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हॉकी टीमों का हमला: होटल स्टाफ की नींद उड़ाने वाले मेहमान

नवंबर के लिए होटल कमरे बुक करते हॉकी टीमें, सीजन की तैयारी और उत्साह दर्शाते हुए।
इस नवंबर में अपने पहले हॉकी समूहों का स्वागत करने की तैयारी करते हुए, उत्साह का माहौल है! यह चित्र टीमवर्क और अपेक्षा की भावना को दर्शाता है, जब परिवार हमारे साथ ठहरने की तैयारी कर रहे हैं। खेलों की शुरुआत करें!

अगर आपको लगता है कि होटल में काम करना बड़ा आरामदायक और शांति भरा पेशा है, तो जनाब, ज़रा ठहरिए! आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ जहाँ होटल स्टाफ की शांति, हॉकी टीमों के आते ही, तेज़ आंधी में उड़ जाती है। जिस तरह हमारे यहाँ शादी-ब्याह या बारातियों के आने से होटल वाले परेशान होते हैं, वैसे ही पश्चिमी देशों के होटलों में हॉकी टीमों के आने से हलचल मच जाती है।

फिर नवंबर का महीना, जो वहाँ की सर्दियों का मौसम होता है, होटल वालों के लिए किसी बेमौसम बरसात से कम नहीं। जैसे ही हॉकी टूर्नामेंट की बुकिंग शुरू हुई, होटल के फोन की घंटी ऐसी बजी कि मानो शादी के सीज़न में कैटरर का फोन हो!

हॉकी टीमों का कहर: बुकिंग शुरू, सरदर्द शुरू

कहानी की शुरुआत कुछ यूँ हुई कि होटल में दो हॉकी टीमों की बुकिंग हुई। होटल की परंपरा के मुताबिक, हर टीम को एक ग्रुप नंबर दिया गया ताकि सभी परिवार उसी नंबर से अपने-अपने कमरे बुक कर सकें। लेकिन जैसे ही वह ईमेल भेजी गई, हर परिवार ने एक साथ फोन उठाया और होटल के फोन ऐसे बजने लगे जैसे किसी सरकारी दफ्तर में नया स्कीम खुल गया हो।

लेखक (u/HomelandersBulge) लिखते हैं — "एक घंटे तक मेरे और मेरे मैनेजर के कान फोन पर ही चिपके रहे। हॉकी टीमों के माता-पिता होटल स्टाफ के लिए वैसे ही हैं जैसे हमारे यहाँ बारातियों के साथ आने वाले शैतान बच्चे — जितना रोक लो, उतना ही मस्ती!"

पूल की महाभारत: तौलिये, पानी और कांच की बोतलें

कई लोगों ने कमेंट में सलाह दी कि "कृपया होटल की 'शांति के घंटे' की नीति सबको समझा दो, और अगर पूल है तो देख लो कहीं कोई कांच की बोतल तो नहीं ला रहा!" पश्चिमी देशों में पूल का बड़ा क्रेज है, लेकिन हॉकी टीमों के आते ही वहाँ का हाल किसी मेले से कम नहीं।

लेखक का दर्द साफ झलकता है: "पूल का पानी इतना गंदा हो जाता है कि लगता है किसी ने उसमें झील का पानी भर दिया! और तौलिये? हर कोई ऐसे पाँच-पाँच तौलिये ले जाता है जैसे बुफे में मुफ्त समोसे बँट रहे हों!"

एक और पाठक ने मज़ाकिया अंदाज़ में सुझाव दिया, "अगर यही हाल रहा तो पूल को 'रखरखाव' के नाम पर बंद ही कर दो!" सोचिए, हमारे यहाँ भी ऐसे जुगाड़ खूब चलते हैं — जैसे शादी में जब बाराती ज़्यादा शोर मचाएँ तो जेनेरेटर "अचानक" बंद करना!

पुराने ज़माने की टेक्नोलॉजी और नये ज़माने की मुसीबतें

होटल की ऑनलाइन बुकिंग अब आम बात है, लेकिन इस होटल में अभी भी पुराने तरीकों पर ही काम चल रहा है। एक पाठक ने पूछा, "भाई, सीधा ऑनलाइन लिंक क्यों नहीं बना लेते?" जवाब मिला, "हमारे यहाँ के मैनेजर आज भी कार्ड इम्प्रिंटर और रजिस्टर के ज़माने में अटके हुए हैं!"

यह सुनकर तो अपने यहाँ के सरकारी बाबू याद आ गए, जो कंप्यूटर को देखकर अब भी चाय की प्याली के पीछे छुप जाते हैं। तकनीक न बदले तो दिक्कतें भी ऐसे ही चलती रहेंगी।

हॉकी टीमों का व्यवहार: नियम, अनुशासन और असली सिरदर्द

होटल हर साल नियमों की एक लंबी लिस्ट बनाता है — "हॉलवे में हॉकी खेलना मना है, बच्चे बिना देख-रेख के नहीं घूमेंगे, सार्वजनिक जगहों पर शराब नहीं पिएंगे" — लेकिन हर बार ये नियम बस कागज पर ही रह जाते हैं।

लेखक बताते हैं, "हर बार माता-पिता सोचते हैं कि नियम सिर्फ दूसरों के लिए हैं। खुद तो एक कमरे में पार्टी जमाएँगे और उनके बच्चे होटल में जंगली घोड़े की तरह दौड़ते रहेंगे।"

एक पाठक ने मज़ाक में कहा, "हॉकी सीज़न सिर्फ 10 महीने का ही तो है!" सोचिए, हमारे यहाँ शादी का सीज़न भी ऐसा ही लंबा हो जाए तो होटल वालों का क्या हाल होगा!

अन्य टीमें और तुलना: सब एक जैसे नहीं

इसी बीच, लेखक ने एक रोचक किस्सा साझा किया — जब कर्लिंग टीम आई थी, तो उनके साथ सिर्फ कोच और दो महिला चपरासी थीं। वे दोनों रात 9:30 बजे लॉबी में बैठ जातीं और 10 बजे से पहले सभी बच्चों को कमरों में भेज देतीं। होटल में एकदम शांति! लेखक तो मज़ाक में कहते हैं, "मन किया दोनों को गाल पर चूम लूँ!"

लेकिन हॉकी टीम के आठ साल के बच्चे तक स्टाफ को गाली देने लगते हैं — "हॉलवे में हॉकी नहीं खेलने दोगे तो 'फॉ' तक बोल देंगे!"

होटल स्टाफ की मजबूरी और मज़ाक

कई पाठकों ने सहानुभूति जताई — "भगवान करे तुम्हारी कॉफी हमेशा गर्म रहे और नींद पूरी हो!" एक और ने लिखा, "अच्छा हुआ अगला वीकेंड पहले ही फुल है, हॉकी टीमों को मना करने में जो मज़ा है, वो और कहीं नहीं!"

होटल स्टाफ की मजबूरी भी समझिए — ये टीमें पैसे तो खूब कमाती हैं, लेकिन सारी झंझटें फ्रंट डेस्क वालों के हिस्से आती हैं। मैनेजर तो बस कोच को धमका के छोड़ देते हैं, असली झाड़ वही खाते हैं जो फोन उठाते हैं और शिकायतें सुनते हैं।

निष्कर्ष: आपकी भी कोई बारात/टीम की कहानी है?

तो अगली बार जब आप होटल में ठहरने जाएँ और वहाँ शोर-शराबा दिखे, तो जरा होटल स्टाफ की हालत भी समझिए। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा अनुभव हुआ है — शादी, बारात, स्कूल ट्रिप या किसी ग्रुप बुकिंग के दौरान? अपनी कहानी ज़रूर साझा करें, शायद अगली बार आपकी कहानी की चर्चा यहाँ हो!

अगर आपको यह लेख पसंद आया हो, तो कॉमेंट में अपनी राय बताना न भूलें। और हाँ, होटल स्टाफ को सलाम, जो हर 'हॉकी सीज़न' को झेलते हैं, बिल्कुल हमारे यहाँ की बारातों की तरह!


मूल रेडिट पोस्ट: And So It Begins….