होटल का ग्राहक और उसका ‘बाजार भाव’: जब सब्र का बांध टूट गया
होटल की रिसेप्शन का काउंटर… यहाँ हर दिन एक नई फिल्म चलती है! कोई मीठा बोलकर कमरा लेता है, कोई अपने फ्री अपग्रेड के लिए शुक्रगुज़ार रहता है, तो कोई—बस, सिर दर्द देने के लिए ही पैदा हुआ लगता है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
जैसे हमारे मोहल्ले में एक ‘मामा’ होते हैं, जो हर चीज़ में मोलभाव किए बिना चैन नहीं लेते, वैसे ही एक ‘खास’ ग्राहक ने होटल स्टाफ की नाक में दम कर रखा है।
जब ग्राहक मोलभाव में उतर आए: ‘बाजार’ होटल की रिसेप्शन पर
कुछ महीने पहले की बात है, एक जनाब होटल में आए और ऐसे रेट पर कमरा माँगने लगे, मानो होटल नहीं, सब्जी मंडी हो! “कुछ तो कम कीजिए भैया, आप तो अपने ही हैं”—यानी ग्राहक भाईसाहब को होटल में भी मंडी की हवा चाहिए थी।
आज वही अतिथि फिर लौट आए। इस बार, रिसेप्शनिस्ट (हमारी कहानी के नायक) ने अपने साथी को खूब डाँट पिलाई, क्योंकि उन्होंने इस ग्राहक को फिर छूट दे दी थी—सिर्फ इसलिए कि नाम याद नहीं रहा!
जैसे ही ‘मोलभाव महाराज’ ने कदम रखा, पुराना ड्रामा फिर शुरू—‘‘मैं तो हमेशा चेकआउट पर पेमेंट देता हूँ!’’
अब भई, पिछले पाँच साल से होटल की पॉलिसी है—पहले भुगतान, फिर कमरा। लेकिन जनाब हैं कि नियम बदलवाने पर तुले रहते हैं।
ग्राहक का ‘अनोखा’ तर्क और रिसेप्शनिस्ट की मुश्किल
मज़े की बात यह कि जनाब ने डिमांड की—‘‘आइटमवाइज़ बिल अभी दीजिए!’’
अब होटल का सिस्टम (Opera Cloud) कहता है—ऐसा बिल सिर्फ चेकआउट पर मिलेगा। लेकिन अपने ‘स्थायी ग्राहक’ को यह बात हर बार नए सिरे से समझानी पड़ती है।
इतना ही नहीं, इन्होंने लाइन में पीछे खड़े दूसरे मेहमान को भी पूछ लिया—‘‘आपको भी इससे परेशानी होती है?’’
जैसे पूरी दुनिया की समस्या रिसेप्शनिस्ट ही हैं, होटल नहीं! अब ये तो वही बात हो गई—‘‘घर में कोई बीमार हो जाए, तो डॉक्टर को ही कोसना शुरू कर दो!’’
कमेंट्स की चटपटी चाशनी: होटल स्टाफ की बातें, दिल से
रेडिट पर बहुत से लोगों ने इस किस्से पर अपने अनुभव बांटे।
एक यूज़र (u/TerribleBoomer) ने लिखा, ‘‘यही लोग सारी एनर्जी चूस लेते हैं, इसी वजह से मैंने होटल की नौकरी छोड़ दी!’’
एक और ने (u/MrStormChaser) ने सलाह दी—‘‘अगली बार बदतमीज़ी करे, तो सीधा बाहर निकाल दो।’’
हमारे रिसेप्शनिस्ट ने भी साफ़ कह दिया, ‘‘मैंने आखिरी चेतावनी दे दी है, अब और बर्दाश्त नहीं!’’
यही नहीं, एक मज़ेदार कमेंट आया—‘‘ऐसे ग्राहकों के लिए स्पेशल गिफ्ट बैग बनाइए: एक मरहम, थोड़ा टिश्यू और लॉलीपॉप!’’
सोचिए, अगर अगली बार ऐसे किसी मेहमान को ‘डस्टबिन सूट’ दिखा दिया जाए, तो कैसा लगेगा?
‘ग्राहक भगवान है’… लेकिन भगवान भी आदर चाहता है!
हमारे देश में हमेशा कहा जाता है—‘अतिथि देवो भव’ यानी अतिथि भगवान के समान है।
लेकिन भगवान भी तभी आशीर्वाद देता है, जब उसके भक्त शांति और मर्यादा से पेश आएं!
स्थिति तब बिगड़ जाती है, जब कोई ग्राहक बार-बार नियम तोड़े, कर्मचारियों पर ऊँगली उठाए, और दूसरों की भी परेशानी का कारण बन जाए।
एक कमेंट में किसी ने लिखा, ‘‘अगर इतना ही बुरा लगता है, तो कहीं और क्यों नहीं चले जाते?’’
असली बात तो यह है—अच्छे ग्राहक वहीं लौटते हैं, जहाँ सम्मान मिलता है, और होटल का स्टाफ भी उन्हीं के लिए एक्स्ट्रा मेहनत करता है।
निष्कर्ष: रिसेप्शन पर सब्र भी चाहिए और स्वाभिमान भी!
हर होटल, हर दुकान, हर दफ्तर में ऐसे ‘मोलभाव वाले मामा’ या ‘शिकायत महाराज’ मिल ही जाते हैं।
लेकिन हिम्मत और मुस्कान के साथ काम करने वाले स्टाफ़ ही असली हीरो होते हैं—जो न सिर्फ़ नियमों का पालन कराते हैं, बल्कि संकेत भी दे देते हैं—‘अगर इतना बुरा है, तो दरवाज़ा खुला है!’
तो अगली बार जब आप कहीं मेहमान बनें, याद रखिए—अच्छे व्यवहार का इनाम कहीं ज़्यादा मीठा होता है।
आपकी राय क्या है? क्या कभी आपने भी ऐसे ‘खास’ ग्राहक या मेजबान का सामना किया है?
नीचे कमेंट में बताइए, और इस ब्लॉग को अपने दोस्तों तक पहुँचाइए—शायद अगली बार कोई मोलभाव की जगह मुस्कान बाँट दे!
मूल रेडिट पोस्ट: my favourite guest is back