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स्कूल के बदमाश को मिली उसकी ही दवा – एक छोटी-सी बदला कहानी

एक एनीमे चित्रण जिसमें एक हाई स्कूल का छात्र एक बुली का सामना कर रहा है।
इस जीवंत एनीमे-शैली के चित्रण में, एक हाई स्कूल का छात्र खेल के मैदान में एक बुली का सामना कर रहा है, जो साथियों के दबाव का सामना करने और चुनौतीपूर्ण समय में साहस खोजने की संघर्ष को दर्शाता है।

बचपन के स्कूल के दिन, जहां दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही अपने पूरे रंग में होती है, वहां कभी-कभी कुछ ऐसे लोग भी मिल जाते हैं जो दूसरों को नीचा दिखाने में ही मज़ा ढूंढ़ते हैं। लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं – और कभी-कभी शिकार भी शिकारी को उसकी औकात दिखा देता है। आज की कहानी एक ऐसे ही स्कूल के बदमाश की है, जिसे उसके शिकार ने अपने ही अंदाज़ में जवाब दे दिया।

जब दोस्ती ने मोड़ा लिया रास्ता – बदमाशी की शुरुआत

हमारे नायक (लेखक) की कहानी भी कुछ इसी तरह शुरू होती है। स्कूल का पहला साल, नए दोस्त, नई दुनिया। ‘आर’ नाम का लड़का, जो शुरुआत में दोस्त लगता था, धीरे-धीरे असली रंग दिखाने लगा। एक दिन तो हद ही हो गई – आर ने लेखक को प्लेग्राउंड में सबके सामने घोड़ा बना दिया! ना चाहते हुए भी, सबकी हंसी का पात्र बनना पड़ा। बच्चा क्या करे? टीचर से शिकायत की, लेकिन हमेशा की तरह जवाब मिला – “बच्चों की बातें हैं, जाने दो।”

बदमाशी का जवाब – जले पर नमक कौन छिड़के?

अब आर को यह बात नागवार गुज़री कि लेखक ने उसकी शिकायत कर दी। मज़ाक के नाम पर उसने रोज़-रोज़ तंग करना शुरू कर दिया – कभी ताने, कभी इज्ज़त की धज्जियाँ। क्लासमेट्स को भी पता था कि आर सिरफिरा है, लेकिन कोई खुलकर साथ नहीं देता। लेखक ने सीधा टकराव नहीं किया – लेकिन दिल में एक चिंगारी जरूर जल गई।

यहां एक कमेंट की याद आती है – एक पाठक ने लिखा, “ऐसे बदमाश अकसर दूसरों को आपस में ही भिड़ा देते हैं, खुद पल्ला झाड़ लेते हैं।” (u/BlakeMW) हमारे स्कूलों में भी ऐसे चालाक लोग खूब मिलते हैं!

बदला – चुपके-चुपके, लेकिन जोरदार

कहते हैं, सब्र का फल मीठा होता है। एक दिन खेल-कूद की क्लास में मौका मिल गया। लॉकर रूम में आर का बैग दिखा – और लेखक ने बिना वक्त गंवाए उसे बाथरूम की दीवार के पार बंद शावर में फेंक दिया। क्लास खत्म, आर बैग खोजता रह गया। जब आया तो गुस्से में तमतमा रहा था – लेकिन कोई सबूत नहीं, कोई गवाह नहीं। सब चुप!

लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी। अगली बार, पीई की क्लास में, लॉकर रूम के दरवाज़े में कोई हैंडल नहीं था – बस चाबी से ही खुलता। जैसे ही आर अकेला था, लेखक ने झटपट दरवाज़ा बंद कर दिया! आधा घंटा आर अंदर ही पसीने-पसीने होता रहा, बाहर क्लास चलती रही। जब टीचर ने दरवाज़ा खोला, आर की शक्ल देखने लायक थी! सबको पता था किसने किया, लेकिन कोई मुंह खोलने वाला नहीं था।

यहां एक और मज़ेदार कमेंट को शामिल करना बनता है – एक पाठक ने लिखा, “अरे, जो दूसरों को तंग करे, उसे उसकी ही दवा चखाना जरूरी है!” (u/Sharp_Coat3797) सही बात है, कभी-कभी छोटा सा बदला भी बड़ा सुकून देता है।

स्कूल का बदमाश – अकेला और पछतावे में

आर ने बदमाशी कम तो नहीं की, लेकिन इतना जरूर हुआ कि अब उसका असर कम पड़ गया। उसके दोस्त तो रहे नहीं, क्लास में सब उसे घूरते – उसकी असलियत सबके सामने थी। तीन साल बाद आर स्कूल छोड़ गया, और लेखक ने राहत की सांस ली। सच में, समय बड़ा बलवान होता है – जो जैसा करेगा, वैसा पायेगा।

एक और कमेंट में किसी ने लिखा, “ऐसे लोग आखिर अकेले ही रह जाते हैं, क्योंकि सब जान जाते हैं कि इनकी फितरत क्या है।” (u/PoisonPlushi) स्कूल में, समाज में – ये बात हर जगह सच है।

पाठक के लिए सवाल – क्या आपने भी कभी ऐसा किया है?

स्कूल के दिनों की ऐसी कहानियाँ हर किसी के पास होती हैं। कभी-कभी चुप रहना मजबूरी लगती है, लेकिन सही मौके पर छोटा सा कदम भी बड़ा असर कर सकता है। क्या आपके स्कूल में भी कोई ‘आर’ था? क्या आपने भी कभी किसी बदमाश को उसकी औकात दिखाई? या फिर किसी दोस्त के लिए चुपचाप कुछ किया हो?

अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर लिखिए। कौन जाने, आपकी कहानी भी किसी को हिम्मत दे दे!

अंत में एक बात – मज़ाक और बदमाशी में फर्क होता है। दोस्ती में छेड़छाड़ ठीक है, लेकिन किसी की इज्ज़त उछालना या बार-बार तंग करना कभी जायज़ नहीं। और कभी-कभी, चुपचाप लिया गया छोटा बदला ही सबसे बड़ा जवाब बन जाता है।

तो अगली बार अगर आपको कोई ‘आर’ मिले, तो याद रखिए – कभी-कभी शांति से भी जंग जीती जा सकती है!


मूल रेडिट पोस्ट: Revenges on school bully.