होटल की नौकरी और वो ‘वीकेंड का काला साया’: जब मेहमान ही आफत बन जाएं
अगर आप कभी होटल में काम कर चुके हैं या सोचते हैं कि रिसेप्शनिस्ट की जिंदगी बड़ी आसान होती है, तो जनाब, आज की ये कहानी आपकी सोच बदल देगी। होटल में मेहमानों की सेवा करना वैसे तो बहुत लोगों को रोमांचक लगता है, लेकिन कभी-कभी एक वीकेंड ऐसा भी आता है जो आदमी को सोचने पर मजबूर कर देता है – “क्या गलती कर दी ये नौकरी पकड़कर?”
जब मेहमान की ‘आवभगत’ ही आफत बन जाए
कहानी शुरू होती है एक आम शुक्रवार से। हमारे नायक (या कहें ‘फ्रंट डेस्क योद्धा’) रोज़ की तरह 3 बजे होटल पहुँचते हैं। कागजी काम-काज निपटाते हुए, चाय की चुस्की और हल्की-फुल्की बातचीत के बीच दिन आराम से कट रहा था। शाम होते-होते 5 बजे के आसपास कुछ मेहमान तितर-बितर अंदाज़ में चेक-इन करने आते हैं। लगता नहीं कि ये सब एक ग्रुप के हैं, लेकिन धीरे-धीरे असली रंग दिखना शुरू होता है।
पहला झटका – मेहमानों ने बेलबॉय मांगा। अब भारतीय होटलों में तो ज्यादातर जगह पोर्टर या बेलबॉय रहते हैं, लेकिन जिस होटल की ये बात है, वहां सिर्फ लगेज कार्ट है। लेकिन भाई साहब, ग्राहक भगवान होता है, सोचकर रिसेप्शनिस्ट ने खुद ही सामान ऊपर पहुंचाया। यहीं से शुरू हुआ ‘फोन कॉल्स का महासंग्राम’ – तकिए, कंबल, तौलिया – सबकी डिमांड, और ऊपर से ताना, रूखेपन के साथ।
‘मालिक से मिलवाओ!’ – जब हर बात में मैनेजर चाहिए
अब होटल में अक्सर ऐसा होता है कि लोग रेट या पैसे को लेकर सवाल करते हैं। यहाँ भी मेहमानों ने बवाल मचा दिया – “हमारे कमरे के पैसे ज्यादा क्यों कटे?” असली वजह थी कि बुकिंग थर्ड पार्टी (जैसे हमारे यहाँ MakeMyTrip या Booking.com) से हुई थी, और होटल के स्टाफ के पास रेट बदलने का कोई अधिकार ही नहीं। लेकिन समझाने का कोई फायदा नहीं, मेहमान अड़ गए – “मैनेजर बुलाओ!”
यहाँ पर मज़ेदार बात ये थी कि मैनेजमेंट वीकेंड पर छुट्टी पर थी, यानी सोमवार से पहले कोई सुनवाई नहीं। साहब लोग गुस्से में बड़बड़ाते हुए निकल लिए। रिसेप्शनिस्ट ने भी जैसे-तैसे दिन काटा और जाते-जाते नाइट शिफ्ट वाले को सारी रामकहानी सुना दी।
‘रिव्यू’ का ज़हर – मेहनत की कदर या बेइज्जती?
अगले दिन वापस आए तो पता चला, वही ग्रुप फिर से शिकायतें करने आ धमका। इस बार फोन पर मैनेजर को पकड़ लिया और मेरी (रिसेप्शनिस्ट की) बुराईयों की झड़ी लगा दी – “असभ्य है, मदद नहीं करता, बदतमीज़ी करता है...” शुक्र है, मैनेजर ने हकीकत जानकर मेरी साइड ली, लेकिन बात यहीं नहीं रुकी।
ग्रुप ने जाते-जाते ऑनलाइन एक ऐसा जहरीला रिव्यू लिखा कि पढ़कर किसी का भी मन छोटा हो जाए। अजीब बात ये – इतनी मेहनत, 10,000 कदम होटल में दौड़कर सबकी सेवा, लेकिन बदले में मिली तो सिर्फ बदनामी!
कम्युनिटी की बातें – जब दर्द सबका साझा हो
इस पोस्ट पर Reddit के बाकी होटल कर्मचारियों ने भी दिल खोलकर अपने अनुभव बांटे। जैसे एक सदस्य ने चुटकी ली – “ऐसे मेहमानों को तो DNR (Do Not Rent) लिस्ट में डाल देना चाहिए!” यानी भविष्य में इन्हें कमरा न दिया जाए।
एक और मज़ेदार कमेंट – “कभी-कभी तो लगता है, जितनी मदद करो, उतनी ही आफत मोल ले लेते हो। एक बार ‘ना’ बोल दो, तो सारी मेहनत गई पानी में।” ये बात शायद हर भारतीय होटल कर्मचारी के दिल से निकली होगी!
इसी तरह, एक और यूज़र ने लिखा – “हमारे यहाँ एक बार एक कपल ने बेडबग (खटमल) का झूठा इल्ज़ाम लगाया, फोटो भी दिखाया – पर फोटो हमारे होटल की चादर की थी ही नहीं!” ऐसे किस्से सुनकर लगता है कि दुनिया भर में होटल वाले एक ही नाव में सवार हैं।
होटल वालों के लिए सीख – अपनी इज़्ज़त खुद बनानी पड़ती है
एक अनुभवी सदस्य ने सुझाव दिया – “रिव्यू का जवाब हमेशा भविष्य के मेहमानों को ध्यान में रखकर दो। साफ-साफ बताओ कि कर्मचारी की इज़्ज़त हमारे लिए पहली प्राथमिकता है। कोई भी कर्मचारी बेवजह बदनाम नहीं किया जाएगा।” ये सलाह हमारे भारतीय होटल इंडस्ट्री के लिए भी बिलकुल सटीक बैठती है।
कई बार ऐसा लगता है कि कोई शिकायत पढ़कर अगला अतिथि खुद ही समझ जाएगा कि गलती किसकी थी – होटलवाले की या मेहमान की। आखिर, जैसा एक और सदस्य ने लिखा – “लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं, वो असल में उनके बारे में ज़्यादा बताता है, आपके बारे में कम।”
निष्कर्ष: क्या कभी सबको खुश किया जा सकता है?
होटल इंडस्ट्री हो, या कोई भी सेवा क्षेत्र – भारत में भी यही सच्चाई है कि सबको खुश रखना नामुमकिन है। कोई-कोई मेहमान ऐसा आ जाता है कि उसकी शिकायतें कभी खत्म ही नहीं होतीं।
तो अगली बार जब आप किसी होटल में रुकें, तो रिसेप्शन पर बैठे उस इंसान को एक मुस्कान जरूर दीजिए। और अगर आप खुद होटल में काम करते हैं, तो याद रखिए – आपकी मेहनत हमेशा किसी-न-किसी की नजर में रहती है, भले ही एक बुरा रिव्यू दिल दुखा दे।
आपके पास भी ऐसी कोई कहानी है? नीचे कमेंट में जरूर साझा करें! होटल की दुनिया के ऐसे किस्सों को हम सब मिलकर और भी दिलचस्प बना सकते हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: Absolute disaster of a weekend.