होटल की शांति के वो सुनहरे पल: जब कुछ भी नहीं हुआ!
होटल में काम करना हमेशा हंगामे और भागदौड़ से भरा रहता है। मेहमानों की फरमाइशें, फोन की घंटियां, और कभी न खत्म होने वाली चेक-इन की लाइनें – ये सब हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर कुछ दिन ऐसे हों जब कुछ भी न हो? न कोई शिकायत, न कोई झगड़ा, न कोई डिमांड! जी हाँ, ऐसे ही कुछ जादुई दिन मेरी जिंदगी में भी आए, और सच मानिए, वो अनुभव बिल्कुल किसी "स्वर्ग" से कम नहीं था।
जब होटल में छा गई शांति की चादर
गर्मी की छुट्टियाँ खत्म हो चुकी थीं, और सितंबर के शौकीन मेहमान – जो सस्ते रेट्स में पाँच सितारा सुविधाएँ चाहते हैं – आने में अभी कुछ दिन बाकी थे। इस बीच, हमारे होटल में सिर्फ वही लोग रुके थे जिनके काम ने उन्हें वहाँ पहुँचाया था। ये लोग होटल के कायदे-कानून जानते थे, गाड़ी की जानकारी भी याद थी, पेमेंट तुरंत कर देते थे और फिर अपने कमरे में जाकर ऐसे गायब हो जाते जैसे गधे के सिर से सींग। न चाय की डिमांड, न फोन की घंटी, न ही किसी तरह का हंगामा!
मेरे लिए ये कुछ दिन ऐसे थे जैसे गर्मी के बाद पहली बारिश। मैं आराम से खाना खा सका, थोड़ी-बहुत वेब सीरीज देखी, किताबें पढ़ीं – शुद्ध आनंद! एक कमेंट में किसी ने लिखा भी, "मुझे नवंबर में घूमना बहुत पसंद है, क्योंकि भीड़ नहीं होती। होटल में बस चुपचाप चेक-इन करो, किसी से बात करने की ज़रूरत नहीं।" सच में, ऐसे दिनों में होटल का स्टाफ भी चैन की सांस लेता है।
होटल में भीड़: भारत के बाजार जैसी अफरा-तफरी
लेकिन भाई, शांति ज्यादा दिन टिकती नहीं! जैसे ही वीकेंड और लंबा छुट्टी वाला दिन आया, होटल में फिर से मेहमानों का सैलाब आ गया। ऐसे लग रहा था जैसे दिल्ली के चांदनी चौक में रविवार की भीड़ उतर आई हो! कोई कह रहा है – "मैंने तो पहले ही पेमेंट कर दी थी", कोई पूछ रहा है – "इतनी भीड़ क्यों है, क्या शहर में कोई मेला लग गया है?", तो किसी को प्लेट नंबर लिखने में दिक्कत हो रही है। हद तो तब हो गई जब एक मेहमान ने पेन को पेन होल्डर में डालने के बजाय हवा में उछाल दिया। भाई, पेन को वापस होल्डर में रखना इतना भी मुश्किल काम नहीं!
एक और मजेदार किस्सा – फोन पर किसी महिला ने पूछा, "आपका होटल कितने सितारा है?" मैंने कहा, "तीन सितारा, मैडम।" वो बोलीं, "ओह, ये तो बहुत कम है!" फिर बाथटब की लोकेशन पर सवाल-जवाब शुरू हो गए। मुझे लग रहा था, अब तो ये बातचीत लंबी चलेगी, इसलिए politely hold पर डाल दिया। लेकिन, जैसे ही मैंने फोन उठाया, मैडम फिर से सवालों की बौछार लेकर तैयार थीं। आखिरकार मैंने समय बता दिया कि बाद में कॉल करें – दिल ही दिल में सोचा, शायद अगली बार चेक-इन के बीच ही कॉल आ जाएगी!
मेहमानों की अजब-गजब हरकतें और कर्मचारियों की मुश्किलें
कई बार तो ऐसा लगता है कि मेहमान अपनी क्रेडिट कार्ड गाड़ी में छोड़कर आते हैं, और जब डिपॉजिट की बात आती है तो अचानक याद आता है – "ओ, शायद कार में रह गया!" एक कमेंट में किसी ने लिखा – "भला कौन अपनी वॉलेट या क्रेडिट कार्ड कार में छोड़ता है?" लेकिन यकीन मानिए, ऐसा रोज़ होता है। और अगर कार्ड मेटल का हो, तो दोपहर की धूप में वो तवे जैसा गरम हो जाता है।
हॉकी सीजन का जिक्र आते ही मेरे तो होश उड़ जाते हैं। एक कर्मचारी ने बताया कि हॉकी परिवार ऐसे होते हैं जैसे बरसात में निकले बंदर – माता-पिता तो लॉबी में जश्न मनाते रहते हैं और बच्चे पूरे होटल में दौड़ते-चिल्लाते रहते हैं। पिछली बार तो पुलिस को बुलाना पड़ गया था!
एक और कर्मचारी ने सलाह दी – "अगर मैडम फिर से फोन करें तो कह देना, 'आप शायद पाँच सितारा होटल की आदत डाल चुकी हैं, हम तीन सितारा हैं, आप चाहें तो बुकिंग कैंसल कर सकती हैं।'" लेकिन सच कहूं तो, ऐसे मेहमानों के किस्से लिखने में बड़ा मजा आता है – जीते-जी झेलना मुश्किल लेकिन लिखना बड़ा सुकूनदायक!
नवंबर की उम्मीद और कर्मचारियों की दुआएं
अब मेरा मन बस नवंबर का इंतजार कर रहा है। एक कमेंट में किसी ने कहा – "मैं भी नवंबर में छुट्टी पर जाता हूँ, क्योंकि भीड़-भाड़ नहीं रहती, शांति मिलती है।" होटल स्टाफ के लिए नवंबर किसी दो महीने की छुट्टी जैसा है। न कोई हंगामा, न कोई डिमांड – बस सुकून ही सुकून।
काम के बोझ और मेहमानों की फरमाइशों के बीच कभी-कभी वो "कुछ भी नहीं हुआ" वाले पल, सबसे ज्यादा यादगार और कीमती होते हैं। होटल इंडस्ट्री में काम करने वाले हर शख्स की यही दुआ होती है – "काश, हर महीने में कुछ दिन ऐसे सुकून वाले आ जाएं!"
निष्कर्ष: आपकी भी कोई ऐसी होटल या ऑफिस की मजेदार कहानी है?
अगर आपने भी कभी होटल में या अपने ऑफिस में ऐसी शांति या अजीबोगरीब मेहमानों का सामना किया हो, तो कमेंट में जरूर साझा करें। क्या आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा दिन आया जब कुछ भी, बिल्कुल कुछ भी नहीं हुआ? या फिर कोई मेहमान/क्लाइंट ऐसा आया, जिसकी हरकतें आपको आज भी हंसा देती हैं? आपकी कहानियों का इंतजार रहेगा – आखिर, जिंदगी की असली मिठास इन्हीं छोटे-छोटे किस्सों में छुपी है!
मूल रेडिट पोस्ट: A tale about nothing happening