सेवा का फल – जब होटल कर्मचारी बना 'खलनायक'!
कभी-कभी लगता है कि “नेकी कर, दरिया में डाल” वाली कहावत होटल इंडस्ट्री के लिए ही बनी है। होटल में काम करने वाले कर्मचारियों की हालत वैसी ही होती है जैसे शादी-ब्याह में घोड़ी के आगे चल रहे बैंड वाले – जितनी भी मेहनत कर लो, तारीफ़ मिलना तो दूर, उल्टा सुनने को ही मिलता है! आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें एक होटल कर्मचारी ने अपनी पूरी मेहनत से मेहमानों की सेवा की, पर बदले में मिली सिर्फ़ आलोचना और एक झूठी बदनामी की चादर।
जब मेहमान बने 'शेर' और कर्मचारी बना 'बलि का बकरा'
एक होटल रिसेप्शनिस्ट का अनुभव सुनिए – मामला कुछ यूं था कि दोपहर की शिफ्ट में रिसेप्शन पर अकेले थे, होटल लगभग पूरा बुक था। तभी तीन अतिथि – दो महिलाएं और एक पुरुष – बिना किसी अभिवादन के सीधे पहुंच गए। पूछने पर बस उपनाम बताया, जैसे कोई सरकारी दफ्तर में बाबू से बात कर रहे हों। रिसेप्शनिस्ट ने विनम्रता से पूछा, “क्या आप चेक-इन कर रहे हैं? यात्रा कैसी रही?” जवाब था – “हाँ,” और फिर दोबारा वही उपनाम।
सिस्टम में खूब खोजबीन की, लेकिन उस नाम से कोई बुकिंग नहीं मिली। फिर पूछा, “क्या बुकिंग किसी और नाम से हो सकती है या आपके पास कोई कन्फर्मेशन नंबर है?” बस, इतना सुनते ही पत्नी जी भड़क गईं – “रिजर्वेशन ढूंढने में इतनी क्या मुश्किल है?” पति महोदय भी अड़े रहे कि बुकिंग उसी नाम से है, पर कन्फर्मेशन नंबर? वो भी नहीं!
थोड़ी मशक्कत के बाद पता चला कि बुकिंग पहले उनके नाम से थी, फिर रद्द की गई और बहन के नाम से दोबारा हुई थी। जब ये सब समझाया तो माफी मांगने की जगह और बहस झेलनी पड़ी। खैर, चेक-इन करवाया और ऊपर भेजा।
बिस्तर की 'बड़ी' समस्या और ठंड की 'गर्मी'
कुछ देर बाद मेहमान वापस आये – बोले, “तीन बड़े लोगों के लिए बुकिंग थी, लेकिन कमरे में बच्चों वाला बेड है!” रिसेप्शनिस्ट ने पूछा – “क्या सच में पालना (क्रिब) है या सिंगल एक्स्ट्रा बेड?” जवाब – “सिंगल बेड है, बच्चों के लिए!” अब क्या करें, होटल फुल, कोई दूसरा ऑप्शन नहीं। समझाया, “यही एक्स्ट्रा बेड आपने बुक किया है, ये वयस्क के लिए भी सही है।” लेकिन मेहमान तो बहस करने की ठान चुके थे – जैसे शादी में खाना खराब हो तो पूरा दोष हलवाई का!
अगली दोपहर फिर वही मेहमान – इस बार शिकायत थी कि एयर कंडीशनिंग ठंडी नहीं कर रही। मज़े की बात, बाहर सर्दी का मौसम, और सिस्टम 19°C (लगभग 66°F) से नीचे जा ही नहीं सकता था। रिसेप्शनिस्ट ने भी भारतीय जुगाड़ लगाया – दूसरे कमरे दिखाए, पंखे मंगवाने की व्यवस्था कर दी, ताकि अगला ड्रामा न हो। पर मेहमानों की नाखुशी जस की तस!
कम्युनिटी की राय – 'नाराज़ मेहमानों' का कोई इलाज नहीं!
रेडिट पर इस कहानी पर लोगों के जबरदस्त कमेंट्स आए। एक यूज़र ने लिखा, “कुछ लोग कितनी भी सेवा कर लो, खुश नहीं होते। असल में उन्हें होटल से नहीं, अपनी जिंदगी से शिकायत है!” यह बात किसी भी भारतीय होटल कर्मचारी की जुबां से निकल सकती है।
एक और मज़ेदार टिप्पणी थी, “ये लोग शायद उम्मीद कर रहे थे कि बिना पैसे दिए लग्ज़री सुइट मिल जाए!” – भाई, ये तो वही बात हो गई जैसे बिना दहेज लिए दूल्हा अमेरिका भेज दे!
किसी ने सुझाव दिया, “ऐसे ग्राहकों को भविष्य में कमरा ही ना दिया जाए। आदर-सत्कार उन्हीं का जो आदर करना जानें।” यही सोच भारत के कई होटल मालिकों की भी होती है – 'कस्टमर राजा है', लेकिन कभी-कभी राजा भी जिद्दी बच्चा बन जाता है।
कुछ ने तो यह भी सुझाया कि अगर कोई बार-बार बिस्तर या ठंड की शिकायत करे, तो सीधा बोल देना चाहिए – “महोदय/महोदया, आपने जो कमरा चुना है, वही आपकी किस्मत है। बाकी भगवान मालिक!”
"नेकी का यही सिला मिलेगा?"
कहानी का सबसे दिलचस्प हिस्सा – छुट्टियों से लौटने के बाद रिसेप्शनिस्ट ने देखा कि उन्हीं मेहमानों ने एक ज़बरदस्त नेगेटिव रिव्यू डाल दी थी – “रिसेप्शनिस्ट आलसी, बेवकूफ, बुकिंग ढूंढ नहीं पाया, बहन को बच्चों वाले बेड पर सुला दिया, और मदद करने की जगह झूठ बोलता रहा।”
अब भला सोचिए – जिसने अपनी ड्यूटी से ज्यादा मेहनत की, पंखे मंगवाए, बड़े बिस्तर का इंतजाम किया, अलग-अलग कमरे दिखाए – उसे आखिरकार मिला क्या? सिर्फ़ बदनामी! यही तो है होटल इंडस्ट्री का सच – चाहे जितना पसीना बहाओ, कुछ मेहमानों की नजर में आप हमेशा 'खलनायक' ही रहेंगे।
निष्कर्ष – सेवा का फल और पाठकों से सवाल
होटल, रिसेप्शन या किसी भी सेवा क्षेत्र में काम करने वालों की मुश्किलें हर भारतीय समझ सकता है। चाहे शादी हो या होटल, नखरे हर जगह मिलेंगे – पर सही व्यवहार और धैर्य ही असली जीत है। इस कहानी से साफ है, हर ग्राहक की खुशी आपके हाथ में नहीं, लेकिन अपनी मेहनत और ईमानदारी आपके साथ रहनी चाहिए।
आपका क्या अनुभव रहा है? कभी आपने भी किसी ऐसी 'सेवा' दी, जिसका बदला उल्टा सुनकर मिला हो? अपने किस्से नीचे कॉमेंट में जरूर शेयर करें। आखिर, “दुख बांटने से कम होता है, और होटल की कहानियां शेयर करने से हंसी ज़रूर आती है!”
मूल रेडिट पोस्ट: no good deed goes unpunished