स्कूल की दोपहर की निगरानी करने वाले मास्टरजी – क्या कुछ गड़बड़ है?
स्कूल की दुनिया भी बड़ी निराली होती है – जहां बच्चों की शरारतें आसमान छूती हैं, वहीं हर कोने में कोई न कोई मास्टरजी या दीदी, निगरानी के लिए तैनात रहते हैं। लेकिन सोचिए अगर वही निगरानी करने वाला थोड़ा अजीब सा बर्ताव करने लगे, तो क्या हो? आज की कहानी Reddit के मशहूर "r/StoriesAboutKevin" से आई है, जिसमें एक छात्र ने अपने स्कूल की लंच मॉनिटरिंग टीचर की हरकतों को लेकर सवाल उठाया है।
जैसे हमारे यहां स्कूल के चपरासी या स्पोर्ट्स मास्टर बच्चों की निगरानी करते हैं, वैसे ही वहां लंच टाइम में एक टीचर बच्चों पर नज़र रखते हैं। लेकिन जब वही निगरानी मास्टरजी बच्चों को लेकर कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिखाने लगें, तो बच्चों के मन में भी शंका पैदा होनी लाजमी है।
वो मास्टरजी, जिनकी नज़रें हमेशा बच्चों पर
कहानी के लेखक u/WalrusSilver6740 बताते हैं कि उनके स्कूल की लंच मॉनिटरिंग टीचर की हरकतें कुछ ज्यादा ही अजीब लगने लगी हैं। स्कूल का लंच टाइम मतलब बच्चों की सबसे प्यारी घड़ी – कोई टिफिन में आलू के पराठे निकालता है, कोई चुपके से समोसा शेयर कर रहा है। लेकिन ये मास्टरजी बच्चों पर ऐसे नज़रें गड़ाए रहते हैं, जैसे कि कोई CID का इंस्पेक्टर हो!
अब, Reddit पर तो लोग खुलकर बोलते हैं, लेकिन भारत में अगर कोई मास्टरजी बच्चों की हर बात पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने लगे, तो बच्चे तो फौरन पकड़ लेते हैं – "मास्टरजी, आपको तो हम पर ही शक है!"
Reddit की महफिल: हंसी-मज़ाक और चिंता भी
इस पोस्ट पर कमेंट्स की भी कमी नहीं थी। एक यूज़र -Prototype-XIII ने तो मजाकिया अंदाज में लिखा, "ये तो 'रास्ता भटके हुए रेडिट यूज़र्स' वाली बात हो गई!" (यहां 'r/lostredditors' सबरेडिट का मजाक उड़ाया गया)। जैसे हमारे यहां कहावत है – "भैंस के आगे बीन बजाओ, भैंस खड़ी पगुराए।" मतलब कुछ बातें बेवजह की होती हैं, बस यूं ही चर्चा का विषय बन जाती हैं।
एक और कमेंट में u/goosepills ने कहा, "अगर वो केविन है, तो चिंता की कोई बात ही नहीं!" (केविन शब्द इस सबरेडिट में उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है, जो थोड़े अलग या अजीब तरह के होते हैं – जैसे हमारे यहां 'मूर्ख लाल' या 'गप्पू' कह देते हैं)। तो शायद ये मास्टरजी भी बस केविन टाइप के ही हों – मतलब नुकसान नहीं पहुंचाते, बस थोड़े हटके हैं।
लेकिन एक और यूज़र, u/pissclamato ने सही मुद्दा उठाया – "तुम्हें पता भी है कि ये सबरेडिट किसलिए है?" यानी, कभी-कभी हम खुद भी बिना बात के शक करने लगते हैं, जबकि मामला उतना गंभीर नहीं होता।
बच्चों की मासूमियत बनाम बड़ों की चिंता
हमारे समाज में बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंता रहती है, और होनी भी चाहिए। लेकिन कभी-कभी हमारी कल्पना भी घोड़ा दौड़ाने लगती है। जैसे कि इस कहानी में – हो सकता है मास्टरजी बस अपनी ड्यूटी निभा रहे हों, और बच्चों को उनकी सख्ती खटक रही हो।
सोचिए, अगर आपके स्कूल में भी कोई मास्टरजी हर समय आपको घूरते रहते, तो क्या आप भी दोस्तों के साथ मिलकर मजाक नहीं बनाते? "अरे यार, ये मास्टरजी तो हर रोज़ हमें ऐसे घूरते हैं, जैसे हमने उनकी चाय में नमक ज़्यादा डाल दिया हो!"
क्या सच में कुछ गड़बड़ है, या सिर्फ मन का वहम?
अक्सर स्कूलों में बच्चों के मन में टीचर्स को लेकर कई कहानियाँ घूमती रहती हैं – कोई कहता है, वो मास्टरनी जी भूतनी हैं, तो कोई कहता है, वो सर तो बच्चों की कॉपी में से टॉफ़ी चुरा लेते हैं। Reddit पर आई इस कहानी के साथ भी शायद यही हो रहा है – बच्चों को मास्टरजी की हरकतें अजीब लग रही हैं, लेकिन असलियत में वे बस अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं।
फिर भी, सतर्क रहना जरूरी है – अगर कोई मास्टरजी बच्चों के साथ ज़रूरत से ज्यादा दोस्ती या अजीब हरकतें करें, तो बच्चों को भी समझाना चाहिए कि ऐसे मामलों में बड़ों को बताएं। लेकिन हर बार शक की सुई घुमाना भी सही नहीं – "हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती", यही कहावत यहां सही बैठती है।
निष्कर्ष: अपनी नजरें खुली रखें, लेकिन बेवजह की अफवाह से बचें
स्कूल की यादें हमेशा दिलचस्प होती हैं – कुछ मीठी, कुछ तीखी। Reddit की इस कहानी में भले ही बच्चों ने मास्टरजी पर शक किया, लेकिन कमेंट्स ने पूरी बात को हंसी-मज़ाक में बदल दिया। हमें भी चाहिए कि बच्चों की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें, लेकिन साथ में यह भी समझें कि कभी-कभी बच्चे अपनी कल्पना से भी कहानियाँ बना लेते हैं।
क्या आपके स्कूल में भी कभी कोई ऐसा मास्टरजी रहा है, जिनकी हरकतों पर बच्चों ने खूब चुटकुले बनाए हों? या किसी मास्टरनी को लेकर कोई अफवाह उड़ी हो? नीचे कमेंट में अपनी मजेदार स्कूल की यादें ज़रूर शेयर करें!
चलते-चलते – अगली बार जब स्कूल के लंच मॉनिटर मास्टरजी आपको घूरें, तो सोचिए, शायद वो भी ये सोच रहे हों – "इन बच्चों की शरारतें कब कम होंगी!"
मूल रेडिट पोस्ट: I am starting to think our lunch monitoring teacher might be a pedo