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होटल की रिसेप्शन डेस्क पर मची अफरा-तफरी: मेसेजिंग सिस्टम की मुसीबतें

एनीमे शैली में निराश अतिथि सेवा कर्मचारी, संदेश प्रणाली के अलर्ट और कई अतिथि संदेशों से अभिभूत।
इस जीवंत एनीमे चित्रण में, हमारा अतिथि सेवा नायक लगातार संदेश अलर्ट के अराजकता से जूझ रहा है, जो तेज़ गति वाले वातावरण में कई अतिथि पूछताछ को संभालने की निराशा को दर्शाता है। क्या आप भी इन संदेश प्रणाली के बारे में ऐसा ही महसूस कर रहे हैं?

क्या आपने कभी सोचा है कि होटल की रिसेप्शन डेस्क के पीछे बैठे लोग किस तरह की जद्दोजहद से गुजरते हैं? हमें अक्सर लगता है कि ये तो बस कुर्सी पर बैठे रहते हैं, मेहमानों को चेक-इन कराते हैं, और मुस्कुराते रहते हैं। लेकिन, जनाब! असलियत कुछ और ही है। खासकर जब बात आती है उन "गेस्ट मेसेजिंग सिस्टम" की, जो रिसेप्शनिस्ट की जिंदगी को एकदम रोलरकोस्टर बना देते हैं।

आज हम आपको लेकर चलेंगे एक ऐसे होटल की फ्रंट डेस्क की दुनिया में, जहां टेक्नोलॉजी ने ज़िंदगी आसान बनाने के बजाए, उल्टा सिर दर्द बना दिया है।

मेसेजिंग सिस्टम: राहत या आफत?

पश्चिमी देशों की तरह अब भारत के बड़े-बड़े होटलों में भी गेस्ट मेसेजिंग सिस्टम आ गया है। मतलब – मेहमान अपने मोबाइल से सीधे रिसेप्शन पर सवाल भेज सकता है, जैसे – "नाश्ता कब मिलेगा?" या "मेरा डिजिटल की कहाँ है?" सुनने में तो बहुत शानदार लगता है, लेकिन असल में रिसेप्शनिस्ट का हाल ऐसा हो जाता है जैसे किसी शादी में अकेले हलवाई को पूरी बारात का खाना बनाना पड़ जाए।

एक फ्रंट डेस्क एजेंट (FDA) की कहानी पढ़कर तो मेरी हँसी छूट गई और दया भी आई। वो लिखते हैं – "हमारे होटल 'Schmilton' में ये सिस्टम लगा है। जैसे ही कोई मेसेज आता है, सिस्टम घंटी बजाता है, और अगर 10 सेकंड में जवाब न दिया तो बॉस से लेकर भगवान तक सब नाराज़ हो जाते हैं।" अब सोचिए, एक तरफ फोन की घंटी बज रही है, दूसरी तरफ गेस्ट सामने खड़ा है, और तीसरी तरफ मोबाइल पर 'पिंग'...ये सब एक साथ। और ऊपर से मेहमान अगर 10 सेकंड में जवाब न मिले तो "HELLO? HELLO? IS ANYONE THERE?" के मेसेज बरसाने लगते हैं, जैसे रिसेप्शनिस्ट कोई सुपरहीरो हो!

मेहमानों की बेचैनी और मेसेजिंग की 'दौड़'

हमारे समाज में भी धैर्य अब मोबाइल के इंटरनेट स्पीड जितना रह गया है – थोड़ा सा स्लो हुआ नहीं, तुरंत "कहाँ हो भाई?" चालू! Reddit के एक यूज़र ने तो कमाल लिख दिया – "लोगों को समझना चाहिए कि मेसेजिंग सिस्टम इमरजेंसी के लिए नहीं है। अगर सच में कोई बड़ी बात है, तो फोन मिलाओ, ना कि मेसेज पर जान निकालो!" एक और टिपण्णी आई – "क्या बॉस से पूछना चाहिए कि अगर एक साथ तीन काम आ जाएं, तो किसे प्राथमिकता दूं – सामने खड़े मेहमान को, फोन पर बात करने वाले को, या मेसेजिंग सिस्टम को?"

यहाँ तक कि एक यूज़र ने तो अपने बॉस को सलाह दी – "अगर आप मुझसे रिपोर्ट या कोई और काम करवा रहे हैं, तो स्पष्ट बता दीजिए कि क्या छोड़ूं और क्या करूं, वरना दोनों एक साथ नामुमकिन है।" यही हाल हमारे सरकारी दफ्तरों का भी है, जहाँ बाबूजी से एक साथ चार फाइलें निबटाने को कह दो, तो वो भी कहेंगे, "अरे भैया, हम भी आदमी हैं, कोई मशीन नहीं!"

टेक्नोलॉजी की 'भूल-भुलैया' और जुगाड़

कुछ होटलों में तो सिस्टम इतना ज़्यादा सख्त है कि मेसेज आते ही 'ओवरड्यू' का लेबल लग जाता है, जैसे किसी स्कूल में होमवर्क समय पर न करने पर टीचर की डाँट। मज़ेदार बात ये है कि कई जगह AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ऑटो-रिप्लाई भी आ जाती है, लेकिन वो जवाब इतना बेतुका होता है कि मेहमान और भड़क जाते हैं।

एक यूज़र ने बताया – "हमारे यहाँ अगर कोई मेहमान फोन करता है और साथ में मेसेज भी भेजता है, तो हमें दोनों जगह जवाब देना पड़ता है, वरना सिस्टम शिकायत कर देता है।" अब सोचिए, अगर मेहमान ने जवाब में सिर्फ '👍🏻' भेज दिया, तो उसका क्या जवाब दें? एक रिसेप्शनिस्ट ने तो मज़ाक में लिखा – "भैया, इसका भी स्टैण्डर्ड रिप्लाई बनवा दो – 'धन्यवाद, आपकी प्रतिक्रिया सर आँखों पर!'"

कुछ होटलों में ऑटोमेटेड मेसेज सेट कर दिए जाते हैं – "हम अभी व्यस्त हैं, जल्द ही आपकी मदद करेंगे।" काश, हमारे सरकारी रेलवे स्टेशन पर भी ऐसा सिस्टम आ जाता, तो पूछने वाले यात्रियों को बार-बार 'ट्रेन कब आएगी?' के जवाब में खुद-ब-खुद मेसेज मिल जाता!

हल कहाँ है? इंसान या मशीन?

अंत में सबसे बड़ा सवाल – क्या टेक्नोलॉजी से होटल स्टाफ की ज़िंदगी आसान हो रही है या उलझ रही है? Reddit पर एक यूज़र ने बिल्कुल सही लिखा – "अगर टेक्नोलॉजी चाहिए, तो उसके लिए अलग कर्मचारी रखो, वरना फ्रंट डेस्क वाले को चमत्कारी हाथी मत बनाओ।"

हमारे भारतीय होटलों में भी अब यही समस्या दिखने लगी है – टेक्नोलॉजी तो ले ली, पर उसके लिए आदमी नहीं बढ़ाए। ऊपर से गेस्ट की उम्मीदें सातवें आसमान पर!

निष्कर्ष: होटल कर्मचारी भी इंसान हैं!

तो अगली बार जब आप किसी होटल में जाएं और रिसेप्शन पर हल्का सा इंतजार करना पड़े, या आपका मेसेज देर से पढ़ा जाए, तो याद रखिए – सामने बैठा इंसान भी आपके जैसे ही है। उसके भी दो ही हाथ हैं, और वो भी चाहकर एक समय में चार काम नहीं कर सकता। टेक्नोलॉजी अच्छी है, पर इंसानियत उससे भी बड़ी चीज है।

अगर आपके पास भी ऐसी कोई मजेदार या चटकदार कहानी है, तो कमेंट में जरूर लिखिए। कौन जाने, अगली बार आपकी कहानी पर ही ये ब्लॉग बन जाए!

आपको क्या लगता है – टेक्नोलॉजी ने होटल की सर्विस को आसान बनाया या और मुश्किलें बढ़ा दीं? अपने विचार नीचे जरूर साझा करें!


मूल रेडिट पोस्ट: FDAs, Am I The Only One Who Hates __?