होटल की 'केंद्रीय बुकिंग' वाली सिरदर्दी! जब रिसेप्शनिस्ट का सब्र जवाब दे गया
अगर आप कभी होटल में रुके हैं, तो आपको शायद अंदाज़ा नहीं होगा कि रिसेप्शन के पीछे कितनी उथल-पुथल चलती रहती है। एक तरफ मेहमानों की फरमाइशें, दूसरी तरफ 'केंद्रीय रिजर्वेशन' वालों की लगातार घंटी – लगता है जैसे होटल का रिसेप्शन न हुआ, रेलवे प्लेटफॉर्म हो गया हो! आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक ऐसी ही मज़ेदार और झल्लाहट भरी कहानी, जिसमें एक होटल कर्मचारी की हिम्मत और समझदारी दोनों देखने लायक हैं।
होटल में केंद्रीय बुकिंग: फायदे कम, सिरदर्द ज्यादा!
अब आप सोच रहे होंगे कि भला ये 'केंद्रीय रिजर्वेशन' क्या बला है? दरअसल, बड़े होटलों में एक कॉल सेंटर या ऑनलाइन टीम होती है जो देश-विदेश से कमरे बुक करती है। सुनने में तो बहुत हाई-फाई लगता है – लेकिन रिसेप्शन पर बैठे कर्मचारियों की मानें तो ये टीम बस 'हाँ' बोलने में माहिर है, चाहे जमीन-आसमान एक हो जाए!
एक Reddit यूज़र, जिन्हें हम यहाँ 'संदीप जी' कहेंगे (असल नाम u/skdnn05), ने अपनी परेशानी साझा की – "शुरुआत के आठ महीने तो जी आसान ही निकल गए, लेकिन अब ये लोग नाक में दम किए हुए हैं।"
सुबह-सुबह का बवाल: तारीख़ों का गड़बड़झाला
हफ्ते के आखिर में, सुबह के साढ़े पाँच बजे – जब आम आदमी तो अपने सपनों में खोया होता है – संदीप जी के फोन की घंटी बजी। केंद्रीय रिजर्वेशन से कॉल आई – "एक मेहमान को बस दिनभर के लिए कमरा चाहिए, शाम को चेकआउट कर जाएगा।"
संदीप जी ने सोचा, "ठीक है, भाई! वैसे भी रात की ऑडिटिंग हो चुकी है, तो एक दिन का चार्ज लगाकर, जल्दी चेकइन की फीस माफ कर दूँगा।" लेकिन असली तामाशा तो तब शुरू हुआ जब वो मेहमान आया – उसके पास कन्फर्मेशन नंबर था, मगर सिस्टम में रिजर्वेशन ढूंढो तो मिले ही नहीं!
गौर से देखा तो पता चला – बुकिंग पिछले दिन की थी! अब बताइए, कैसे-कैसे खिलाड़ी बैठे हैं उस केंद्रीय रिजर्वेशन में! बेचारे मेहमान की भी हालत पतली, और संदीप जी को भी अपना होश उड़ता दिखा। आखिरकार, संदीप जी ने मेहमान को नया कमरा दे दिया, उस पुराने दाम पर ही – दिल बड़ा किया, वरना कोई और होता तो कह देता "भैया, दोबारा बुकिंग करो!"
ऑडिट से पहले का आतंक: फोन की घंटियाँ और गुस्से की सीमा
अब आते हैं असली ड्रामे पर। होटल में रात के वक्त एक 'ऑडिट' होता है – यानी पूरे दिन का हिसाब-किताब बंद। ऑडिट से ठीक पहले, संदीप जी ने खुद से वादा किया, "अब एक घंटा पहले से बस कमरेवालों की कॉल उठाऊँगा, बाकी के लिए मेरा फोन नो-एंट्री है!"
लेकिन केंद्रीय रिजर्वेशन वालों की तो जैसे साजिश थी – बार-बार कॉल करते रहे। दसवीं बार जब फोन बजा तो संदीप जी का सब्र जवाब दे गया। उन्होंने फोन उठाकर सीधा कह डाला, "भाईसाहब, क्या सच में इतनी इमरजेंसी थी कि आपने दस बार फोन किया, वो भी जब मैं पहले से बिज़ी था?"
सामने वाले ने बिना बोले फोन काट दिया। संदीप जी बोले, "लगता है, इतनी जरूरी बात भी नहीं थी!"
कम्युनिटी की राय: "मेहमान हमारा सिरदर्द नहीं!"
Reddit पर इस पोस्ट पर जैसी प्रतिक्रियाएँ आईं, वो और भी मज़ेदार थीं! एक यूज़र (हमारी भाषा में कहें तो 'चिंटू जी') ने बड़ा सटीक बोला – "केंद्रीय टीम तो बस हाँ बोलकर बुकिंग करवा देती है, चाहे होटल माने या न माने। उनकी सोच – 'अबे, मेहमान होटल का सिरदर्द है, हमारा नहीं!'"
दूसरे ने (बबलू जी) तो समाधान भी बता दिया – "ऑडिट से एक घंटा पहले बुकिंग बंद कर दो, और पैसा एडवांस में लो। अगर मेहमान वक्त पर नहीं आया या पेमेंट नहीं हुआ, तो बुकिंग अपने आप कैंसिल!"
खुद संदीप जी ने भी जवाब में कहा – "अब मैं कह दूँगा, दिनभर की बुकिंग सिर्फ रिसेप्शन से ही मिलेगी। जब तक केंद्रीय टीम ज़ीरो दिन की बुकिंग नहीं कर सकती और मुझे अर्ली चेकइन माफ करनी है, तो उनकी कोई दाल नहीं गलेगी!"
एक और यूज़र (गोलू जी) ने तो हद कर दी – "इन रिजर्वेशन वालों और थर्ड पार्टी साइट्स की ऐसी-तैसी! दिनभर का कमरा चाहिए, तो पूरे दिन का किराया दो, ऊपर से GST अलग!"
भारतीय होटल संस्कृति में ऐसे हालात क्यों आम हैं?
हमारे यहाँ भी, चाहे वो दिल्ली का पॉश होटल हो या बनारस का कोई धर्मशाला, रिसेप्शन पर बैठे कर्मचारी की हालत एक जैसी होती है। ऊपर से मेहमान भी अपने हक का पूरा इस्तेमाल करते हैं – "भैया, जल्दी चेकइन करवा दो", "भैया, डिस्काउंट मिल जाएगा?" और फिर ऊपर से बुकिंग साइट्स की गड़बड़ियाँ!
केंद्रीय बुकिंग सिस्टम सुनने में जितना शानदार लगता है, असल में उतना ही झंझट वाला है। जब तक होटल और बुकिंग टीम के बीच सीधी, स्पष्ट बातचीत नहीं होगी, तब तक ऐसे किस्से बार-बार होते रहेंगे।
निष्कर्ष: क्या आपने भी ऐसे अनुभव झेले हैं?
कहानी से हमें यही सीख मिलती है – होटल की लाइफ बाहर से जितनी चमकदार दिखती है, अंदर से उतनी ही चुनौतीपूर्ण है। अगली बार जब आप चेकइन करने जाएँ और रिसेप्शनिस्ट थोड़ा चिड़चिड़ा लगे, तो समझ जाइए – शायद उन्होंने भी पिछली रात केंद्रीय रिजर्वेशन वालों का सामना किया होगा!
अगर आपके साथ भी कभी ऐसा मजेदार या झल्लाहट भरा होटल अनुभव हुआ हो, तो कमेंट में जरूर बताइए। और हाँ, इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें – ताकि अगली बार होटल में कोई बेवजह चिल्लाए नहीं, बल्कि रिसेप्शनिस्ट की भी सुन ले!
मूल रेडिट पोस्ट: Central reservations..