होटल बुकिंग में जादू की उम्मीद: अतिथि का घमंड और रिसेप्शनिस्ट की मुश्किलें
अगर आपने कभी होटल में बुकिंग करवाई है या रिसेप्शन पर काम किया है, तो जरूर समझते होंगे कि 'अतिथि देवो भव:' का असली मतलब क्या है। लेकिन जब अतिथि देवता की जगह खुद को राजा समझने लगे, तब क्या हो? आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक यूरोपीय राजधानी के छोटे होटल की ऐसी ही घटना, जिसमें ग्राहक ने होटल से 'जादू' की उम्मीद कर डाली!
जब बुकिंग में आई अड़चन और शुरू हुआ ड्रामा
कहानी की शुरुआत होती है एक बिजनेस ट्रिप पर निकले NGO सदस्य के मेल से, जिसमें साहब ने होटल मैनेजमेंट को कड़ी नाराजगी जाहिर की। उनका कहना था कि जैसे ही वे पेमेंट कर रहे थे, होटल की वेबसाइट ने अचानक दिखा दिया – "अब कोई कमरा उपलब्ध नहीं है"। साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर, बोले – "यह पूरी तरह अस्वीकार्य है! मैं उम्मीद करता हूं कि आप कोई 'जादू' करके मुझे कमरा दिलवाएंगे, क्योंकि मैं तो बहुत महत्वपूर्ण काम के लिए आ रहा हूं।"
सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी NGO की सदस्यता का हवाला देकर भी दबाव बनाने की कोशिश की – जैसे NGO के सदस्य होने से होटल में स्पेशल पावर मिल जाए! और तो और, गलती भी Booking.com पर डाल दी कि शायद तकनीकी कारणों से ऐसा हुआ हो।
जब ग्राहक राजा से भी ऊपर समझे खुद को
अब होटल रिसेप्शनिस्ट की क्या गलती थी? होटल तो कई दिनों से फुल था, किसी ने आखिरी समय में कैंसिल किया, उसी दौरान ये महाशय बुक करने पहुंचे – और मौका चूक गए। लेकिन साहब का मेल ऐसा था, जैसे होटल वाले बगल में नई इमारत खड़ी कर दें!
एक कमेंट करने वाले ने बड़े मजेदार अंदाज में लिखा – "हमारे पास जादू की छड़ी नहीं है, भाई! होटल कोई 'हॉगवर्ट्स' नहीं है, जहां आपके लिए अचानक कमरा निकल आए।" एक और ने चुटकी ली – "भाई, अगर बुकिंग.com पर दिक्कत आई है, तो वहीं शिकायत करें, होटल को क्यों परेशान कर रहे हो?"
कुछने तो यह भी कहा कि ग्राहक ने जान-बूझकर होटल पर प्रेसर डालने के लिए मेल भेजा – यानी 'दरवाजा बंद है, तो खिड़की तोड़ दो' वाली सोच! होटल स्टाफ की हालत रामायण के लक्ष्मण जैसी – न उनकी गलती, न उनकी सुनी जाए।
'जादू' के लिए भारतीय जुगाड़?
हमें भारतीय होटल इंडस्ट्री की भी याद आ गई। यहां भी कई बार ग्राहक 'जुगाड़' या 'ऊपर से फोन' दिलवाने की उम्मीद करते हैं। एक कमेंट में किसी ने NYC फैशन वीक का मजेदार किस्सा सुनाया – "साहब, जब सारे होटल फुल हैं, तो क्या आप चाहेंगे कि आपके लिए नया होटल बना दिया जाए?" हमारे यहां भी ऐसे किस्से आम हैं – किसी रिश्तेदार को MLA साहब के रूम के लिए फोन करवाना, या 'हमारे चाचा बड़े अफसर हैं' कहकर रौब झाड़ना।
यही नहीं, किसी और ने सुझाव दिया – "आगे से सीधे होटल में बुकिंग करें, तीसरे पक्ष की वेबसाइटें हमेशा भरोसेमंद नहीं होतीं।"
होटल वालों का जवाब: मीठा लेकिन साफ
अब रिसेप्शनिस्ट की स्थिति सोचिए। एक तरफ होटल पूरी तरह बुक्ड, दूसरी तरफ ग्राहक की आक्रामक मेल। आखिरकार, होटल ने बड़े ही शालीन तरीके से जवाब दिया – "माफ कीजिए, आपके मनचाहे तारीखों में हमारे पास कोई कमरा उपलब्ध नहीं है। भविष्य में आप समय रहते सीधे हमसे संपर्क करें, तो हम जरूर मदद करेंगे।"
एक और कमेंट में किसी ने व्यंग्य में लिखा – "आपको एक रूम मिल सकता है, लेकिन वो डंपस्टर के पीछे है, न बिजली है, न बिस्तर, और उठाने के लिए स्टाफ आकर आपको लात मारेगा!" यानी, ग्राहक के 'जादू' की मांग का मजाक उड़ाते हुए।
निष्कर्ष: अतिथि देवो भव...पर लिमिट के साथ!
हमारे समाज में 'अतिथि देवो भव:' का मंत्र जरूर है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि होटल वाले भगवान का अवतार हैं, जो जादू से कमरे पैदा कर दें। तकनीकी गड़बड़ी या हाई डिमांड में कमरे मिलना मुश्किल हो सकता है – इसमें होटल वालों की क्या गलती?
होटल वालों की भी अपनी सीमाएं हैं। अतिथि का सम्मान जरूरी है, पर घमंड के आगे झुकना नहीं। अगली बार जब आप कहीं बुकिंग करें, तो समय रहते और सीधे होटल से संपर्क करें – और हां, अगर कमरा ना मिले, तो 'जादू' की उम्मीद न रखें!
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? या आपने भी किसी 'महा-महिम' अतिथि की फरमाइशें झेली हैं? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें – और हां, अगली बार होटल में बुकिंग करने से पहले इस कहानी को जरूर याद रखें!
मूल रेडिट पोस्ट: Entitlement at its finest