होटल की नौकरी या डरावनी फिल्म? दो हफ्तों की ऐसी कहानी कि दिल दहल जाए!
किसी ने ठीक ही कहा है – “नौकरी तो करनी है, पर जान भी प्यारी है!” अब सोचिए, अगर आपकी नौकरी ही रोज़ डर और तनाव का दूसरा नाम बन जाए, तो क्या होगा? होटल की रिसेप्शन डेस्क पर बैठना आमतौर पर शांत, मुस्कराते हुए लोगों से मिलने का मौका होता है। लेकिन Reddit यूज़र u/AloneDebt2693 की कहानी सुनिए, तो लगेगा जैसे ये कोई हॉरर वेब सीरीज़ का सेट है, जहाँ हर दिन नया ड्रामा, नया खतरा और नया सरदर्द मिलता है।
होटल या क्राइम पेट्रोल का सेट?
हमारे कहानी के नायक की नौकरी एक ऐसे होटल में है, जहां की हालत सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। सोचिए, एक जगह जहाँ दीवारों के पीछे से तिलचट्टे (कॉकरोच) झांकते हैं, गलियारे में अपराधी और बेघर लोग घूमते हैं, कभी-कभी गोलीबारी हो जाती है, और ऊपर से होटल में मेथ लैब्स (अवैध नशीले पदार्थ बनाने की जगह) भी मिलती हैं! ये सब सुनकर तो कोई भी बोलेगा – “भैया, ऐसा होटल तो छोड़ दो, ज़िंदगी प्यारी है!”
मेहमानों की महफ़िल: किस्सा कुर्सी का, चाबी का और नकली आरोपों का
जैसे ही दो हफ्ते शुरू हुए, मानो मुसीबतों की बरसात शुरू हो गई। एक बुज़ुर्ग साहब (जिन्हें हम प्यार से 'बूमर' कहेंगे) ने गुस्से में चाबी फेंककर मुँह पर मार दी, वजह – कमरे का दरवाज़ा नहीं खुल रहा था। फिर आई एक स्पैनिश बोलने वाली जोड़ी, जिन्होंने फ्री रूम पाने के लिए रिसेप्शनिस्ट पर भाषा-भेदभाव का आरोप लगा दिया। अब मज़े की बात यह थी कि वहाँ के ज़्यादातर कर्मचारी खुद स्पैनिश बोलते हैं! ऐसे में यह आरोप सुनकर तो जैसे बॉलीवुड की मसाला फिल्म याद आ गई – “अरे भाई, ये ड्रामा और कहाँ मिलेगा!”
इसके बाद एक रूसी मेहमान, जो शायद कुछ ज़्यादा ही जोश में थे (या फिर नशे में!), लड़ाई करने पर उतारू हो गए। और एक साहब तो इतने निर्दयी निकले कि जब रिसेप्शनिस्ट ने अपनी याददाश्त की समस्या बताई (क्योंकि उन्हें पहले स्ट्रोक आ चुका था), तो उन्हीं की परेशानी का मज़ाक उड़ाने लगे। ऐसे-ऐसे रंग-बिरंगे किरदारों से रोज़ पाला पड़ना, मतलब हर दिन नया एपिसोड, नई मुसीबत!
मैनेजर का जवाब: “हमारे यहाँ सब बढ़िया है!” – मतलब?
अब ज़रा सोचिए, इतना सब होने के बाद अगर आप अपने मैनेजर से मदद की उम्मीद करें, तो क्या जवाब मिलना चाहिए? लेकिन यहाँ तो उल्टा ही हो गया! Reddit पोस्ट के अनुसार, मैनेजर ने कह दिया – “हम अपने मेहमान नहीं चुन सकते!”, “अगर उन्हें निकालेंगे तो भेदभाव होगा!”, “शायद तुम्हारा नकारात्मक रवैया ही वजह है!”, और सबसे बड़ी बात – “मैंने भी Best Buy में काम किया है, वहाँ भी ऐसा ही था।” अब भला होटल की हालत और Best Buy की तुलना कोई कैसे कर सकता है?
किसी कमेंट करने वाले ने तो सीधा-सीधा कहा – “हाँ भई, आप चुन सकते हैं कौन-से मेहमान रखें! जो अपराध करें, स्टाफ या बाकी मेहमानों को परेशान करें, उन्हें बाहर निकालना बिल्कुल जायज़ है!” (बिल्कुल वैसे ही जैसे हमारे देश में भी, कोई होटल वाला किसी बदमाश को बाहर का रास्ता दिखा देता है!)
एक और मज़ेदार कमेंट था – “लगता है होटल मालिक तो बस इंतज़ार कर रहे हैं कि कोई आग लगा दे और बीमा का पैसा मिल जाए!” अब ये बात भले ही मज़ाक में कही गई हो, पर सोचने वाली है – ऐसी जगहों का संचालन आखिर क्यों हो रहा है?
आखिरकार – स्वास्थ्य पर असर, और सब्र का बाँध टूट गया
इतनी टेंशन, रोज़-रोज़ की नौकझौंक और असुरक्षित माहौल का असर आखिरकार दिखा – हमारे नायक काम पर ही बेहोश हो गए, अस्पताल जाना पड़ा। ये पढ़कर किसी भी पाठक को महसूस होगा कि पैसे कमाना ज़रूरी है, पर अपनी सेहत और मानसिक शांति से बड़ा कुछ नहीं। खुद नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया – और यही शायद सबसे समझदारी भरा फैसला था।
रेडिट कम्युनिटी ने भी खुलकर समर्थन दिया – “भागो, जितनी जल्दी हो सके, ऐसी जगह कभी नहीं बदलती!” (ठीक वैसे ही जैसे हमारे यहाँ कोई बोल दे – “भैया, ऐसे ठेकेदार के यहाँ दोबारा काम मत करना!”) किसी ने मजाकिया लहज़े में कहा – “क्यों नहीं, गोलीबारी, लड़ाई और बदतमीज़ी से प्यार करना चाहिए?” (जैसे हमारे यहाँ दोस्त मज़ाक करते हैं – “मज़ा आ रहा है ना? और कितना चाहिए!”)
आपकी राय – क्या आप ऐसी जगह काम कर सकते हैं?
अब जरा सोचिए – क्या आप ऐसी जगह काम करना पसंद करेंगे, जहाँ हर दिन नई मुसीबत, नए खतरे, और ऊपर से मैनेजर भी आपकी मदद को तैयार नहीं? क्या आपकी सेहत, मानसिक शांति और आत्म-सम्मान ऐसी नौकरी के लिए बलिदान देना चाहिए? अपने विचार कमेंट में ज़रूर बताइएगा – क्या कभी आपके साथ भी ऐसा कुछ हुआ है?
निष्कर्ष: नौकरी है तो इज़्ज़त और सुरक्षा भी ज़रूरी है
यह कहानी हमें यही सिखाती है कि नौकरी सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं, बल्कि इज़्ज़त और सुरक्षा भी उतनी ही अहम है। ऐसे माहौल में काम करने से अच्छा है, खुद की भलाई के लिए समय रहते बदलाव करें। और हां, अगर आपका बॉस आँखें मूँद ले, तो समझ लीजिए कि अब बोरिया-बिस्तर बाँधने का वक्त आ गया है!
अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो, या आपके पास भी कोई दिलचस्प अनुभव हो – तो कमेंट जरूर करें! आखिर सबका दर्द, सबकी हँसी, यहाँ बाँटने से ही तो जिंदगी आसान बनती है।
मूल रेडिट पोस्ट: I have had the worst two weeks of my work in my life.