होटल की खोज में देश के पार: एक मेहमान, दो शहर और हंसी के फव्वारे
कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसे पल आ जाते हैं जब इंसान खुद से ही पूछ बैठता है – “मैं कहां हूं?” अब सोचिए, आप एक होटल में काम कर रहे हों और रात के सन्नाटे में किसी मेहमान का फोन आता है – “आप खुद को कैसे ढूंढ लेते हैं?” सुनते ही दिमाग घूम जाए! लेकिन असली मज़ा तो तब आता है जब पता चलता है कि वह मेहमान, होटल की लोकेशन ढूंढते-ढूंढते, अमेरिका के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच गया है।
जब गूगल मैप्स भी धोखा दे जाए
हमारे देश में तो “गली नंबर ५” और “गली नंबर १५” में ही ऑटोवाले गच्चा खा जाते हैं, लेकिन अमेरिका में तो पूरा-पूरा शहर ही बदल जाता है! Reddit पर एक भाईसाहब ने अपनी होटल की डेस्क पर हुआ किस्सा साझा किया – मेहमान फोन कर रहा है, होटल नहीं मिल रहा। पूछने पर पता चला, वह सीएटल (Seattle, Washington) में खड़ा है, जबकि होटल ओहायो (Ohio) में! यानी देश के एक छोर से दूसरे छोर पर।
अब फ्रंट डेस्क वाले ने, थोड़ी मस्ती के मूड में, जवाब दिया, “मैं खुद को थोड़ा पागल और थोड़ा अनिश्चित पाता हूं।” मेहमान बोला, “अरे, मेरा मतलब है होटल नहीं मिल रहा!” दोनों की बातचीत में हंसी भी है, और वह छुपा हुआ दर्द भी, जो होटल इंडस्ट्री में काम करने वाले हर कर्मचारी को समझ आता है।
नाम वही, जगह नई: होटल बुकिंग की उलझनें
अगर आपको लगता है कि ऐसी ग़लतियां सिर्फ एक-दो बार होती हैं, तो जनाब, आप गलत हैं! एक और किस्से में, एक मेहमान ने सिडनी, ऑस्ट्रेलिया की जगह सिडनी, नोवा स्कोटिया (कनाडा) का होटल बुक कर लिया। जब होटल वाले ने बताया कि दोनों शहरों के बीच १७,००० किलोमीटर हैं, तो मेहमान का मुंह खुला का खुला रह गया। एक टिप्पणीकार ने लिखा, “मुझे तो ये सुनकर हंसी आ गई कि कुछ लोग उड़ान भी गलत शहर में ले लेते हैं, सोचते हैं कि सिडनी, ऑस्ट्रेलिया जा रहे हैं, जबकि पहुंच जाते हैं कनाडा!”
हमारे यहां भी तो “दिल्ली गेट” हर शहर में मिल जाता है – आगरा, लुधियाना, अलीगढ़ – और हर बार कोई न कोई ग़लतबस उतर जाता है। गाँवों में “रामनगर” की गिनती करो तो पच्चीस मिल जाएंगे!
होटल स्टाफ की किस्सागोई: हिम्मत और ह्यूमर
होटल के नाइट ऑडिटर (रात में हिसाब-किताब देखने वाले) अक्सर ऐसे किस्सों के बाद भी अपनी ड्यूटी निभाते रहते हैं। एक टिप्पणी में लिखा, “हमें तो नौकरी से निकालना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है! क्योंकि पूरी रिपोर्टिंग सिर्फ हम जानते हैं।” इसीलिए वे मज़ाक-मज़ाक में कहते हैं, “अगर कोई मेहमान रात १२ बजे शिकागो से नॉर्थ मर्टल बीच जाने की डिमांड करे, तो उसे यही कहेंगे – पहले पेट्रोल पंप से मैप खरीद लो!”
होटल इंडस्ट्री में काम करने वाले बताते हैं कि गेस्ट अक्सर सोचते हैं कि पूरे देश के हर होटल का नक्शा, कमरा नंबर, और पार्किंग डिटेल्स फ्रंट डेस्क वाले को याद होंगी। जैसे हमारे यहां, “भाईसाहब, आपका होटल रेलवे स्टेशन के पास है या मंदिर के पास?” अब अगर स्टेशन दो हैं और मंदिर चार, तो गेस्ट खुद ही उलझ जाता है।
नामों का जाल और GPS की चाल
कई बार तो एक ही नाम के कई शहर, गलियां या होटल ब्रांड इतने दूर-दूर होते हैं कि GPS भी धोखा दे जाए। एक टिप्पणीकार ने मज़ाक में कहा, “अमेरिका में ४,२५० न्यूयॉर्क सेंट्रल पार्क जितना फासला – यानी ८४ मिलियन केले!” अब भला, इतने केले कौन गिन सकता है?
हमारे यहां भी “लाल चौक” या “गांधी चौक” हर शहर में होता है। कई बार तो लोग अपने GPS पर भरोसा कर के ऐसी गली में फंस जाते हैं, जहां से निकलने के लिए मोहल्ले के चायवाले की मदद लेनी पड़ती है।
एक और अनुभव – “ऑस्टिन, मिनेसोटा” और “ऑस्टिन, टेक्सास” में हर महीने कोई न कोई गेस्ट उलझ जाता है। ठीक वैसे ही, जैसे हमारे यहां “गोरखपुर, यूपी” और “गोरखपुर, बिहार” के नाम से ट्रेनें बदल जाती हैं।
होटल स्टाफ के लिए सीख और सबक
इन किस्सों से एक बात तो साफ है – चाहे देश कोई भी हो, नामों का जाल और लोकेशन की उलझनें हर जगह हैं। होटल स्टाफ को हमेशा धैर्य रखना पड़ता है, और कभी-कभी ह्यूमर का तड़का लगाना ही पड़ता है, वरना दिमाग घूम जाएगा।
अगर आप भी कभी होटल बुक करें, तो शहर का नाम, राज्य, और होटल ब्रांड दो बार चेक कर लें। वरना कहीं ऐसा न हो कि आप दिल्ली बुक करें और पहुंच जाएं दिल्लीगेट, अलीगढ़!
निष्कर्ष: आपकी होटल बुकिंग की कहानी क्या है?
तो मित्रों, अगली बार जब आप सफर पर जाएं, तो लोकेशन दो बार चेक करें, और अगर कभी होटल नहीं मिले, तो फ्रंट डेस्क वाले को दोष देने से पहले, अपनी बुकिंग की जांच ज़रूर कर लें। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कोई मजेदार हादसा हुआ है? कमेंट में साझा करें और इस पोस्ट को अपने मुसाफिर दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें!
यात्रा का मज़ा, ग़लत लोकेशन के तड़के के साथ – यही है असली ज़िंदगी!
मूल रेडिट पोस्ट: I can't find the hotel.