होटल के फ्रंट डेस्क की छुट्टियों की उठापटक: ‘शिफ्ट बदलना’ या ‘दही जमाना’?

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कभी-कभी ऑफिस की जिंदगी भी बॉलीवुड की मसाला फिल्मों से कम नहीं होती। खासकर जब बात हो छुट्टियों की और शिफ्ट बदलने की। हमारे देश में तो त्योहारों पर ‘कौन किस दिन छुट्टी लेगा’ इस पर महाभारत छिड़ जाती है। ऐसा ही कुछ किस्सा सामने आया है एक विदेशी होटल के फ्रंट डेस्क से, जिसे पढ़कर आपको अपने ऑफिस के किस्से याद आ जाएंगे!

तो जनाब, मामला यूं है कि एक होटल के फ्रंट डेस्क पर काम करने वाली ‘हमारी नायिका’ (u/Hamsterpatty) हर हफ्ते गुरुवार, शुक्रवार और शनिवार काम करती हैं। बाकी दिन दूसरी सहकर्मी की ड्यूटी होती है। अब क्रिसमस आ रहा था, सभी को छुट्टी चाहिए थी, जश्न मनाने का मन था। हमारी नायिका ने सोचा, “चलो, इंसानियत दिखाते हैं, सहकर्मी को क्रिसमस ईव (त्योहार की पूर्व संध्या) की छुट्टी दे देते हैं। मुझे खुद भी क्रिसमस के दिन आलसी बनकर घर बैठना अच्छा लगेगा!”

सहकर्मी ने भी खुशी-खुशी हामी भर दी। पूरे महीने बातचीत चलती रही, तीन बार आमने-सामने पक्की बात हुई, एक बार मैसेज से भी कन्फर्म किया गया। अब इस पर तो राम भरोसे ही थी!

लेकिन... किस्मत ने पलटी मारी। नायिका ने बॉस को छुट्टी के लिए आवेदन दिया, तो बॉस का फोन आ गया – “बात कुछ गड़बड़ है!” दरअसल, सहकर्मी ने मैनेजर को बताया था कि वो तो सिर्फ सुबह की शिफ्ट कर रही हैं, न कि पूरी शिफ्ट। मतलब, नायिका को दो-दो दिन काम करना पड़ता और सहकर्मी शाम को अपने ‘स्पेशल’ बॉयफ्रेंड के साथ फिल्म देखने निकल जाती!

अब हमारे यहां तो इसे कहते हैं, “दही जमाकर मलाई कोई और निकाल गया!” यानी मेहनत किसी ने की, मजा कोई और ले गया।

नायिका परेशान – “मैंने तो कभी भी दोनों दिन काम करने के लिए हां नहीं कहा था! मैंने तो शिफ्ट बदलने को कहा था, न कि अपनी छुट्टियां कुर्बान करने को!”

अब यहां, एक पाठक (u/IntelligentLake) ने बड़े ही समझदारी से कहा, “लगता है दोनों ओर गलतफहमी हो गई। लेकिन जानबूझकर हुआ या सिर्फ कन्फ्यूजन, ये तो आप दोनों ही बेहतर बता सकते हैं।” तो भाई, ऑफिस में भी यही होता है – कभी-कभी मैसेजिंग में भावनाएं और इरादे धुंधले हो जाते हैं, और बाद में “अरे वो तो मेरा मतलब नहीं था!” वाली नौबत आ जाती है।

हमारी नायिका का दर्द भी समझिए – “हम दोनों की शिफ्ट साल भर से तय हैं। फिर ऐसा कैसे हुआ कि मेरी मेहनत, उसकी छुट्टी बन गई?” अब भले ही वो इसे दोबारा न उठाए, लेकिन अगली बार जब कोई ‘शिफ्ट बदलने’ की बात करेगा, तो याद जरूर आएगा – “भैया, पिछली बार तो मैं फंस गई थी!”

अब कहानी में ट्विस्ट – होटल की मैनेजर ‘यूनिकॉर्न’ निकलीं! बहनजी और असिस्टेंट मैनेजर ने खुद मिलकर क्रिसमस ईव की शिफ्ट बांट ली, ताकि नायिका की छुट्टी बच जाए और वो अपने दोस्तों-रिश्तेदारों को गिफ्ट बांट सके। कह सकते हैं – “भगवान ऐसे बॉस सबको दे!”

इस सब के बीच एक और सहकर्मी (u/katyvicky) का हाल जानिए – बेचारे को तेज पेट दर्द और उल्टी की वजह से अस्पताल भागना पड़ा। पहली बार कोविड के बाद ऑफिस से छुट्टी ली। उन्होंने कहा, “अब तो बिस्तर ही बुला रहा है!” भाई, सेहत सबसे ऊपर है, काम तो चलता रहेगा।

इन सब किस्सों से एक बात तो साफ है – चाहे इंडिया हो या विदेश, ऑफिस और छुट्टियों की राजनीति हर जगह एक जैसी है। कभी-कभी ऑफिस में भी रिश्तों का टेस्ट होता है – दोस्ती निभाओ या खुद के लिए खड़े हो जाओ!

हमारे यहां तो कहते हैं, “ना नौ मन तेल होगा, ना राधा नाचेगी।” मतलब, जब तक सबकी सहमति न हो, छुट्टियां और शिफ्ट बदलना आसान नहीं!

इस पोस्ट के कमेंट्स में भी कई ने कहा – “ऐसी गलतफहमियां होना आम बात है, लेकिन अगली बार सबकुछ लिखित में पक्का कर लो।” एक पाठक ने चुटकी ली, “अब जब अगली बार वो शिफ्ट बदलने कहे, तो अपनी बारी आने तक याद रखना!”

तो पाठकों, अगली बार जब ऑफिस में कोई शिफ्ट बदलने की बात करे, तो सबकुछ साफ-साफ, लिखित में तय कर लें। वरना हो सकता है, आपकी मेहनत की मलाई कोई और ले जाए!

आपका क्या ख्याल है? क्या आपके ऑफिस में भी ऐसे किस्से चलते हैं? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, और अगर आपके पास भी ऐसी मस्त कहानियां हैं, तो हमारे साथ साझा कीजिए।

क्योंकि ऑफिस की दुनिया में, असली मसाला तो यहीं मिलता है!


मूल रेडिट पोस्ट: Weekly Free For All Thread