होटल की रिसेप्शन पर क्रेडिट कार्ड, गुस्सा, और गुप्त कहानियाँ: एक मज़ेदार घटना
होटल की रिसेप्शन पर काम करना, यानी हर दिन एक नई कहानी, नए नखरे और कभी-कभी पुराने राज़ खुलने का डर! अगर आप सोचते हैं कि रिसेप्शन पर बस चेक-इन और चेक-आउट ही होता है, तो जनाब, आप भारी ग़लतफ़हमी में हैं। यहाँ कभी-कभी ऐसे नज़ारे देखने को मिलते हैं कि बॉलीवुड की मिस्ट्री फिल्मों को भी मात दे दें।
आज की कहानी है एक ऐसी महिला की, जिन्हें हम मिसेज़ A कहेंगे, जो होटल के सुइट में चेक-इन करने आईं। उनका मूड वैसे ही उखड़ा हुआ था, ऊपर से उन्हें जल्दी थी। उन्होंने क्रेडिट कार्ड दिया, लेकिन रिसेप्शनिस्ट की पैनी नज़र ने देख लिया कि नाम तो किसी और का है! पूछने पर पता चला कार्ड उनकी पत्नी मिसेज़ B का है, जो वहाँ मौजूद नहीं थीं।
जब नियम-क़ानून और रिश्ते टकराएँ
हमारे यहाँ होटल में एक पक्का नियम है—जिसका नाम बुकिंग पर है, वही कार्ड, वही दस्तख़त। मिसेज़ A के पास और कोई पेमेंट का साधन नहीं था। अब मैं, यानी मैनेजर, खुद आकर समझाने लगा कि "मैडम, नियम तोड़ने से मेरी नौकरी भी जा सकती है!" लेकिन मिसेज़ A का गुस्सा सातवें आसमान पर—"यह क्या बेतुका नियम है! मेरी तबीयत भी ठीक नहीं, अभी-अभी सर्जरी हुई है, मुझे तुरंत आराम चाहिए!"
इस पर मिसेज़ B को फोन लगाया गया, वो भी नाराज़, क्योंकि वे बेटी के बर्थडे की तैयारी में व्यस्त थीं। पर क्या करें, नियम तो नियम है। अंत में, मिसेज़ B खुद आने को राज़ी हो गईं। जाते-जाते मिसेज़ A ने तंज कसते हुए कहा, "अब देखना, मेरी पत्नी आएँगी और तुम्हारे बॉस से मिलना चाहेंगी!" और फिर बेलबॉय के पास छोड़े अपने बैग की चिंता—"वो ज़मीन पर नहीं होना चाहिए, उसकी कीमत इतनी है कि तुम खरीद भी नहीं सकते!" (अब भाई, बैग तो Gucci का था, पर हम होटल वाले कुछ कम नहीं!)
होटल वालों की मुश्किलें: ग्राहक राजा या नियम का गुलाम?
इस किस्से ने मुझे हमारे देश के होटल कल्चर की याद दिला दी। भारत में भी अक्सर लोग सोचते हैं कि "पैसा दिया है, अब सब हमारी मर्ज़ी से चलेगा!" एक टिप्पणीकार ने कमाल की बात कही—"अगर कोई मेहमान आपके घर आकर आपकी शर्तों को तोड़ने लगे, तो आप क्या करेंगे?" होटल भी तो किसी का 'घर' ही है, यहाँ भी नियम सबके लिए बराबर हैं।
एक और पाठक ने लिखा, "अगर ग्राहक धमकी देने लगे, तो बुकिंग कैंसिल कर दो और घर भेज दो!" सच कहूँ तो, होटल वालों के लिए यह रोज़मर्रा की बात है—कभी कोई पहचान दिखाकर घुसना चाहता है, तो कभी दूसरे का कार्ड लेकर आ जाता है। एक ने तो लिखा कि उनका भाई जेल में है, लेकिन उसका कार्ड और ID लेकर होटल में आ गए! भाई साहब, होटल है या 'जन सेवा केंद्र'?
रिश्तों के पुराने गहरे राज़: होटल की दीवारों के पीछे की कहानी
अब असली ट्विस्ट तो बाद में आया, जब मुझे एक सहकर्मी ने मिसेज़ A के पुराने किस्से बताए। पता चला, पहले वो मिसेज़ C की पत्नी थीं। मिसेज़ C ने एक बार उन्हें होटल में स्पा और आराम के लिए गिफ्ट दिया था। लेकिन उसी रात मिसेज़ C ने कमरे में जाकर उनकी 'मौज' देख ली—मिसेज़ A, मिसेज़ B के साथ! वहाँ से जो महाभारत मची—सिक्योरिटी बुलानी पड़ी, टेबल तक टूट गया।
तब मिसेज़ A को यही बात पसंद नहीं आई थी कि बिना उनकी इजाज़त उनकी पत्नी को कमरे में जाने दिया गया। अब, वही मिसेज़ A चाहती थीं कि बिना मिसेज़ B के होटल में उनके कार्ड से चेक-इन हो जाए! अरे भई, नियम सबके लिए हैं, चाहे रिश्ता कोई भी हो।
ग्राहक-सेवा या नियम-सेवा?
आखिर में, मिसेज़ B होटल आईं, surprisingly शांत थीं, और जल्दी चेक-इन के बाद दोनों सुइट में चली गईं। जाते-जाते थोड़ा मुआवज़ा माँगा, लेकिन होटल ने सिर्फ लेट चेक-आउट की पेशकश की। न बॉस से मिलने की जि़द, न और कोई ड्रामा—कहानी ख़त्म, पैसा हज़म।
यह किस्सा हमें सिखाता है कि चाहे ग्राहक कितना भी "राजा" हो, नियम-क़ानून सबके लिए बराबर होते हैं। और होटल में काम करना यानी हर दिन 'कभी खुशी कभी ग़म'—कौन सा बैग असली है, कौन सा रिश्ता फर्जी, किसका गुस्सा असली, और किसकी मुस्कान नकली—यह सब जानना भी एक हुनर है!
आपकी राय?
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है जब नियम के आगे रिश्ते हार गए हों? या आपको भी किसी होटल में अजीबोगरीब ग्राहक मिले हों? कमेंट में अपनी मज़ेदार कहानी ज़रूर साझा करें!
अगली बार जब होटल जाएँ, तो याद रखें—रिसेप्शन पर भी ज़िंदगी किसी daily soap से कम नहीं!
मूल रेडिट पोस्ट: Let me use my partner’s credit card who is not here