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होटल की नौकरी में तीन हफ्ते और ‘बड़ों’ की बद्तमीजियाँ – मेहमान या मालिक?

कहते हैं, “अतिथि देवो भव”। लेकिन जब अतिथि देवता की जगह खुद को मालिक समझ बैठे, तो क्या किया जाए? होटल में काम करने वालों के साथ ऐसी घटनाएँ आम हैं, लेकिन आज की कहानी में एक अलग ही रंग है। ये किस्सा है इंग्लैंड के एक होटल का, पर ऐसी कहानी तो हमारे यहाँ हर गली-मोहल्ले के होटल, ढाबे और रेस्तरां में भी मिल जाती है।

जब ग्राहक की आदतें कानून से ऊपर हो जाएँ

हमारे नायक (या कहें नायिका) ने होटल की ड्यूटी ज्वाइन की थी बस तीन हफ्ते पहले। एक दिन कैमरे में दिखा – एक बुजुर्ग दंपति ने अपनी कार होटल के मुख्य प्रवेश द्वार पर ऐसे अड़ा दी थी जैसे वही उनकी पुश्तैनी जमीन हो। बाकियों के लिए थोड़ी जगह बची थी, लेकिन रास्ता उबड़-खाबड़ था – जैसे बिहार या उत्तर प्रदेश के किसी गाँव की कच्ची सड़क।

नई कर्मचारी ने विनम्रता से कहा, “नमस्ते, शायद आपको पता न हो, ये पार्किंग की जगह नहीं है। कृपया गाड़ी पार्किंग में लगा दीजिए ताकि आपकी गाड़ी को भी नुकसान न हो और बाकी मेहमानों को भी सुविधा रहे।”

अब जनाब का गुस्सा सातवें आसमान पर – “हम तो सालों से यहीं पार्क करते हैं! वही पेड़ के नीचे – भले ही उस पेड़ पर एक भी पत्ता न बचा हो। मेरी कुतिया गाड़ी में है, यहीं पार्क करना ज़रूरी है, वरना कुत्ते को घर छोड़ना पड़ेगा।” ऊपर से ताना – “कैसी बेवकूफ लड़की हो!” बीवी ने जोड़ दिया – “नयी हो क्या?” जवाब मिला – “हाँ।” फिर ठंडी मुस्कान, “इसलिए समझ में नहीं आ रहा!” और मुँह फेर लिया।

होटल की नौकरी: ‘ग्राहक हमेशा सही है’ या ‘हरकतों में भी सही है’?

हमारे यहाँ भी अक्सर सुनने मिलता है – “हम तो हर संडे आते हैं, तुम्हारे बाप-दादा से जानते हैं होटल को। तुम्हें क्या पता!” अब बताइए, होटल का स्टाफ नियम बताए तो वो अपराध बन जाए?

रेडिट पर इस किस्से पर खूब चर्चा हुई। एक सदस्य ने कहा, “अरे, सीधा गाड़ी तुड़वा देते।” दूसरे बोले, “नाम लेकर अपमान करने के बाद तो कोई नरमी नहीं, सीधे टो करवा दो, फिर देखो मज़ा!” लेकिन असली दिक्कत ये – इंग्लैंड में ऐसे मामूली मामलों में गाड़ी टो नहीं होती, वरना यहाँ तो नंबर प्लेट की फोटो खींचकर ट्रैफिक पुलिस बुला ली जाती।

भारत में भी क्या कम है? अगर कोई पुराने ग्राहक हैं, तो मालिक ही उन्हें सलाम करता है। किसी भी नई लड़की या लड़के को टोकने की हिम्मत नहीं। कई बार तो मालिक खुद बोल देता – “अरे, शर्मा जी हैं, रहने दो। इनका ही होटल है।”

कुत्ता गाड़ी में – बहाना या मजबूरी?

अब यहाँ बहस उठी कि कुत्ते को गाड़ी में छोड़ना कितना सही है? एक यूज़र ने पूछा, “भला होटल में लंच के दौरान कुत्ते को गाड़ी में क्यों छोड़ना?” जवाब मिला – “होटल डॉग-फ्रेंडली है, कुत्ते को अंदर ला सकते थे।” भारत में तो अक्सर ऐसा होता है कि लोग अपने कुत्ते-बिल्ली को घर पर ही छोड़ देते हैं, लेकिन ऐसे बहाने यहाँ भी सुनने मिल जाते हैं – “बच्चा सो रहा है, गाड़ी में छोड़ दिया।”

एक और मज़ेदार कमेंट था, “क्या आप नयी हैं? पिछली बार जो यहाँ गाड़ी गलत पार्क करता था, उसे हटवाया नहीं, इसलिए निकाल दिया गया!” यानी हर जगह पुराने ग्राहक अपनी धाक जमाए रहते हैं।

बॉस का डर और ‘नई’ की मुश्किल

हमारे यहाँ जैसा बॉस का डर – वैसा ही वहाँ भी। कर्मचारी को चिंता थी कि कहीं जीएम (जनरल मैनेजर) डाँट न दें। यहाँ भी अक्सर नई लड़की को बोला जाता है – “तुम्हें क्या पता, रूल पुराने ग्राहकों पर लागू नहीं होते!” एक यूज़र ने सलाह दी – “बात ऊपर पहुँचा दो, खुद परेशान मत हो, बॉस देखेगा।” लेकिन असल में जो नई नौकरी में होते हैं, उन्हें हर गलती का बोझ खुद ही उठाना पड़ता है।

‘ग्राहक भगवान है’ – कब तक?

कहावत है, “जहाँ राजा की मर्जी, वहाँ कानून की कोई औकात नहीं।” होटल, रेस्तरां, या बैंक, हर जगह ऐसे ‘पुराने’ ग्राहक मिल जाएँगे जो नियमों को अपनी जेब में रखते हैं। लेकिन क्या यही सही है? क्या स्टाफ की इज्ज़त और आत्मसम्मान मायने नहीं रखते? एक कमेंट में लिखा था – “चाहे कोई भी हो, किसी को भी ऐसा बर्ताव करने का हक नहीं।”

ऐसी घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि क्या नौकरी में आत्मसम्मान, नियमों से ऊपर होता है या ग्राहक की ‘मर्जी’?

निष्कर्ष: अब आप बताइए, क्या आप भी ऐसे ग्राहक हैं?

कहानी से एक बात साफ है – हर जगह एक जैसी समस्या है, चाहे देश कोई भी हो। होटल का स्टाफ नियम बताए तो उसे झेलना पड़ता है, और ग्राहक अगर पुराना हो तो उसे ‘मालिक’ मान लिया जाता है।

आपका क्या अनुभव है? क्या आपको भी कभी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, और अगली बार जब होटल जाएँ, तो स्टाफ से थोड़ी इंसानियत और सम्मान से पेश आएँ – आखिरकार, वे भी इंसान हैं, भगवान नहीं!


मूल रेडिट पोस्ट: Tired of rude clients after 3 weeks back in hotel work