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होटल की नौकरी या बच्चों का स्कूल? जब हर कोई हाथ पकड़वाने पर मजबूर कर दे!

आत्मविश्वासी पेशेवर की एनीमे-शैली की चित्रण, जो समूह की बिक्री का प्रबंधन और कार्यों का समन्वय सहजता से कर रहा है।
इस जीवंत एनीमे चित्रण में, हम एक समर्पित बिक्री पेशेवर को देख रहे हैं जो कुशलता से कार्यों को संभाल रहा है—आरक्षण से लेकर बिलिंग तक। यह छवि टीमवर्क और दक्षता का सार दर्शाती है, यह दिखाते हुए कि कैसे कोई व्यस्त कार्य वातावरण में सभी का हाथ थाम सकता है।

क्या आपने कभी सोचा है कि ऑफिस में सबसे आसान काम भी कभी-कभी पहाड़ जैसा क्यों लगने लगता है? और जब आपके ही साथी बार-बार वही गलती दोहराते हैं, तो मन में यही आता है – “क्या मैं सबका हाथ पकड़कर उन्हें सिखाऊँ?” बस, आज की कहानी ऐसे ही एक होटल कर्मचारी की है, जिसने अपने सहकर्मियों की लापरवाही और आलस्य का पूरा अनुभव किया… और मज़ा देखिए, बाकी सब आराम से अपनी सेलरी ले रहे हैं, और बेचारा ये बंदा सबकी गलती सुधारने में लगा है!

जब ग्रुप सेल्स वाला बने सबका ‘माई-बाप’

सोचिए, आप ग्रुप सेल्स में हैं – बड़े-बड़े इवेंट्स, बुकिंग्स, रिजर्वेशन, बिलिंग, हर चीज़ की जिम्मेदारी आपके सिर। सबकुछ तसल्ली से लिख-लिखकर नोट्स में डाल देते हैं, ताकि किसी को बच्चा बनकर न समझाना पड़े। लेकिन आगे क्या होता है? सामनेवाले को स्क्रीन पढ़नी नहीं आती, बटन दबाना नहीं आता, और छोटी सी गड़बड़ी भी पहाड़ बन जाती है।

यहाँ तक कि होटल के सामने वाले काउंटर (फ्रंट डेस्क) के लोग छोटी सी समस्या देखकर मेहमान को “इससे पूछो, उससे पूछो” कहते हुए पूरे होटल का चक्कर लगवा देते हैं। एक गेस्ट की बुकिंग में साफ-साफ लिखा था – “2 रातें मास्टर अकाउंट पर, 2 रातें खुद पेमेंट करनी है।” लेकिन फ्रंट डेस्क ने सारी चार रातें मेहमान के कार्ड पर चार्ज कर दीं। अब बेचारा मेहमान गुस्से में होटल में घूम-घूम कर सर पटक रहा है, और फ्रंट डेस्क वाले ऐसे हैरान हैं जैसे किसी ने उनसे संस्कृत में बात कर ली हो!

अकाउंटिंग का आलम – “हमसे ना हो पाएगा!”

अब बात करें अकाउंटिंग की – एक मेहमान ने दो बार चार्ज होने की शिकायत की, साथ में बैंक स्टेटमेंट और स्क्रीनशॉट भेज दिए। लेकिन अकाउंटिंग वालों की हालत ऐसी कि “हमें समझ में नहीं आ रहा!” आख़िरकार, ग्रुप सेल्स को ही सब छोड़ना पड़ा – पाँच मिनट में सब पता कर लिया, चार्जेस मैच कर दिए, और सच्चाई सामने ला दी। कमाल की बात ये कि जो अकाउंटेंट होटल का हिसाब-किताब संभालता है, वो खुद कहता है कि उसने कभी ट्रेनिंग पूरी ही नहीं की। और ऊपर से उसकी सैलरी भी ज़्यादा है!

जब हर कोई जिम्मेदारी से भागे... तो बेचारा ग्रुप सेल्स!

होटल के जनरल मैनेजर (GM) तक को जब कोई छोटी-छोटी बुकिंग कन्फर्म या कैंसल करनी हो, तो सीधा ग्रुप सेल्स वाले के पास भेज देते हैं – न ग्रुप बुकिंग, न कोई खास बात, फिर भी “भैया, ज़रा देख लेना।” लगता है जैसे सबको सिर्फ एक ही आदमी पर भरोसा है, बाकी सब हाथ झाड़कर बैठे हैं।

एक कमेंट करने वाले (u/Stanislav_Lamesauce) ने तो मज़ाक में लिखा, “भाई, तुम्हें तो हर किसी का काम करने के पैसे मिलने चाहिए!” वहीं, दूसरे ने (u/TravelerMSY) सलाह दी, “इनका काम मत करो, इन्हें खुद सीखने दो, जलेंगे तो समझेंगे!” सच कहें तो, ये बातें भारतीय दफ्तरों में भी खूब सुनने को मिलती हैं – जहाँ एक बंदा सबका बोझ उठाता है और बाकी टाइमपास।

होटल इंडस्ट्री की ‘जुगाड़’ संस्कृति – हर जगह एक जैसी!

एक और मजेदार किस्सा एक कमेंट में आया (u/Gonzo_Journo) – “मैंने फ्रंट डेस्क पर एक गेस्ट को, जो लिमिट से ज्यादा खर्च कर चुका था, बाहर कर दिया और सबको सख्त हिदायत दी कि दोबारा चाबी मत देना। लेकिन 45 मिनट बाद वही गेस्ट फिर से चाबी लेकर कमरे में घुस गया – किसी ने मेरी बात सुनी ही नहीं!” इस पर कई पाठकों ने सिर पीटते हुए लिखा – “हमारे होटल में तो उल्टा है, सेल्स वाले गड़बड़ी करते हैं और फ्रंट डेस्क को भुगतना पड़ता है!”

यानी, चाहे अमेरिका हो या भारत, ऑफिस की ये ‘जुगाड़’ और जिम्मेदारी से भागने की बीमारी हर जगह एक जैसी है। एक कमेंट ने तो पूरा लहजा भारतीय बना दिया – “भैया, जब हर कोई टाल रहा है, तो या तो नई नौकरी देखो या सैलरी तीन गुना बढ़वा लो!”

क्या सीखें इस कहानी से?

होटल इंडस्ट्री हो या कोई भी ऑफिस – जब तक सब अपने-अपने हिस्से का काम ईमानदारी से नहीं करेंगे, तब तक किसी एक के सिर पर सारा बोझ लदता रहेगा। और जब उस एक की भी हिम्मत जवाब दे जाएगी, तब सबको समझ आएगा कि टीमवर्क किसे कहते हैं। आजकल की भाषा में कहें तो – “सबका साथ, सबका विकास... ऑफिस में भी लागू होना चाहिए!”

अगर आप भी ऐसे ‘सबका हाथ पकड़ने वाले’ कर्मचारी हैं, तो वक्त आ गया है कि अपनी सीमाएँ तय करें। ज़रूरत पड़े तो खुलकर बोलें, या फिर अपनी मेहनत की सही कीमत माँगें। आखिर, हर किसी की जिम्मेदारी खुद निभाना ही सच्चा प्रोफेशनलिज़्म है – चाहे होटल हो या भारत का कोई भी दफ्तर!

आप क्या सोचते हैं?

क्या आपके ऑफिस में भी ऐसा ही माहौल है? क्या आपने भी कभी सबका बोझ अकेले उठाया है? अपनी राय, मजेदार किस्से या सुझाव नीचे कमेंट में जरूर लिखें – क्योंकि “साझा दुख, आधा सुख!”


मूल रेडिट पोस्ट: Holding everyone's hand