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होटल की रिसेप्शन पर मोल-भाव: 'भैया, सबसे अच्छा रेट बताइए!

सूट पहने सज्जन एक व्यस्त शनिवार रात को लगभग भरे होटल में कमरे की दरों पर बातचीत कर रहे हैं।
इस फोटो यथार्थवादी दृश्य में, एक भलीभांति सज्जित सज्जन फ्रंट डेस्क की ओर बढ़ते हैं, एक व्यस्त शनिवार रात को उपलब्ध अंतिम कमरों में से एक के लिए सर्वोत्तम दर सुनिश्चित करने के लिए तत्पर हैं। होटल के स्टाफ एक लगभग भरे घर का प्रबंधन करते हुए उत्साह से भरे माहौल में हैं।

होटल की रिसेप्शन पर काम करना… सुनने में बड़ा आसान लगता है, पर असलियत में हर रात कोई न कोई नया ड्रामा ज़रूर होता है। खासकर तब, जब शनिवार की रात हो, होटल लगभग फुल हो, और कोई साहब बार से निकलकर सूट-बूट में आ जाएँ – चेहरे पर मुस्कान, लेकिन मन में मोल-भाव करने की पूरी तैयारी!

आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। होटल में लगभग सारे कमरे बुक थे। सिर्फ कुछ ‘इमरजेंसी स्पेयर’ कमरे बचे थे, जो आमतौर पर तभी खोले जाते हैं जब कोई झोल हो जाए। लेकिन उस रात सब ठीक चल रहा था, तो रिसेप्शनिस्ट ने वो कमरे भी बुकिंग के लिए खोल दिए।

ग्राहक और होटल: मोल-भाव का महाभारत

तभी बार से एक सज्जन, जो किसी इवेंट में शरीक थे, बड़े ठाठ से काउंटर पर पहुँचे। चेहरे पर दोस्ताना मुस्कान, और सीधा सवाल – “आज के लिए आपका सबसे अच्छा रेट क्या है?”

रिसेप्शनिस्ट – जिसकी नज़र अभी-अभी सिस्टम पर गई थी – ने तुरंत जवाब दिया, “आज रात का रेट 190 डॉलर है।”

बस, मुस्कान गायब, माथे पर बल! फिर वही सवाल, थोड़ा ज़ोर देकर – “नहीं-नहीं, आपका सबसे अच्छा रेट क्या है?”

यह सुनते ही रिसेप्शनिस्ट के मन में भी हल्की मुस्कान आ गई। अब मोल-भाव शुरू हो चुका था, जैसे सब्ज़ी मंडी में आलू-टमाटर खरीदे जा रहे हों। उसने फिर, और भी दृढ़ता से जवाब दिया, “190 डॉलर ही है, साहब।”

साहब को यह मंज़ूर नहीं था। वो घड़ी पर टप-टप करते हुए बोले, “अरे, 10 बज गए हैं!”

रिसेप्शनिस्ट का जवाब – “ठीक है!” – और आँखों में वही भाव, ‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।’

होटल का रेट – कोई सब्ज़ी मंडी नहीं!

कई पाठकों को लग सकता है कि होटल रेट तो कुछ भी बोल देते हैं, थोड़ी देर में कम हो सकता है। लेकिन असलियत इससे बिल्कुल अलग है! एक कमेंट में किसी ने बड़ी मज़ेदार बात लिखी – “हर बार ग्राहक पूछे, तो हर बार 5 या 10 डॉलर बढ़ा देना चाहिए।” सोचिए, अगर हर बार मोल-भाव पर रेट बढ़ जाए, तो क्या हाल होगा!

एक और पाठक ने लिखा, “भैया, होटल कोई परचून की दुकान नहीं है जहाँ हर बार मोल-भाव चले। यह तो वैसे ही है जैसे ट्रेन में टिकट काउंटर पर ‘भैया, सबसे सस्ता टिकट दे दो’ कहो!” होटल के रेट आजकल कंप्यूटर सिस्टम से तय होते हैं, जैसे हवाई टिकट – जितनी देर, उतनी महंगी।

खाली कमरा? कोई ‘दया भाव’ नहीं!

अक्सर लोग सोचते हैं – ‘कमरा खाली रहेगा, तो होटल वाले थोड़ा सस्ता दे देंगे।’ पर एक अनुभवी होटल कर्मचारी ने जवाब दिया, “भाई साहब, होटल का कमरा अगर खाली रहता है, तो होटल का खर्च भी बचता है – ना बिजली, ना पानी, ना सफाई। होटल का मकसद हर कमरा भरना नहीं, बल्कि हर ग्राहक से सबसे बढ़िया रेट लेना है।”

यह बात बिल्कुल वैसी है जैसे मिठाई की दुकानवाले से रात को बची मिठाई आधे दाम में मांगना – पर होटल में उल्टा है, यहाँ बचे कमरे अक्सर और महंगे हो जाते हैं!

डिजिटल ज़माना, मोल-भाव का जमाना गया

एक पुराने होटल कर्मचारी ने कमेंट में लिखा, “बीस साल पहले शायद हम रेट में छूट दे सकते थे, लेकिन अब सब कुछ कंप्यूटर पर है। अगर आपको छूट चाहिए, तो ऑनलाइन वेबसाइट्स पर ढूँढ लीजिए। रिसेप्शन पर जो रेट दिख रहा है, वही फाइनल है।”

कई बार कोई ग्राहक बार-बार पूछता है, “भैया, और कम करो!” तो रिसेप्शनिस्ट को मन करता है – “अब तो रेट और बढ़ा दूँ!” एक ने तो मज़ाक करते हुए लिखा, “हर बार पूछने पर रेट बढ़ जाता है – कंप्यूटर भी सोचता है, ज्यादा डिमांड है, रेट बढ़ाओ!”

होटल कर्मचारी का दिल – और ग्राहक की उम्मीदें

अक्सर लोग समझते हैं कि रिसेप्शन पर बैठा व्यक्ति ‘अपना’ कमरा बेच रहा है – जैसे कमीशन मिलेगा या बोनस मिलेगा। पर असल में, अधिकतर जगहों पर ऐसा कुछ नहीं होता। काम बस इतना है – जो रेट सिस्टम में दिख रहा है, वही बोल दो। कई कर्मचारी तो यह भी मानते हैं कि अगर कम लोग आएँ, तो उनका शिफ्ट आराम से कटता है!

एक पाठक ने बड़ी शानदार बात कही – “अगर आप बड़े प्यार से, विनम्रता से पूछें, तो कभी-कभी शायद 10-20 डॉलर की छूट मिल जाए। लेकिन बार-बार, जिद्द करके पूछने से कुछ नहीं मिलता – उल्टा रिसेप्शनिस्ट का मूड भी खराब हो जाता है।”

निष्कर्ष: ‘सबसे अच्छा रेट’ की खोज – कहाँ तक जायज़?

तो अगली बार जब आप होटल में बिना बुकिंग के पहुँच जाएँ और मोल-भाव का मन करे, तो याद रखिए – होटल रिसेप्शन कोई सब्ज़ी मंडी नहीं! वहाँ जो रेट बोला गया है, वही आखिरी है। अगर फिर भी छूट चाहिए, तो ऑनलाइन वेबसाइट्स पर देख लीजिए या कोई डिस्काउंट कार्ड ले आइए। और हाँ, रिसेप्शनिस्ट की भी अपनी सीमाएँ होती हैं – गुस्से या जिद्द से कुछ हासिल नहीं होगा।

क्या आपके साथ कभी ऐसा अनुभव हुआ है? क्या आप भी कभी होटल में मोल-भाव करके सफल हुए हैं या आपको भी ‘190 डॉलर’ जैसा जवाब मिला? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें – पढ़कर सबको मज़ा आएगा!


मूल रेडिट पोस्ट: “No, no, what is your BEST rate?”