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होटल की डेस्क पर सबसे लंबी ड्यूटी: जब नींद भी छुट्टी पर थी!

अस्पताल में एक स्वास्थ्यकर्मी कठिन शिफ्ट के दौरान अपने सहयोगी का समर्थन कर रहा है।
इस फोटो यथार्थवादी चित्र में, हम स्वास्थ्य क्षेत्र में एक भावुक क्षण को कैद करते हैं, जहां कठिनाइयों के बीच मित्रता की चमक दिखाई देती है। राहत नर्स, जो कैंसर से व्यक्तिगत संघर्ष का सामना कर चुकी है, एक सहयोगी के साथ खड़ी है जो गंभीर निदान का सामना कर रहा है। मिलकर, वे अपनी लंबी शिफ्ट के भावनात्मक और शारीरिक चुनौतियों का सामना करते हैं, जो कठिन समय में मानव संबंध की ताकत को उजागर करता है।

भैया, नौकरी की मुश्किलों के किस्से तो हर किसी के पास होते हैं, लेकिन होटल की फ्रंट डेस्क पर काम करने वालों की कहानियों में अलग ही स्वाद होता है! सोचिए, अगर आपको एक-दो घंटे की ओवरटाइम नहीं, बल्कि लगातार 24 घंटे से भी लंबी शिफ्ट करनी पड़े, तो क्या हाल होगा? आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक ऐसी ही कहानी, जिसमें काम, जुगाड़, मालिक की चालाकी और कर्मचारियों की मजबूरी – सबकुछ है।

जब डेस्क बना घर और रिपोर्ट बनी सिरदर्द

कहानी के नायक हैं एक होटल के नाइट ऑडिटर (NA), जो relief यानी ज़रूरत के समय ड्यूटी संभालते थे। उनके साथी को गंभीर बीमारी हो गई थी, ऐसे में ज़िम्मेदारी बढ़ गई। होटल में काम का सिस्टम भी कोई आजकल जैसा नहीं था – DOS बेस्ड ऑडिट, डॉट प्रिंटर, और रिपोर्ट निकालने में कम से कम 3 घंटे लग जाते! ऊपर से, हर रिपोर्ट को "बोर्ड और बकेट" से दोबारा जांचना पड़ता था – यानी एकदम देसी तरीके से हर कमरे का हिसाब-किताब पक्का करना!

एक शाम तो हद ही हो गई – नाइट ऑडिटर साथी ने अचानक छुट्टी ले ली। हमारे नायक ने 3 बजे से 11 बजे तक की शिफ्ट के बाद सीधे नाइट शिफ्ट भी कवर कर ली। सुबह 6 बजे, जब अगला कर्मचारी आना था, वो भी गायब! फोन मिलाया, मालिक को बताया, साहब 12 बजे तक ही आए। तब तक बंदा लगातार 21 घंटे से ऊपर काम कर चुका था!

'बोर्ड और बकेट' – देसी जुगाड़ की मिसाल

अब आपको लगेगा – ये 'बोर्ड' और 'बकेट' क्या बला है? एक कमेंट में किसी ने पूछा, तो जवाब मिला – बोर्ड यानी सारे कमरों की एक लिस्ट या व्हाइटबोर्ड, जिसमें साफ-सुथरे, गंदे, खाली या भरे – सबकी स्थिति एक नज़र में दिखे। बकेट मतलब, हर कमरे के कागज़ात रखने की जगह। आजकल डिजिटल जमाना है, लेकिन उस वक्त ये जुगाड़ ही सबकुछ था। एक अनुभवी ने बताया – पहले तो "रैक" सिस्टम चलता था, जिसमें हर कमरे का कार्ड स्लॉट में रहता, और वही से "रैक रेट" शब्द आया। भाई, पुराने होटल के जुगाड़ भी क्या कमाल के थे!

जब मालिक निकला 'सेठ', मेहनत गई बेकार

इतनी मेहनत के बाद लगा शायद अब मालिक इंसाफ करेगा। लेकिन हमारे देसी सेठ ने क्या किया? फुल–टाइम और बेनेफिट्स वाली नौकरी अपने एक रिश्तेदार को पकड़ा दी! भाई, ये तो हर किसी ने देखा है – मेहनत कोई और करे, मलाई कोई और खाए। एक कमेंट में किसी ने बिल्कुल सही कहा – छोटे होटल में मालिक खुद काम नहीं करना चाहते, स्टाफ की कमी में सारा बोझ उन्हीं पर डाल देते हैं जो वाकई मेहनत करते हैं।

एक और पाठक ने अपने अनुभव साझा किए – त्योहारों पर, बर्फबारी या बारिश में, जब कोई नहीं आता तो एक–दो लोगों को ही पूरा होटल संभालना पड़ता है। किसी ने तो एक बार 40 घंटे की शिफ्ट भी कर डाली! और मज़े की बात – बेतहाशा ओवरटाइम के बावजूद, कभी–कभी सैलरी सॉफ्टवेयर भी मालिक के पक्ष में चाल चलता है, और मेहनत की पूरी कमाई नहीं मिलती।

देसी नौकरी, देसी तकलीफें – पर हँसी नहीं छूटती

होटल इंडस्ट्री हो या कोई भी नौकरी, ऐसी लंबी शिफ्टें और अचानक बढ़ी जिम्मेदारियां तो हर जगह मिलती हैं। फर्क बस इतना है – बड़े शहरों के बड़े होटल में यूनियन होती है, स्टाफ का बैकअप होता है, ओवरटाइम ठीक से मिलता है। लेकिन छोटे होटल या ढाबा टाइप जगहों पर तो 'जुगाड़' ही चलता है।

प्यारे पाठकों, जब भी अगली बार होटल में ठहरें और फ्रंट डेस्क पर कोई मुस्कराता कर्मचारी दिखे, तो ज़रा उसकी मेहनत और जद्दोजहद याद कर लीजिए। शायद उसने भी पिछली रात आपकी नींद के लिए अपनी नींद कुर्बान की हो!

आपकी सबसे लंबी शिफ्ट कौन सी रही?

अगर आपने भी कभी ऐसी लंबी शिफ्ट या मज़ेदार नौकरी का तजुर्बा लिया है, तो कमेंट में ज़रूर बताइए। कौन जाने, आपकी कहानी भी किसी दिन इंटरनेट पर वायरल हो जाए! और हाँ, अगली बार 'बोर्ड और बकेट' का नाम सुनें, तो समझ जाइए – ये सिर्फ जुगाड़ नहीं, बल्कि मेहनत और ईमानदारी की मिसाल है।

चलते-चलते, एक देसी कहावत – "मेहनत का फल कभी खाली नहीं जाता, भले ही मालिक खा जाए!"


मूल रेडिट पोस्ट: The Longest Shift?