हुए' भी 'गायब' हो सकते हैं, कम से कम OTA की नजर में! हमारे देश में भी 'जुगाड़' का बोलबाला है, लेकिन ऐसे किस्से सुनकर लगता है, पश्चिमी दुनिया भी अब इस रास्ते पर चल पड़ी है।
निष्कर्ष: आपके साथ ऐसा हुआ है क्या?
आखिर में, होटल कर्मचारी ने इस अजीब स्थिति को बड़े धैर्य और मज़ाकिया अंदाज़ में संभाला। ऐसे किस्से सिर्फ सुनने में ही मज़ेदार नहीं, सिखाते भी हैं कि काम की दुनिया में हर रोज़ कुछ नया देखने को मिल सकता है।
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कोई 'जुगाड़ू' ग्राहक आया है? या आपने भी कभी कोई ऐसा मजेदार अनुभव देखा-सुना है? कमेंट में जरूर बताइए, क्योंकि किस्से तो हमारे देश में हर गली-मोहल्ले में बिखरे पड़े हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: But I'm looking right at them...