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होटल की नाइट ऑडिट टीम बनाम अकाउंटिंग: जब काम का बंटवारा ही जंग का मैदान बन जाए!

होटल नाइट ऑडिट शिफ्ट की 3D कार्टून चित्रण, आरक्षण प्रणाली की चुनौतियों को उजागर करता है।
इस जीवंत 3D कार्टून चित्रण के साथ होटल नाइट ऑडिट की मजेदार दुनिया में डूब जाइए, जो नए आरक्षण प्रणाली में आने वाली अप्रत्याशित चुनौतियों को दर्शाता है। आइए, मैं अपनी हालिया अनुभव से एक मनोरंजक और संबंधित कहानी साझा करता हूँ!

होटल की नाइट शिफ्ट का नाम सुनते ही लोग सोचते हैं कि बस खाली-पीली समय काटना होगा, मेहमान सो रहे होंगे और रिसेप्शन पर चाय की चुस्कियों के साथ गपशप चलती होगी। लेकिन जनाब, असलियत तो कुछ और ही है! जब अकाउंटिंग और नाइट ऑडिट (NA) की जिम्मेदारियाँ आपस में उलझ जाएँ, तो ऐसी लड़ाई छिड़ती है कि बड़े-बड़े मैनेजर भी माथा पकड़ लें।

नयी टेक्नोलॉजी, नयी मुसीबतें

हमारे कहानी के नायक, जिन्होंने पिछले तीन सालों से नाइट ऑडिट शांति से निभाई थी, अचानक एक नई मुसीबत में फँस गए। होटल में नया रिजर्वेशन सिस्टम आया, और साथ में आई ढेर सारी तकनीकी समस्याएँ। पहले F&B (फूड एंड बेवरेज) के टोटल पुराने सॉफ्टवेयर में नहीं आते थे, अब नए सिस्टम में कनेक्शन तो बना, लेकिन क्रेडिट कार्ड की खरीद-परोख्तें ठीक से क्लीयर नहीं हो रही हैं। पहले हफ्ते सब सही चला, लेकिन फिर हर हफ्ते गड़बड़ बढ़ती गई, और अकाउंटिंग की टीम बार-बार सवाल पूछती रही—"ये हो क्यों रहा है?"

अब भला, जब सिस्टम ही डबल एंट्री कर दे या कहीं पैसा गिनती में चूक हो जाए, तो नाइट ऑडिटर क्या करे? न तो कोई सीधा हल, न ही अकाउंटिंग की टीम की मदद!

"काम तो तुम ही संभालो!"—अकाउंटिंग का नया फॉर्मूला

कहानी में ट्विस्ट तब आया जब होटल के कॉरपोरेट बॉस ने इन-हाउस अकाउंटिंग टीम को हटाकर दूसरी ब्रांच की अकाउंटिंग टीम ला दी। और ज़रा सोचिए, दोनों होटल के सिस्टम भी अलग! अब नई अकाउंटिंग टीम ने साफ कह दिया—"नाइट ऑडिट को खुद ही समझना होगा कि गड़बड़ कहाँ है, आखिर तुम्हें दो दिन की ट्रेनिंग तो मिली है!"

यहाँ पर हमारे नायक के FOM (फ्रंट ऑफिस मैनेजर) ने उनका साथ दिया, बोले—"ये तो सरासर गलत है, अकाउंटिंग खुद अपना पल्ला झाड़ रही है।" एक कमेंट में किसी ने मज़ेदार बात लिखी—"लगता है ये होटल तो अब डूबता जहाज है, छोड़ने में ही भलाई है!" (यानी, नौकरी छोड़ने का भी मन बना सकते हैं।)

काम का बंटवारा या सिरदर्द?

अब बात सिर्फ इतनी नहीं थी कि क्रेडिट कार्ड के आँकड़े नहीं मिल रहे। असली झगड़ा ये था कि अकाउंटिंग टीम कह रही थी—"नाइट ऑडिट को असली ऑडिटिंग सिखाओ, जिम्मेदारी बढ़ाओ।" लेकिन, भाई, जिम्मेदारी बढ़ेगी तो मेहनताना भी तो बढ़ना चाहिए!

एक कमेंट में किसी ने बड़ी समझदारी की बात कही—"अगर अकाउंटिंग सिखानी है तो बाक़ी के छोटे-मोटे काम (जैसे कपड़े तह करना, ब्रेकफास्ट लगाना) छोड़ने पड़ेंगे। रात में घंटों की लिमिट है, सब कुछ एक साथ तो होगा नहीं!"

वैसे हमारे नायक की किस्मत अच्छी है—उन्हें ज़्यादा एक्स्ट्रा काम नहीं करना पड़ता, बस कॉफी बनानी होती है और कभी-कभार छोटे-मोटे हाउसकीपिंग के काम। लेकिन अकाउंटिंग टीम तो चाहती है कि नाइट ऑडिटर अपना सारा टाइम उनके हिसाब-किताब में लगा दे, वो भी बिना किसी एक्स्ट्रा ट्रेनिंग या वेतन के!

पुरानी चोरी, नई सज़ा

यह झगड़ा यूँ ही नहीं शुरू हुआ। कोविड से पहले नाइट ऑडिट टीम असली ऑडिट भी करती थी, लेकिन तब अकाउंटिंग टीम में घपलेबाज़ी पकड़ी गई—कर्मचारी पैसे डकार रहे थे! उसके बाद से नाइट ऑडिट की जिम्मेदारी सीमित कर दी गई, ताकि फिर से कोई घपला न हो।

अब हाल ये है कि न तो अकाउंटिंग टीम को सिस्टम की पूरी समझ है, न ही नाइट ऑडिट को। और ऊपर से, जो कम वेतन में काम कर रहे हैं, उन पर जिम्मेदारी का बोझ और डाल रहे हैं। एक कमेंट में तो किसी ने तंज कसते हुए लिखा—"अगर अकाउंटिंग के काम यूँ ही बढ़ाते रहे, तो नाइट ऑडिटर की पोस्ट के लिए कोई मिलेगा ही नहीं, उल्टा वेतन भी और बढ़ाना पड़ेगा!"

होटल इंडस्ट्री की हकीकत और सबक

इस पूरी कहानी में एक बात साफ झलकती है—कंपनी जब भी लागत कटौती (cost cutting) के नाम पर जिम्मेदारियों का बंटवारा गड़बड़ कर देती है, तो काम करने वालों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं। मैनेजमेंट का तर्क—"नाइट ऑडिट को थोड़ा ज़्यादा वेतन मिलता है, तो और जिम्मेदारी डाल दो"—ना तो व्यवहारिक है, ना ही न्यायसंगत।

कम्युनिटी के कई सदस्यों ने सलाह दी—"अगर नई जिम्मेदारियाँ आ रही हैं, तो ट्रेनिंग और वेतन दोनों की मांग करो।" और अगर कहीं नौकरी में ईमानदारी से काम करने की जगह साजिश और राजनीति चल रही हो, तो भविष्य के लिए तैयार रहना चाहिए—कभी-कभी नया मौका तलाशना ही बेहतर होता है।

निष्कर्ष: होटल की रातें जितनी शांत दिखती हैं, उतनी होती नहीं!

अगर आपको लगता है कि होटल का नाइट शिफ्ट सबसे आसान है, तो जनाब, ज़रा फिर से सोचिए। यहाँ जिम्मेदारियों का झगड़ा, पुराने घोटालों की परछाई, और कॉरपोरेट की "काम चलाओ" नीति—सब कुछ ऐसा कि हल्के में लेना मुश्किल!

आपका क्या अनुभव रहा है ऐसी ऑफिस पॉलिटिक्स या काम के बँटवारे में? नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें—क्या आप भी कभी ऐसे घमासान में फँसे हैं?

कहानी पढ़ने के लिए धन्यवाद, अगली बार फिर मिलेंगे होटल की किसी और अनसुनी रात की कहानी के साथ!


मूल रेडिट पोस्ट: NA vs Accounting