होटल की लॉबी में सोने का सपना और नाइट ऑडिटर की नींद हराम!
होटल में काम करने वालों की ज़िंदगी रोज़ नए किस्सों से भरी होती है। कभी कोई मेहमान अपनी मर्जी का खाना माँगता है, तो कोई बिन बताए दोस्तों को कमरे में बुला लाता है। पर कुछ मेहमान ऐसे आते हैं, जो होटल स्टाफ की परीक्षा ही ले लेते हैं। आज की कहानी भी एक ऐसे ही रात के नाइट ऑडिटर की है, जिसने अपनी ड्यूटी के दौरान कुछ नया ही देख लिया।
जब 'नई तारीख' ने बढ़ा दी मुश्किलें
जैसा कि हमारे यहाँ रेलवे स्टेशन या बस अड्डे पर रात में लोग बेंच पर सोते मिल जाते हैं, वैसा ही कुछ होटल में तो चल नहीं सकता! कहानी के नायक – होटल के सीनियर नाइट ऑडिटर – अपनी ड्यूटी पर थे, साथ में एक नए ऑडिटर को ट्रेनिंग भी दे रहे थे। रात के डेढ़ बजे एक महिला होटल में दाखिल होती हैं। ऑडिटर को लगा, शायद लेट चेक-इन वाली कोई मेहमान होंगी, पर मामला कुछ और निकला।
महिला ने अपनी बुकिंग की कन्फर्मेशन दिखाई, लेकिन असली पेंच तो तब फँसा जब पता चला कि उनकी बुकिंग अगली तारीख से थी, और होटल का बिजनेस डेट बस कुछ मिनट पहले ही बदल चुका था। अब नियम के मुताबिक, उन्हें रात वहीं रुकना है तो एक एक्स्ट्रा रात का चार्ज देना पड़ेगा। बस, यहीं से शुरू हुआ मोलभाव – "आधी रात का ही तो समय है, आधा पैसा लो", "इतनी देर लॉबी में बैठने दो", वगैरह-वगैरह।
होटल है या मंडी? मोलभाव के मज़ेदार किस्से
हमारे यहाँ शादी-ब्याह या बाजार में मोलभाव आम बात है, लेकिन होटल के रेट कोई सब्ज़ी मंडी के भाव तो हैं नहीं! ऑडिटर महोदय ने साफ़ कह दिया – "मैडम, ये होटल है, मोलभाव नहीं चलता।" पर महिला ने हार कहाँ मानी! उन्होंने फोन पर किसी को बुलाया, जिसने कार्ड की डिटेल्स देकर पेमेंट करवाने की कोशिश की। होटल नियमों के मुताबिक, फोन पर पेमेंट लेना मना था, इसलिए ऑडिटर ने लंबी-चौड़ी प्रक्रिया बताई – "क्रेडिट कार्ड ऑथराइजेशन फॉर्म भरिए, तब हो पाएगा।" इस चक्कर में पचास मिनट फोन पर ही निकल गए।
एक पाठक ने मज़ाकिया अंदाज में कमेंट किया – "अरे भाई, हमारे लिए तो ये मंगलवार जैसा आम दिन है!" तो दूसरे ने कहा, "अगर होटल वाले लेट चेक-इन की पॉलिसी साफ-साफ बता दें, तो ऐसी उलझनें कम हो जाएँ।" कोई बोले, "आधी रात का रेट? ये आईडिया लोग कहाँ से लाते हैं? क्या होटल भी आधा कमरा देगा?" इस पर एक और ने लिखा, "शायद किसी रेस्टोरेंट में हाफ प्लेट फ्राईज़ देखकर आईडिया आया हो!"
लॉबी में सोना – न रात का चैन, न होटल का सुकून
महिला ने जब देखा कि कोई जुगाड़ नहीं बनने वाला, तो बोलीं – "कम से कम 6 बजे तक लॉबी में बैठने दो, तब आधे पैसे लगाओ।" अब होटल की लॉबी रेलवे स्टेशन का वेटिंग रूम तो है नहीं! ऑडिटर ने समझाया, "मैडम, ऐसे बैठना 'लॉइटरिंग' कहलाता है, जो होटल नीति के खिलाफ है।" इस पर महिला और नाराज हो गईं।
इस पूरे झंझट के बाद जब आखिरकार चेक-इन हो ही गया, तो मैडम ने नया सवाल दाग दिया – "मेरा सामान कौन ले जाएगा?" अब भैया, गाँव के मेलों में तो लोग खुद बैग उठाकर चलते हैं, और ये कोई पाँच सितारा होटल भी नहीं था जहाँ बेलबॉय की फौज हो। ऑडिटर को फिर समझाना पड़ा – "मैडम, आपको खुद ही सामान ले जाना होगा।" इस पर महिला का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
मेहमान बने भगवान... या सिरदर्द?
कहावत है – 'अतिथि देवो भव:' लेकिन अगर अतिथि खुद ही देवता बन जाएँ तो? एक कमेंट में लिखा था, "अगर मेहमान थोड़ा विनम्रता दिखाए, तो होटल स्टाफ भी मदद करने में पीछे नहीं हटता।" खुद ऑडिटर ने भी लिखा, "अगर मैडम ने इंसानियत दिखाई होती, तो शायद मैं खुद उनका सामान पहुँचा आता।"
एक दूसरे पाठक ने अपनी कहानी साझा की – "कई बार मैं देर रात होटल पहुँचा हूँ, लेकिन हमेशा 'कृपया' और 'धन्यवाद' के साथ बात करता हूँ, तो स्टाफ भी दिल खोलकर मदद करता है।" यह बात भारतीय संस्कृति में भी गहराई से बसी है – "मीठा बोलो, सब काम आसान।"
कुछ पाठकों ने सुझाव भी दिए – "अगर आपको कभी देर रात चेक-इन करना हो, तो पहले होटल को फोन करके बता दें, इससे रूम कैंसिल होने का खतरा कम हो जाता है।" कोई बोले, "हर होटल की पॉलिसी अलग होती है, इसलिए पहले से जानकारी ले लें।"
निष्कर्ष: होटल की 'फ्रंट डेस्क' है असली रणभूमि!
इस किस्से ने एक बार फिर साबित कर दिया कि होटल के फ्रंट डेस्क पर हर रात नई परीक्षा है। कभी कोई मेहमान नियम तोड़ने को उतारू, तो कोई अपनी सुविधा के लिए नियम बदलवाने पर आमादा। लेकिन होटल स्टाफ का पेशेंस और नीति ही होटल की साख बचाए रखते हैं।
आपका क्या अनुभव रहा है – क्या आपने कभी होटल में ऐसा अजीब अनुभव किया है? या फिर आप खुद होटल इंडस्ट्री में काम करते हैं? अपने मजेदार किस्से नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें! और अगली बार होटल जाएँ, तो 'कृपया' और 'धन्यवाद' कहना न भूलें – यही असली चाबी है!
मूल रेडिट पोस्ट: I’m sorry you can’t sleep in my lobby