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होटल के रिसेप्शन पर रोज़-रोज़ वही सवाल! मेहमानों की जिद्द का किस्सा

फोन के साथ परेशान मेहमान का कार्टून-शैली चित्र, जो आयोजन की चुनौतियों को दर्शाता है।
इस जीवंत 3D कार्टून में, हम एक मेहमान की निराशा को दिखाते हैं जो जन्मदिन के आयोजन के लिए स्थान ढूंढ रहा है। हमारे आरामदायक कोंडो यूनिट्स ठहरने के लिए सही हैं, लेकिन बड़े आयोजनों के लिए हमारे पास सामान्य क्षेत्र का अभाव है।

होटल में काम करने वाले भाई-बहनों, और होटल में रुकने का सपना देख रहे सभी पाठकों को नमस्कार! अगर आपने कभी होटल में रिसेप्शन पर काम किया है, तो आप जानते होंगे कि गेस्ट के सवाल कभी खत्म नहीं होते। कभी-कभी तो लगता है जैसे लोग जवाब सुनने नहीं, बस बार-बार पूछने ही आते हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक मज़ेदार और थोड़ी खीज भरी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो एक होटल रिसेप्शनिस्ट ने Reddit पर साझा की थी। कहानी है मेहमान की जिद्द और रिसेप्शनिस्ट की मजबूरी की—और हाँ, इसमें तड़का है सोशल मीडिया के शानदार कमेंट्स का भी!

जब गेस्ट की जिद्द ने बढ़ा दी रिसेप्शनिस्ट की टेंशन

कहानी कुछ यूं है—एक मेहमान ने होटल में दो बड़ी-बड़ी यूनिट्स बुक कर लीं। अब मैडम को अपनी माँ का जन्मदिन मनाना था, तय किया कि 15-20 लोगों की पार्टी होटल में ही जमाई जाए। रिसेप्शनिस्ट से पूँछा—"क्या आपके पास कोई कॉमन रूम या हॉल है जहाँ हम पार्टी कर सकें?" रिसेप्शनिस्ट ने बड़े आदर से मना कर दिया—"माफ़ कीजिए, इतनी बड़ी जगह हमारे पास नहीं है।"

अब यहाँ से शुरू होती है असली कहानी। मेहमान कहती हैं, "क्या आप पक्का बोल रहे हैं?" रिसेप्शनिस्ट बोले, "हाँ, बिल्कुल पक्का!" फिर पूछा, "कोई और होटल है जहाँ ऐसा मिल सके?" रिसेप्शनिस्ट ने भी भलाई में पड़ोस के होटल का नाम बता दिया, जहाँ इवेंट हॉल किराए पर मिल जाता है। लेकिन मेहमान फिर से बोल पड़ीं, "हमने तो बुकिंग आपके यहाँ की है!"—अब रिसेप्शनिस्ट मन में सोचते हैं, "बहन जी, सवाल तो आपने किया था, अब जवाब सुन भी लीजिए!"

बार-बार पूछने वाले मेहमान और 'क्या आप पक्का बोल रहे हैं?' का आतंक

हमारे देश में भी अक्सर ऐसा होता है—दुकान में चले जाइए, पूछिए, "भैया, चायपत्ती है?" दुकानदार बोले, "नहीं है।" फिर भी ग्राहक चार बार पूछेगा—"अरे, पीछे देख लो, ज़रा अच्छे से देख लो, शायद हो।" ठीक वही हाल होटल में भी है। Reddit पर एक कमेंट आया, "मेहमान 4 लोगों की सूट बुक करते हैं, 12 लोगों को घुसा देते हैं, फिर शिकायत करते हैं कि नाश्ते में सबको क्यों नहीं मिला। फिर धमकी—अगर हमें फ्री में न ठहराया तो ऑनलाइन बुरा रिव्यू डाल देंगे!" क्या यह सीन हमने अपने यहाँ नहीं देखा?

एक और कमेंट में, एक रिसेप्शनिस्ट मज़ाकिया अंदाज़ में कहती हैं—"क्या आप पक्का बोल रहे हैं? ये सवाल सुनकर तो सिर चकरा जाता है।" वाकई, यह 'क्या पक्का' पूछना, हमारे यहाँ 'क्या गारंटी है?' या 'थोड़ा और देख लो न!' जैसा ही है।

रिसेप्शनिस्ट की मजबूरी और मेहमानों की उम्मीदें: समझदारी की कमी या जानकारी का अभाव?

होटल इंडस्ट्री में काम करने वालों की हालत भी किसी सरकारी दफ्तर के बाबू से कम नहीं। बार-बार वही सवाल, वही उम्मीदें, और कभी-कभी तो गुस्सा भी—"आपको तो सब पता होना चाहिए!" एक कमेंट में एक यूज़र ने लिखा, "मैं अब होटल में नहीं, रिटेल में काम करता हूँ। ग्राहक स्टॉक का सामान तीन-तीन बार पूछते हैं, फिर भी मानते नहीं।" यानी हर जगह वही हाल!

कई बार तो मेहमान सोचते हैं, हम पूछते रहेंगे, शायद कोई और जवाब मिल जाए। एक कमेंट में किसी ने लिखा, "कई लोग बार-बार फोन करते हैं, सिर्फ़ इसलिए कि शायद दूसरी बार कोई और रिसेप्शनिस्ट दूसरी बात बोल दे!" भारतीय दादी-नानी की तरह—"बेटा, डॉक्टर ने मिठाई मना की है, लेकिन तेरे पापा से पूछ लूँ, शायद हाँ बोल दें!"

'मेहमान भगवान है'—लेकिन रिसेप्शनिस्ट की भी कोई सीमा है!

हमारे यहाँ कहा जाता है, 'अतिथि देवो भव:' यानी मेहमान भगवान है। लेकिन भगवान भी अगर बार-बार एक ही सवाल करे, तो भगवान के भी धैर्य की परीक्षा हो जाती है! कमेंट्स में एक यूज़र ने लिखा, "अगर मेहमान बिना पूछे आ जाते और उम्मीद करते कि होटल सब व्यवस्था कर देगा, तो भी परेशानी। पूछ लें, तो भी परेशानी।"

एक और मजाकिया कमेंट—"क्या आपको इवेंट हॉल नहीं है? तो आप वहीं लॉबी में पार्टी करवा दो! क्या हुआ, बिल्डिंग स्किल्स नहीं हैं?" यानी, क्या रिसेप्शनिस्ट जादूगर है? ट्रेलर से पार्टी हॉल खींच लाएगा?

इस पूरे किस्से में असली बात यही है—पूछिए जरूर, लेकिन बार-बार वही सवाल, उम्मीदें और अजीब-अजीब मांगें—ये किसी का भी दिमाग घुमा सकती हैं। रिसेप्शनिस्ट का काम है मदद करना, लेकिन उनकी भी कुछ सीमाएँ हैं।

निष्कर्ष: आप भी होटल जाएँ, तो रिसेप्शनिस्ट को समझें

अगर आप कभी होटल जाएँ तो रिसेप्शनिस्ट से सवाल ज़रूर पूछें, लेकिन बार-बार वही सवाल घुमा-फिराकर मत पूछिए। अगर जवाब 'ना' है, तो समझ लीजिए—ना मतलब ना! और अगर कोई विकल्प बताया जाए, तो उस पर नाराज़ मत होइए। याद रखिए, रिसेप्शनिस्ट भी इंसान हैं, और होटल की अपनी सीमाएँ होती हैं।

तो अगली बार जब आप अपने परिवार के साथ होटल बुक करें और पार्टी की प्लानिंग करें, तो रिसेप्शनिस्ट की भी स्थिति समझिए। कहीं ऐसा ना हो कि होटल वाले भी मन ही मन यही सोचें—"भगवान बचाए इन मेहमानों की जिद्द से!"

आपका क्या अनुभव रहा है होटल या किसी सर्विस इंडस्ट्री में? नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें! और अगर आपको ये किस्सा मजेदार लगा हो, तो दोस्तों के साथ भी बाँटिए—शायद अगली बार वे भी रिसेप्शन पर सवाल पूछने से पहले सोच लें!


मूल रेडिट पोस्ट: Short and sweet. What I hate