होटल की नौकरी में हुआ अन्याय: जब मेहनत का फल सिर्फ डांट निकला
कहते हैं, होटल में काम करना आसान नहीं होता, लेकिन जब ऊपर से हालात भी उलटे हों और मेहनत के बदले सिर्फ डांट-फटकार मिले, तब तो दिल ही टूट जाता है। आज की कहानी है एक ऐसे नौजवान कर्मचारी की, जिसने अपने होटल में सुबह की शिफ्ट में जी-जान लगा दी, मगर बदले में मिला क्या? बस शिकायतें, डांट और आखिर में काम से निकाल दिया जाना।
हर भारतीय ने कभी न कभी ऑफिस की राजनीति, बॉस के ताने, या अपने काम की अनदेखी का सामना किया है। लेकिन यहाँ तो हालात कुछ अलग ही थे – होटल में टीवी नहीं चल रहा, वाई-फाई रोज बंद, छत से पानी बरस रहा, और ऊपर से मैनेजमेंट का रवैया! चलिए, जानते हैं क्या हुआ उस बेचारे के साथ...
होटल का हाल – "इक हंगामा सा है इन आंखों के आगे"
इस होटल में काम करना सच में किसी "रियलिटी शो" से कम नहीं था। मई महीने में कुछ शरारती बच्चों ने आइस मशीन का प्लग निकाल दिया, जिससे केबल बॉक्स रूम में बाढ़ आ गई, और नतीजा – पूरे होटल में तीन महीने तक टीवी गायब! सोचिए, हमारे यहाँ तो शादी-ब्याह में भी अगर टीवी बंद हो जाए तो बुजुर्ग नाराज़ हो जाते हैं, यहाँ होटल में मेहमानों का गुस्सा सातवें आसमान पर!
हर सुबह मेहमानों की शिकायतें सुनना, डिस्काउंट मांगना, और ऊपर से मालिकों तक ये संदेश पहुँचाना – ये सब उस फ्रंट डेस्क वाले की ड्यूटी थी। वाई-फाई भी रोज़-रोज़ बंद, हर सुबह रिसेट करना पड़ता। ऊपर से मैनेजर साहब छुट्टी पर गए तो कभी लौटे ही नहीं, अब सारा बोझ उसी कर्मचारी पर आ गया।
सितंबर में तो हद हो गई – छत में पाइप फट गया, आधा होटल पानी-पानी! होटल में मरम्मत चल रही थी, और हमारे कर्मचारी भाई जी-जान से मेहमानों को सँभाल रहे थे। मैनेजमेंट बार-बार कहता, "तुम्हारी मेहनत बेकार नहीं जाएगी," मगर असल में...
"मेहनत का फल क्या मिला?" – गुस्सा, डांट और आखिर में निकाल दिया जाना
एक दिन शादी का फंक्शन था, शाम वाली शिफ्ट के कर्मचारी ने देर से आने को बोला, तो फ्रंट डेस्क वाले ने ही सबको चेक-इन कराया। अगली सुबह देखा – नाश्ता बना ही नहीं! मेहमान नाराज़, पूछ रहे हैं – "भाईसाब, नाश्ता क्यों नहीं मिला?" मैनेजमेंट सो रहा, दस बजे आते हैं और सीधा डांट देते हैं, "तुम्हारी वजह से नाश्ता नहीं हुआ!"
इतना ही नहीं, एक और मेहमान घंटी बजा-बजा कर परेशान कर रहा था। नया जीएम बाहर निकल आया, और बिना सोचे-समझे कर्मचारी को डांट दिया। आखिरकार, हमारा भाई टूट गया, बैग उठाया, Uber बुलाया और चला गया। फोन पर जीएम ने बुलाया, समझाया – "आ जाओ, बात करते हैं," मगर कुछ घंटे बाद मालिकों ने मैसेज भेज दिया – "अब आपकी ज़रूरत नहीं!"
"ऑफिस की राजनीति और बॉस का असली चेहरा" – पाठकों की राय
इस कहानी पर Reddit पर खूब चर्चा हुई। एक कमेंट करने वाले (Double-Resolution179) ने बड़ा सही लिखा – "जब एक बार कह दिया कि छोड़ रहे हो, तो पीछे मत देखो। ऐसे अफसरों को छोड़ देना ही अच्छा है। अगली जगह बस अपना काम करो, दूसरों का बोझ मत उठाओ, वरना सब तुम्हें ही इस्तेमाल करेंगे।"
एक और पाठक (No-Obligation-2362) ने कहा, "तुमने सही किया, ऐसे जगहों पर मेहनती लोग सिर्फ बलि का बकरा बनते हैं। मालिकों को तुम्हारी मेहनत नहीं दिखती, सिर्फ गलती दिखती है।"
वहीं, कुछ अनुभवी लोग (Counsellorbouncer) ने सच्चाई बताई – "ये है पूंजीवाद का असली चेहरा – जब तक कंपनी को तुमसे फायदा है, ठीक; वरना बाहर!"
कुछ ने सलाह दी कि ऐसी जगहों के खिलाफ Glassdoor जैसी वेबसाइट पर रिव्यू लिखो, ताकि बाकी लोगों को भी सच्चाई पता चले। और कई लोगों ने यह भी कहा, "नई जगह जाओ, ज़िंदगी सुधरेगी – और खुद से पूछोगे, इतना सब कैसे सह लिया!"
"सीख क्या है?" – हर मेहनती कर्मचारी के लिए
हमारे यहाँ कहा जाता है – "काम करो, मगर अपनी हद में रहो; दूसरों की गलती का बोझ मत उठाओ।" ऑफिस, होटल या कोई भी जगह हो, अगर आपकी मेहनत को इज्जत ना मिले, तो वहाँ रुकना बेकार है। ऐसे में खुद के आत्मसम्मान की कीमत समझो, और जहाँ इज्जत मिले, वहाँ काम करो।
आज की कहानी उन लाखों मेहनती लोगों की है, जो हर दिन उम्मीद से दफ्तर आते हैं, और अक्सर मेहनत का सही फल नहीं मिलता। अगर आप भी ऐसी स्थिति में हैं, तो डरिए मत – आगे बढ़िए, नई शुरुआत हमेशा मुमकिन है!
आपका क्या अनुभव है?
क्या आपके साथ भी कभी दफ्तर या काम की जगह पर ऐसा अन्याय हुआ है? क्या आपने कभी ऑफिस की राजनीति या बॉस की डांट झेली है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए – आपकी कहानी औरों की हिम्मत बढ़ा सकती है।
और हाँ, होटल में ठहरते वक्त टीवी और नाश्ते की अहमियत को कभी हल्के में मत लीजिए – अगली बार शिकायत करने से पहले फ्रंट डेस्क वाले की हालत जरूर याद करिएगा!
मूल रेडिट पोस्ट: Injustice