होटल की बदहाली और मेहमानों की शिकायतें: एक रिसेप्शनिस्ट की जंग
कभी सोचा है कि होटल में काम करने वाले लोग किन मुश्किलों से गुजरते हैं? आप छुट्टियों पर मस्त घूमने जाते हैं, लेकिन रिसेप्शन पर बैठे उस इंसान की कहानी शायद ही किसी ने सुनी हो। होटल की रंगीन तस्वीरें देखकर लगता है, वाह! क्या जगह है। मगर असली सच्चाई तो पर्दे के पीछे छुपी होती है – पुराने पंखे, जंग लगे पाइप और हर वक्त गुस्से में भरे मेहमान।
आज हम आपको एक छोटे होटल की ऐसी ही कहानी सुनाने वाले हैं, जहाँ बीस साल से कोई मरम्मत नहीं हुई, और हर दिन शिकायतों की झड़ी लग जाती है। रिसेप्शनिस्ट की हालत, मानो वो “सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे” के चक्कर में फंसा हो।
होटल की हालत – पुरानी हवेली का सा आलम
ज़रा सोचिए, सत्रह कमरों का एक छोटा सा होटल, जहाँ पिछले बीस साल में एक कील तक नहीं ठोकी गई। पाइपलाइन में जंग, बिजली की तारें झूलती हुई, बाथरूम में पानी का रिसाव और कमरों में सीलन की दुर्गंध। ऊपर से मेहमानों की उम्मीदें – “भाईसाहब, एसी ठंडा नहीं कर रहा”, “शावर से तो पानी ही नहीं आ रहा”, “टीवी क्यों नहीं चल रहा?”।
कर्मचारी बेचारा सुन-सुनकर पक चुका है। खुद Reddit पर अपनी भड़ास निकालते हुए कहता है – “मालिक लोग तो एक पैसा लगाना नहीं चाहते, हम दिनभर शिकायतें सुनते रह जाएँ।” अब बताइए, जब घर की छत टपक रही हो, तो नीचे खड़े आदमी को छाता पकड़ना ही पड़ेगा!
एक टिप्पणीकार ने मज़ाकिया अंदाज़ में लिखा – “भाई, हमारे यहाँ तो 400 कमरों का होटल है, 14 साल से एक ईंट नहीं लगी। तुम्हारे 17 कमरे तो स्वर्ग लगेंगे!” इस पर मूल पोस्टर ने भी हँसते हुए जवाब दिया, “भई, तुम्हारे यहाँ तो एकदम नर्क unlocked हो गया!”
मेहमानों का व्यवहार – छुट्टी पर आते ही बुद्धि कहाँ चली जाती है?
अब सोचिए, डॉक्टर, वकील, प्रोफेसर जैसे पढ़े-लिखे लोग छुट्टियों में होटल पहुँचते ही कैसे मासूम बन जाते हैं। “भैया, टीवी कैसे चालू करें?”, “कार्ड से दरवाजा नहीं खुल रहा”, “नाश्ता 12 बजे मिलेगा?” – जब साफ-साफ लिखा है कि नाश्ता 10 बजे तक है! एक साहिबा तो जिद पर अड़ गईं – “करन” स्टाइल में, “मुझे तो 1 बजे चेकआउट चाहिए।”
ऐसे में रिसेप्शनिस्ट सोचता है, “ये वो ही लोग हैं जो अदालत में फैसले सुनाते हैं, कॉलेज में पढ़ाते हैं, ऑपरेशन करते हैं – यहाँ आकर बच्चों जैसे क्यों बन जाते हैं?” कुछ टिप्पणीकारों ने तो यहाँ तक कह दिया – “छुट्टी पर जाते ही लोगों की अक्ल शायद होटल के गेट पर ही जमा हो जाती है।”
कर्मचारियों की थकान और मालिकों की बेरुख़ी – कहीं सुनी सी कहानी
भारत में भी ऐसे कई होटल आपको मिल जाएंगे, जहाँ मालिक सिर्फ कमाई देखता है, रख-रखाव की फिक्र नहीं। कर्मचारी बेचारे, न इधर के न उधर के। Reddit पर भी लोग यही सलाह देते दिखे – “मेहमानों को बोलो कि खूब नेगेटिव रिव्यू लिखें, तभी मालिक की नींद खुलेगी।” एक ने तो यहाँ तक कहा, “अगर होटल बहुत ही खराब हालत में है, तो नगर निगम या लोकल अधिकारी को शिकायत कर दो, हो सकता है होटल बंद ही करवा दें।”
मूल पोस्टर की अपनी कहानी भी दिलचस्प है – “मैं तो अब थक चुका हूँ। अक्टूबर में कॉलेज शुरू करूँगा, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पढ़ूँगा और इस नरक से निकल जाऊँगा। कभी-कभी लगता है, हाथ-पैर का काम करना शिकायतें सुनने से तो लाख गुना अच्छा है।”
सच्चाई की तस्वीर – होटल की ऑनलाइन छवि बनाम असलियत
मजेदार बात ये कि होटल की वेबसाइट पर अब भी “हायड्रोस्पा” और “सोलैरियम” की तस्वीरें चमक रही हैं, जबकि दोनों पिछले दो साल से बंद पड़े हैं। एक टिप्पणीकार ने सलाह दी – “Google Maps पर जाकर अपडेट कर दो कि ये सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं, ताकि कोई धोखा न खाए।”
एक और ने लिखा – “ऑनलाइन तस्वीरें देखकर लोग फँस ही जाते हैं। असल में कमरा देखकर तो खुद मेहमान को भी शर्म आ जाए!”
आखिर में – क्या हल है इस परेशानी का?
होटल इंडस्ट्री की ये कहानी अकेली नहीं है। भारत के छोटे शहरों में आपको ऐसे होटल मिल जाएंगे, जहाँ स्टाफ दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन मालिकों की कंजूसी और मेहमानों की उम्मीदें, दोनों का बोझ उनके सिर पर होता है।
अगर आप भी ऐसे होटल में गए हों, तो अगली बार रिसेप्शनिस्ट से गुस्से में न बोलें। हो सके तो अपनी फीडबैक लिखें, ताकि असली जिम्मेदारों तक बात पहुँचे। और मालिकों को भी समझना चाहिए – “नया बोतल नहीं, पुरानी शराब” वाली नीति अब नहीं चलेगी।
कभी-कभी दिल से लगकर कहने का मन करता है – “भैया, होटल चलाना आसान नहीं, और रिसेप्शन पर बैठे इंसान की मुस्कान के पीछे भी एक लंबी कहानी छुपी है।”
आपके साथ भी ऐसी कोई होटल वाली घटना हुई हो? कमेंट में ज़रूर बताइए, और इस किस्से को दोस्तों के साथ शेयर कीजिए। अगली बार होटल जाएँ, तो रिसेप्शनिस्ट को एक मुस्कराहट ज़रूर दीजिए – शायद उसका दिन बन जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: The hotel is falling apart, and we have to deal with the complaints and more. Complete burnout.