होटल का सेल्फ सर्विस चेक-इन: सुविधा या सर दर्द?
कभी सोचा है कि होटल में चेक-इन करना भी किसी घर की शादी के हलवे की तरह झंझट भरा हो सकता है? जी हां, आजकल टेक्नॉलॉजी ने हमारी जिंदगी आसान कर दी है, लेकिन कभी-कभी ये इतनी ‘आसान’ हो जाती है कि सिर पकड़ना पड़ जाए! इसी का मजेदार और थोड़ी खट्टी-मीठी झलक आपको आज मिलवाते हैं एक छोटे होटल के रिसेप्शनिस्ट के अनुभव से, जो Reddit पर वायरल हुआ है।
अब सोचिए, एक छोटा सा बुटीक होटल, नया-नवेला, जो अपने आपको सबसे अलग बनाने के चक्कर में सेल्फ सर्विस चेक-इन सिस्टम ले आया। यानी ना कोई पारंपरिक रिसेप्शन डेस्क, ना कोई झूमती-घूमती आंटी, सब कुछ खुद करो: नाम डालो, डेट डालो, एक्स्ट्रा चुनो, पैसे भरो और खुद ही अपनी चाबी काट लो। सुनने में बड़ा स्वच्छंद लगता है ना? लेकिन असली झंझट तो तब शुरू होता है जब ‘भारतीय परिवार’ जैसी ग्रुप बुकिंग आ जाए!
अब जरा सोचिए, एक के बाद एक पाचों ग्रुप आ गए – हर एक में कम से कम तीन कमरे। सबका नाम एक जैसा, पर बुकिंग रेफरेंस चाहिए चेक-इन के लिए। और वो रेफरेंस किसी के पास नहीं क्योंकि कौन होटल के ईमेल्स पढ़ता है भला? ऊपर से एक-एक कर सारे कमरे चेक-इन करने पड़ते हैं, जैसे शादी-ब्याह में हर मेहमान को मिठाई अलग से पकड़ानी हो!
और तो और, अगर किसी को ट्विन रूम चाहिए तो उसकी जानकारी पहले से होटल को नहीं मिली, अब होटल वाले क्या करें? जैसे हमारे यहां शादी में अचानक कोई बोल दे, “भैया, जलेबी गरम चाहिए थी!” – अब कहां से लाएं?
कहानी यहीं खत्म नहीं होती। एक मेहमान कुत्ता साथ ले आए, लेकिन होटल को पहले से बताया नहीं। अब रिसेप्शनिस्ट को जोड़-घटा करना पड़ेगा कि बिल में डॉग चार्ज जोड़ूं भी या मेहमान अगले दिन बिना पैसे दिए निकल लिए तो? वैसे भी होटल का सिस्टम इतना ‘आधुनिक’ है कि उसमें एडवांस पेमेंट या प्री-ऑथराइजेशन का ऑप्शन ही नहीं! यानि मेहमान आराम से सुबह-सुबह निकल सकते हैं, होटल वाले झूला झूलते रह जाएं।
ग्रुप बुकिंग्स में तो और मसाला है। होटल का रिसेप्शन खुला-खुला सा, सब लोग आ जा रहे हैं, कोई पार्किंग का झगड़ा कर रहा है, कोई अपने बच्चे के सोने की जगह ढूंढ रहा है। एक साहब तो बोले, “भैया, मेरी कार पार्क करवा दो, बाकी लोग बाद में देखेंगे।” अरे भाई, बाकी लोगों के बच्चे फुटपाथ पर सो जाएं, बस आपकी गाड़ी सुरक्षित रहे!
अब सबसे मजेदार किस्सा – एक प्यारा सा जोड़ा, जो नशे में टल्ली है, कहता है कि उनका रूम पहले से पे किया हुआ है। जबकि असल में पेमेंट उसी नाम के किसी दूसरे देश के मेहमान ने की थी। जैसे हमारे यहां शर्मा जी और वर्मा जी का सामान एक-दूसरे के घर पहुंच जाए, और दोनों एक-दूसरे को बिल पकड़ाएं!
रेडिट पर इस किस्से को सुनकर एक कमेंट आया – “भाई, तुम्हें तो फेल करवाने के लिए ही सेटिंग की गई थी!” और सच बात है, जब सिस्टम ही इतना उलझा हो, तो बेचारे रिसेप्शनिस्ट का क्या दोष? ऊपर से, होटल ने ग्रुप बुकिंग के लिए कोई अलग सेल्स पर्सन भी नहीं रखा, सब कुछ मशीनों के भरोसे – जैसे शादी में हलवाई छोड़कर रोबोट बुला लिए जाएं।
मतलब ये कि टेक्नॉलॉजी की चमक-दमक के पीछे असली मेहमाननवाजी कहीं गुम हो गई है। हमारे यहां तो चाय-पानी, पापड़, और ढेर सारी बातें – यही असली स्वागत है। और जब तक होटल में कोई ‘शराफत भरी’ रिसेप्शनिस्ट या ‘शकुंतला आंटी’ नहीं मिलेगी, खुद-ब-खुद चेक-इन करने का मजा अधूरा ही रहेगा!
आखिर में, मैं तो यही कहूंगा – चाहे डिजिटल इंडिया कितना भी बढ़ जाए, होटल में घुसते ही अगर चाय की प्याली, मुस्कुराती रिसेप्शनिस्ट और थोड़ा सा गप्प-शप्प ना मिले, तो मजा ही क्या? और आप बताइए, आपको क्या लगता है – सेल्फ सर्विस होटल या पुराना देसी स्वागत, कौन सा बेहतर? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा करें!
मूल रेडिट पोस्ट: Self Service Check-in Can Rot