सर्दी के शौकीन 'केविन' की हरकतें: जब ठंड में सबकी छुट्टी कर दी!
क्या आप ऐसे किसी इंसान को जानते हैं जिसे कड़ाके की ठंड में भी स्वेटर या कोट की ज़रूरत नहीं पड़ती? अपने पड़ोस, ऑफिस या मोहल्ले में तो अक्सर कोई-न-कोई 'बर्फीला वीर' मिल ही जाता है, जो दिसंबर-जनवरी की ठिठुरती सुबह में भी बिना शॉल, बिना टोपी, बस झक्कास अंदाज में घूमता मिलता है। लेकिन जब यही जोश ओवरडोज़ बन जाए, तो सबकी नाक में दम हो जाता है!
आज की कहानी है ऐसे ही एक 'केविन' की, जिसने थिएटर में काम करते हुए सबको ठंड के मौसम में छेड़-छाड़ और घमंड की हदें पार कर दीं। तो चलिए, जानते हैं कैसे एक ठंड के दीवाने की हरकतों ने ऑफिस का माहौल बदल कर रख दिया!
'केविन'—ठंड का बादशाह या सबका सिरदर्द?
थिएटर में काम करते वक्त लेखक की मुलाकात हुई केविन नाम के एक सहकर्मी से, जो ठंड से बिल्कुल नहीं डरता था। लगभग -12 डिग्री सेल्सियस (यानी 10°F) की हड्डियाँ जमा देने वाली ठंड में भी केविन बिना कोट के दनदनाता घूमता था, जैसे उसे ठंड छू भी नहीं सकती! ऑफिस के बाकी लोग, खासकर लेखक, जैसे ही बाहर कुछ काम करने निकलते, अपने मोटे-मोटे कोट, टोपी और दस्ताने पहन लेते।
अब आप सोच रहे होंगे, इसमें नया क्या है? असली कहानी तो तब शुरू होती है जब केविन अपनी इस 'ठंड-प्रेमी' आदत का घमंड दिखाने लगता है। बाकी सहकर्मी जब बाहर कचरा फेंकने या थिएटर की सफाई करने जाते, तो केविन उन्हें चिढ़ाता—"अरे, इतनी सी ठंड में कोट पहन लिया? देखो, मैं तो ऐसे ही चला जाता हूँ!"
एक बार की बात है, लेखक ने कोट पहनकर कचरा बाहर फेंकने का मन बनाया तो केविन ने मज़ाक उड़ाया। लेखक ने तुरंत पलटकर जवाब दिया, "अगर इतनी ठंड से प्यार है, तो कचरा भी तू ही बाहर फेंक दे! मैं बाकी काम संभाल लूंगा।"
जब घमंड का बर्फ पिघलने लगा
केविन की हरकतें यहीं नहीं रुकीं। थिएटर की मैनेजर, ब्रेंडी, जिनकी उम्र 50 के करीब है और जिन्हें सर्दी में नसों में दर्द (नर्व पेन) की पुरानी शिकायत थी, वो भी केविन का शिकार बन गईं। ब्रेंडी को सिर्फ पाँच मिनट की स्मोक ब्रेक के लिए भी बाहर जाना भारी लगता था, लेकिन केविन ने उनपर भी तंज कस दिया। अब भला, किसी सीनियर को यूँ चिढ़ाना कहाँ की समझदारी है!
ब्रेंडी का गुस्सा सातवें आसमान पर था; उन्होंने केविन को समय से पहले ही घर भेज दिया। बाकी टीम ने भी ब्रेंडी का साथ दिया और केविन को समझाया कि हर किसी की सेहत और सहनशीलता अलग होती है। मगर केविन तो जैसे कान में तेल डालकर बैठा था—"अरे, इसमें कौन-सी बड़ी बात है!"
एक पाठक ने कमेंट किया, "जब इसी केविन को कभी सर्दी में नर्व पेन होगा, तब देखना सबसे ज्यादा हल्ला वही करेगा!" (हमारे यहाँ भी तो कहते हैं—'जैसा करोगे, वैसा भरोगे!')
केविन का अजब अंदाज: दम या दिखावा?
ऑनलाइन चर्चा में कई लोगों ने केविन की तुलना 'गली के उन लड़कों' से की, जो जनवरी में भी हाफ पैंट और टी-शर्ट पहनकर, चेहरे पर लालिमा और होठों पर मुस्कान लिए, मोहल्ले में शान से घूमते रहते हैं।
एक यूज़र ने लिखा, "हमारे यहाँ भी ऐसे लोग हैं, जो जनवरी की सुबह में रजाई छोड़कर बाहर दौड़ते हैं, जैसे ठंड उनके लिए बनी ही नहीं।" लेकिन ज्यादातर लोगों का कहना था कि दूसरों को चिढ़ाना बिल्कुल गलत है—हर शरीर की अपनी ताकत होती है और किसी की तकलीफ का मज़ाक बनाना इंसानियत नहीं।
लेखक ने भी माना कि कभी-कभी केविन सिर्फ मजाक के मूड में रहता, लेकिन जब हद पार हो गई, तो टीम और मैनेजमेंट ने सख्ती से जवाब दिया।
टीम वर्क और सहानुभूति: दफ्तर की असली गर्मी
इस किस्से से एक बढ़िया सीख मिलती है—दफ्तर या किसी भी टीम में टीम वर्क और सहानुभूति सबसे ज़रूरी है। भारत में भी तो ऑफिस की कैंटीन से लेकर चाय के ठेले तक, हर जगह ये बातें होती हैं कि 'भाई, किसी की मजबूरी का मजाक मत उड़ाओ, कल को खुद पर आ गई तो...'
यहां भी बाकी कर्मचारियों ने ब्रेंडी की तकलीफ को समझा, उनका साथ दिया और टीम वर्क की मिसाल पेश की। आखिरकार, केविन को कई मौके देने के बाद मैनेजमेंट ने उसे अलविदा कह ही दिया, क्योंकि दफ्तर में सामूहिक सम्मान और समझदारी ज़रूरी है—वरना टीम का माहौल ही बिगड़ जाता है।
अंत में...
तो अगली बार जब आपके ऑफिस या मोहल्ले में कोई 'केविन' टाइप बंदा ठंड में बिना स्वेटर के घूमता दिखे और दूसरों को चिढ़ाए, तो उसे प्यार से समझाइए कि हर किसी की सहनशक्ति अलग होती है। और अगर न माने, तो हमारी तरह टीम वर्क दिखाइए—क्योंकि असली गर्मी तो इंसानियत में है, ऊल-जलूल घमंड में नहीं!
क्या आपके ऑफिस में भी कोई 'केविन' है? आपकी ऐसी कोई मजेदार कहानी है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं—हम सबको पढ़कर बड़ा मजा आएगा!
मूल रेडिट पोस्ट: Not everyone enjoys 10 degree weather