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साहब बोले – “मैं मैनेजिंग डायरेक्टर हूँ, मुझे सब करने की छूट है!”… पर हॉस्टल में उनका जलवा फीका पड़ गया

एक छात्रावास के लॉबी में विभिन्न निवासियों और मेहमानों का स्वागत करते हुए प्रबंध निदेशक का कार्टून-3डी चित्र।
इस जीवंत कार्टून-3डी चित्रण में, प्रबंध निदेशक हलचल भरे छात्रावास की लॉबी में विविध निवासियों का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं, जो छात्र आवास में सामुदायिक भावना और नेतृत्व का प्रतीक है।

कहते हैं ना – “जहाँ चाह वहाँ राह!” लेकिन जब चाह थोड़ा ज्यादा हो और राह गलत जगह जा पहुँचे, तो क्या होता है? आज की कहानी एक ऐसे साहब की है, जो खुद को मैनेजिंग डायरेक्टर बताते हुए स्टूडेंट हॉस्टल में घुस आए और बोले – “मुझे यहाँ रूम दो, मैं हकदार हूँ!” अब ज़रा सोचिए, अगर आपके कॉलेज हॉस्टल में अचानक कोई उम्रदराज़, सूट-बूट वाला अंकल आकर रूम मांगने लगे, तो आप क्या करेंगे?

जब साहब का ‘मैं’ स्टूडेंट हॉस्टल में टकराया

हमारे एक Reddit मित्र u/LutschiPutschi एक हॉस्टल चलाते हैं, जहाँ छात्र-छात्राएँ, कुछ ट्रेनी और नए-नवेले युवा प्रोफेशनल रहते हैं। एक दिन अचानक एक पचास के पार के सज्जन साहब (जो दिखने में पूरी तरह किसी कंपनी के सीईओ लगते थे) चले आए।

हॉस्टल के लबी में खड़े-खड़े पूछने लगे, “क्या आप अपने बच्चे के लिए रूम देख रहे हैं?”
साहब बोले, “नहीं, मैं खुद प्रबंधक हूँ, वीकडेज़ में रहने के लिए रूम चाहिए।”
हॉस्टल संचालक थोड़े हैरान – “पर ये तो स्टूडेंट हॉस्टल है?”
साहब तुरन्त बोले, “अरे वेबसाइट पर लिखा है – प्रोफेशनल के लिए भी है। और उम्र की कोई सीमा तो है नहीं!”

अब भला बताइए, स्टूडेंट्स के लिए बनी जगह में जब कोई उम्रदराज़ अफसर घुस जाए, तो माहौल कैसा होगा? Reddit पर कई साथियों ने मजाकिया अंदाज में लिखा – “शायद सस्ते में लड़कियों से मिलने का जुगाड़ ढूँढ रहे हैं!” एक ने तो कह दिया, “भैया, ऐसे लोगों के लिए तो गड्ढे में ही जगह है, हॉस्टल में नहीं!”

अमीरों की कंजूसी – ‘लक्ष्मी की कमी नहीं, पर खर्चा कम!’

हमारे समाज में मान्यता है – “जिसके पास जितना पैसा, वह उतना ही मितव्ययी (कंजूस)!” Reddit पर कई लोगों ने इसी बात पर जोर दिया। एक ने लिखा, “बड़े-बड़े अमीर लोग भी मुफ्त की चीज़ों के लिए लाइन लगा देते हैं, जैसे हमारे मुहल्ले के शर्मा जी हर शादी में सबसे पहले खाने की प्लेट पकड़ लेते हैं, चाहे घर में 10 नौकर हों।”

एक और मजेदार किस्सा आया – “मेरे पड़ोसी करोड़पति हैं, पर मोबाइल कंपनी से 40 रुपये की फीस बचाने के लिए 4 घंटे बहस करते हैं। असल में, इनके लिए डिस्काउंट लेना खेल है, पैसे की जरूरत नहीं!”

OP ने भी शेयर किया, “मालिक इतना अमीर था, पर कभी भी कर्मचारियों के लिए केक नहीं लाया, सिर्फ दूसरों का खाता था।”
सही भी है, “दूसरों का माल मुफ्त में उड़ाना, अमीरों की पुरानी आदत है!”

‘नियम-कानून’ और ‘सिस्टम की चतुराई’ – उम्र का सवाल या सिस्टम की लाचारी?

अब सवाल आया कि क्या हॉस्टल वालों ने उम्र देखकर भेदभाव किया? एक-दो कमेंट्स में इसे age discrimination कहा गया। लेकिन Reddit समुदाय की सामूहिक राय थी – “अगर ये स्टूडेंट हॉस्टल है, तो वहां रहने के लिए सही दस्तावेज़ और कारण चाहिए। बुजुर्ग साहब सिर्फ पैसे बचाने के लिए स्टूडेंट्स का हक नहीं छीन सकते।”

एक सज्जन ने लिखा – “अरे भैया, अगर आप कॉलेज में नामांकन करा लें, तो फिर से स्टूडेंट बनकर हॉस्टल में रह सकते हैं। लेकिन बच्चों का हक छीनना ठीक नहीं।”
OP ने भी तंज कसते हुए कहा, “आज जो साहब महंगे ब्रांड पहने खड़े थे, वही सबसे सस्ती सुविधा पर झगड़ रहे थे। इन्हें भूख से तो मरना नहीं है, पर स्टूडेंट्स का घर छीनना मंजूर है!”

‘रिव्यू’ का डर और जवाब का मज़ा

आखिरकार, साहब को जब कमरा नहीं मिला, तो उनका मिजाज बिगड़ गया। OP को लग रहा है कि अब कोई खराब ऑनलाइन रिव्यू जरूर आएगा। Reddit पर एक ने मजाक किया – “अगर रिव्यू आए तो हमें बताना, हम भी जवाब में सारी सच्चाई लिखेंगे!”
हॉस्टल संचालक ने भी ठान लिया – “अब तो जवाब देने में मज़ा आएगा!”

निष्कर्ष – सबक क्या मिला?

इस पूरे किस्से से हमें दो बातें सीखने को मिलती हैं –
पहली, चाहे आप कितने भी बड़े अधिकारी हों, हर जगह आपके ‘पद’ का सिक्का नहीं चलता।
दूसरी, समाज के लिए बनाई गई सुविधाओं का गलत इस्तेमाल न करें, खासकर जब वह युवाओं/छात्रों के लिए हों।
और सबसे अहम – कंजूसी और चालाकी का मेल कभी-कभी आपको हास्य का पात्र भी बना देता है!

आपके विचार?

क्या आपने भी कभी ऐसे साहबों का सामना किया है, जो अपनी हैसियत दिखाकर नियम तोड़ना चाहते हैं? या कोई और मजेदार हॉस्टल/पीजी का किस्सा? कमेंट में जरूर बताइए!
और हाँ, अगली बार कोई “मैं मैनेजिंग डायरेक्टर हूँ!” कहे, तो मुस्कुरा कर पूछिए – “अच्छा, फिर आपके लिए स्टूडेंट्स वाली थाली लगाऊँ?”


मूल रेडिट पोस्ट: I'm the managing director and I'm allowed to do anything!