होटल की पार्किंग में ट्रक ड्राइवर की ज़िद – जब नियमों से भिड़ गई ‘मालिकी’!
होटल का रिसेप्शन – यहाँ रोज़ ज़िंदगी के नए रंग देखने को मिलते हैं। कोई मुस्कराता हुआ आता है, कोई थका-हारा, तो कोई बस अपना हक़ समझकर सब कुछ अपने हिसाब से करना चाहता है। लेकिन जब एक ज़िद्दी ट्रक ड्राइवर अपने तीन कमरों की बुकिंग लेकर होटल पहुँचे, तो रिसेप्शनिस्ट बाबू को भी समझ आ गया कि आज की ड्यूटी कुछ अलग ही रंग दिखाने वाली है।
जब ट्रक की चौड़ाई से तंग हो गई होटल की तंग पार्किंग
शुक्रवार की रात, होटल फुल होने के करीब, और तभी रिसेप्शनिस्ट साहब ने देखा – एक बड़ा सा ट्रक, जो सामने की छोटी सी पार्किंग में तिरछा घुसने की कोशिश कर रहा था। जरा सोचिए, एक ट्रक 6-7 गाड़ियों की जगह कब्ज़ा कर ले, वो भी वीकेंड की भीड़ में! हमारे देश में तो मोहल्ले की गली में कोई स्कूटर तिरछा लगा दे, तो पड़ोसी तीन दिन तक ताना मारते रहते हैं – "भाईसाहब, ये रोड आपकी पर्सनल है क्या?"
होटल वाले ने तमीज़ से समझाया, "भैया जी, ज़रा पीछे की पार्किंग में लगवा दीजिए, वहाँ से एक्ज़िट भी पास है।" लेकिन साहब का जवाब सुनिए – "पिछली बार तो हमें यहीं पार्क करने दिया था!" अब कोई उनसे पूछे कि साहब, चार साल पहले तो घर में भी मोबाइल 2G चलता था, अब तो 5G आ गया! समय के साथ नियम बदल जाते हैं, लेकिन कुछ आदतें नहीं जातीं।
जब ‘पॉलिसी’ से ज्यादा ज़रूरी बन गई ‘मेरी मर्ज़ी’!
सारे होटल्स में नियम होते हैं कि बड़ी गाड़ियाँ पीछे पार्क करें, ताकि सबको जगह मिले। लेकिन ट्रक मालिक बोले – "ये कोई पॉलिसी नहीं है।" अब रिसेप्शनिस्ट ने भी ठान ली – "सर, चाहे आप कल न रुकें, पर इस वीकेंड तो गाड़ी पीछे ही लगेगी।" साहब को गुस्सा और भी चढ़ गया, लाइव रिव्यू डाल दिया – "चेक-इन खराब, अपनी मर्ज़ी नहीं चलाने दी।"
सोचिए, जैसे गाँव के मेले में कोई अपनी भैंस सबसे बीच में बांध दे, और बाकी सबको बोले – "मेरी भैंस है, मेरी मर्ज़ी!" वैसे ही ये ट्रक वाले साहब थे। एक कमेंट में तो किसी ने बड़ा मज़ेदार तंज कसा – "बड़ी गाड़ी, छोटी सोच!" (अंग्रेज़ी में कमेंट था – "Big truck, small penis" – लेकिन हमें तो तमीज़ से कहना है!)
कमेंट्स का महाभारत – हर कोई बना होटल एक्सपर्ट
कई लोग बोले – "भैया, पीछे पार्क करो, ट्रेलर घुमाना आसान रहता है।" एक कमेंट में किसी ने लिखा, "हमेशा जहाँ भी बड़े ट्रेलर वाले आते हैं, खुद ही पीछे पार्क करते हैं, ताकि सबका चैन बना रहे।" और सच भी है, जैसे हमारे यहाँ ट्रक ड्राइवर अपने ढाबे के बाहर शांति से ट्रक लगाकर पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं, वैसे ही समझदारी होटल की शांति बनाए रखती है।
एक और मज़ेदार कमेंट – "आजकल तो लोग अपनी मर्ज़ी न चले, तो फौरन निगेटिव रिव्यू ठोक देते हैं।" बिल्कुल सही! सोशल मीडिया पर रिव्यू देना आजकल वैसे ही है जैसे मोहल्ले की आंटी सबके घर की चाय पर अपनी राय रखने लगें।
किसी ने होटल वाले की तारीफ भी की – "सर, ये नियम सबके लिए हैं, कोई पुराने ज़माने के हवाले देकर आज की भीड़ में 7 जगह घेर ले, ये तो ठीक नहीं।" एक कमेंट तो इतना फनी था – "अगर तुम्हें बार-बार ऐसी परेशानी हो, तो अगली बार ट्रक के लिए टो टरक बुलवा लेना।" (मतलब सीधा-सीधा होटल की शांति भंग करने वालों को सबक सिखाओ!)
नियम तो नियम हैं, चाहे राजा हो या रंगरूट
हमारे देश में भी कई बार लोग पुराने अनुभव के नाम पर नई जगहों पर भी अपनी ही चलाना चाहते हैं। "अरे, भैया! पिछले साल तो ऐसे ही हुआ था!" – ये डायलॉग कहीं भी सुनाई दे सकता है, चाहे राशन की दुकान हो या शादी का पंडाल।
लेकिन होटल या किसी व्यवस्था का मज़बूत होना इस पर है कि नियम सबके लिए बराबर हों। होटल स्टाफ ने जैसे सलीके से जवाब दिया – "सर, आपकी मर्जी, पर इस बार नियम यही हैं," – वही असली प्रोफेशनलिज़्म है।
निष्कर्ष – अपने हक़ के साथ दूसरों का भी ख्याल रखें
इस कहानी से यही सीख मिलती है – चाहे होटल हो या घर, पार्किंग हो या रिश्ते – जगह सबको बराबर मिलनी चाहिए। अगर हम दूसरों की सुविधा का भी ध्यान रखें, तो ज़िंदगी और समाज दोनों ही ज़्यादा खूबसूरत बनते हैं।
तो अगली बार जब आप कहीं पार्किंग करें, बड़े ट्रक या छोटी बाइक लेकर, ज़रा सोचिए – क्या मेरी वजह से किसी और का हक़ तो नहीं मारा जा रहा? और हाँ, अगर होटल वालों ने कोई नियम बताया, तो उसमें उनकी मजबूरी समझिए, न कि अपनी ‘मालिकी’!
आपको कभी ऐसी पार्किंग वाली या किसी नियम से जुड़ी मज़ेदार घटना हुई हो, तो कमेंट में ज़रूर लिखिए। और अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो, तो शेयर करना न भूलें – ताकि अगली बार कोई और ट्रक वाला ‘पार्किंग की मर्जी’ न दिखा सके!
मूल रेडिट पोस्ट: Guest gets mad because i made him park in the back