होटल की बुकिंग में भूल-चूक: ईमेल पढ़ना क्यों है ज़रूरी?
कभी सोचा है, छोटी-सी लापरवाही कैसे पूरे परिवार की छुट्टियों का मज़ा किरकिरा कर सकती है? होटल बुकिंग का नाम सुनते ही ज़्यादातर लोग सोचते हैं – बस फोन उठाओ, बुकिंग करवाओ और लग जाओ पैकिंग करने! लेकिन जनाब, असली खेल तो बुकिंग के बाद शुरू होता है – और वो है, कन्फर्मेशन ईमेल पढ़ना। हाँ, वही ईमेल जिसे हम सब अक्सर 'स्पैम' समझकर नजरअंदाज कर देते हैं।
होटल की गर्मियों की छुट्टियाँ: नए स्टाफ की नई कहानियाँ
जैसे हमारे यहाँ गर्मियों में कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ ट्यूशन पढ़ाते या पार्ट टाइम जॉब करते हैं, वैसे ही इस होटल में भी गर्मियों के लिए कुछ स्टूडेंट्स को काम पर रखा गया था। सोचिए, होटल का रिसेप्शन – जहाँ दिन-रात ग्राहकों की आवाजाही, फोन की घंटियाँ और बुकिंग्स की भरमार। इन स्टूडेंट्स का मुख्य काम था – फोन उठाना, रिजर्वेशन प्रोसेस करना और लोकल टूर पैकेज के टिकट तैयार करना।
पर भाई साहब, आजकल के बच्चों को कौन समझाए! ऑफिस में लैपटॉप खोलकर म्यूजिक बज रहा है, वेब सीरीज चल रही है और फोन की घंटी वैसे ही बजती रह जाती है – जैसे पड़ोस में बिजली जाने पर घंटों घंटी बजती रहती है और कोई दरवाजा नहीं खोलता। कई बार तो अपने दोस्तों को भी साथ ले आते थे, और ऑफिस को कैंटीन बना देते थे। बीच-बीच में कोई वरिष्ठ कर्मचारी टोकता – "भैया, ज़रा सीरियल बंद करो और फोन उठा लो, यहाँ लाइन लगी है!" लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात।
छोटी-सी ग़लती, बड़ी मुसीबत: ग्राहक का छुट्टी प्लान बर्बाद
अब असली किस्सा सुनिए – पिछले शुक्रवार एक चार सदस्यों वाला परिवार होटल में बुकिंग के बावजूद नहीं पहुँचा। होटल ने एडवांस पेमेंट ले लिया था, पर कोई खबर नहीं आई। हफ्ते भर बाद अचानक वही परिवार होटल आ धमका। रिसेप्शनिस्ट ने पूछा – "आपका कन्फर्मेशन नंबर दीजिए।" जब नंबर डाला तो पता चला, उनकी बुकिंग तो पिछले हफ्ते थी!
ग्राहक बोले – "नहीं-नहीं, हमने तो आज के लिए फोन पर बुकिंग करवाई थी!" रिसेप्शनिस्ट बोला – "ज़रारा आप अपना कन्फर्मेशन ईमेल देखिए..." और फिर उनके चेहरे पर वही 'भूकंप के बाद वाला एक्सप्रेशन'! भाई साहब, होटल फुल था, कोई कमरा नहीं मिला, और पैसे का क्या होगा, वो तो मैनेजमेंट ही बताएगा। मजबूरन उन्हें पास के एक महंगे होटल का रास्ता दिखा दिया गया।
गलती किसकी? मालिक की कंजूसी या स्टाफ की लापरवाही?
अब सवाल उठता है – ये गलती किसकी थी? क्या स्टूडेंट्स ने बुकिंग में गलत तारीख डाल दी? या ग्राहक ने खुद ही तारीख गलत समझ ली? कम्युनिटी में एक सज्जन ने बढ़िया बात कही – "अरे भाई, जितना पैसा दोगे, वैसा ही काम मिलेगा।" ये कुछ-कुछ हमारे यहाँ के 'सस्ते के चक्कर में महंगा रोना' वाली कहावत जैसा है। होटल मालिक ने कम वेतन पर स्टूडेंट्स को रख लिया, ट्रेनिंग ढंग से नहीं दी, और रिसेप्शन जैसे ज़िम्मेदार काम पर अकेला छोड़ दिया। नतीजा – बार-बार गलती, ग्राहकों की परेशानी, और पुराने स्टाफ की भी बैंड।
एक और कमेंट में एक साथी ने लिखा, "भाई, आजकल तो होटल वाले बार-बार ईमेल करते हैं, 'हम आपको फलाँ तारीख को देखेंगे', फिर भी लोग ध्यान नहीं देते!" सोचिए, अगर ग्राहक ने वक्त रहते ईमेल पढ़ लिया होता, तो शायद पैसों और छुट्टी दोनों की बचत हो जाती।
क्या सीखा? ईमेल पढ़ना है तो छुट्टी बचानी है!
हमारे यहाँ अक्सर लोग कन्फर्मेशन ईमेल को 'फालतू' समझकर डिलीट कर देते हैं, या बस मोबाइल पर देख कर छोड़ देते हैं। लेकिन ये छोटी-सी सावधानी बड़े-बड़े झंझट से बचा सकती है। जैसे शादी का कार्ड कभी बिना तारीख देखे नहीं रखते, वैसे ही बुकिंग कन्फर्मेशन को भी ध्यान से पढ़ना चाहिए। खासकर जब बात पैसों और परिवार की छुट्टियों की हो!
आखिरी बात: "ना पढ़े ईमेल, तो पछताए छुट्टी में..."
आखिर में, इस कहानी से यही सीख मिलती है – चाहे आप कहीं भी बुकिंग करें, होटल हो या ट्रेन, हमेशा अपना कन्फर्मेशन ईमेल ध्यान से पढ़ें। एक छोटी सी गलती – या तो स्टाफ की, या आपकी – कभी-कभी पूरे साल की छुट्टियों का प्लान बिगाड़ सकती है।
तो अगली बार जब भी होटल बुक करें, ईमेल पढ़ना न भूलें। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? या आपने किसी दोस्त या रिश्तेदार को ऐसी गड़बड़ी में फँसते देखा है? अपनी कहानी नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें – आखिर, सीख तो सबको मिलनी चाहिए!
मूल रेडिट पोस्ट: Reading your confirmation emails can be a good idea