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स्कूल के दिनों की छोटी बदला-कहानी: जब मैंने अपनी क्रश की क्रश को ही अपना बना लिया!

एक लड़के की एनीमे चित्रण, जो एक लड़की को पसंद करने का नाटक कर रहा है, स्कूल के क्रश की याद दिलाते हुए।
इस मजेदार एनीमे शैली के चित्रण में, हमारा नायक स्कूल के क्रश के उतार-चढ़ाव का सामना करता है, उस लड़की के समान लड़के को पसंद करने का नाटक करते हुए जिसे वह secretly पसंद करता है। यह युवा शरारतों और प्यार के लिए की जाने वाली कोशिशों की एक हास्यपूर्ण याद दिलाता है!

स्कूल के दिनों की शरारतें और मन के उलझे से रिश्ते, कभी-कभी ऐसी कहानियाँ गढ़ जाते हैं जिन्हें याद कर के बरसों बाद भी हँसी आ ही जाती है। आज मैं आपको एक ऐसी ही नटखट बदला-कहानी सुनाने जा रही हूँ, जिसमें प्यार, जलन, और मन की चालाकी सब कुछ है – एकदम मसालेदार बॉलीवुड फिल्म जैसा ट्विस्ट!

जब क्रश की क्रश बन गई मेरी टारगेट

यह किस्सा उन दिनों का है जब स्कूल की पढ़ाई तो बस नाम की थी, असली लड़ाई तो दिलों के मैदान में लड़ी जाती थी। हमारी क्लास में 'निया' नाम की एक लड़की थी, जो दिखने में तो क्यूट थी, पर बातों में तीखी मिर्च जितनी तेज़। मुझे उस पर हल्का सा क्रश था – वैसे ही जैसे आमतौर पर स्कूल में हो जाता है।

पर निया का मूड स्विंग और रुखा बर्ताव देखकर मेरा दिल जल्दी उचाट हो गया। हम दोनों एक-दूसरे के लिए वैसे भी ज़्यादा अच्छे नहीं थे – दोनों toxic, दोनों नखरेबाज़। मैंने जल्दी ही आगे बढ़ने का मन बना लिया, पर किस्मत को शायद मेरी कहानी में और मसाला चाहिए था।

किस्मत का खेल: जब दिलचस्प ट्विस्ट आया

एक साल बाद पता चला कि निया को हमारे दोस्त के भाई पर क्रश है। मजे की बात यह थी कि उस भाई साहब को मुझ पर क्रश था! अब इसे कहते हैं असली 'कर्मा का खेल' – जैसे चूहे बिल्ली की दौड़ में बिल्ली खुद ही फँस जाए!

मुझे निया से बदला लेने का इतना मन था कि मैंने भी दिखावे के लिए उस लड़के में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी। मेरा असली मकसद तो निया की चाल को ही बिगाड़ना था – अपने मन की 'छोटी सी जीत' पाने के लिए।

माइंड गेम्स में जीत और आगे की कहानी

अब शुरू हुई असली 'दिमागी कुश्ती' – कौन किसको मात देगा! मैंने उस लड़के से दोस्ती बढ़ाई, बातें कीं, और निया को लगने दिया कि अब उसकी बारी नहीं आई। स्कूल के गलियारों में जब निया मुझे और उसे साथ देखती, उसके चेहरे की जलन साफ दिख जाती थी – जैसे किसी ने उसके पसंदीदा समोसे पर चटनी उलट दी हो!

आखिरकार, मैं अपनी चाल में सफल रही। मैंने लड़के को सच बता दिया कि मेरा उसमें कोई रोमांटिक इंटरेस्ट नहीं है। उसकी स्पोर्ट्समैनशिप की तो दाद देनी पड़ेगी – उसने हँसते हुए कहा, "कोई बात नहीं, दोस्ती में ही मज़ा है!"

कुछ साल बाद मैं शहर छोड़कर चली गई, पर आज भी सोचती हूँ कि वो लड़का कैसा होगा। वैसे, खुद की हरकतें याद कर के आज भी हँसी आ जाती है – सच में, उस वक़्त मैं सबसे बड़ी शैतान थी!

कम्युनिटी की राय: सबका अपना अंदाज़

रेडिट कम्युनिटी में इस कहानी पर खूब मजेदार कमेंट्स आए। एक यूज़र ने तो लिखा, "भाई, दोनों गोलियों से बच गया!" – यानी, निया और मैं, दोनों से ही वह लड़का 'बच' गया। भारत में हम ऐसे मौके पर कहते हैं, "बचपन में भगवान ने बचा लिया!"

एक और कमेंट था – "ये तो अगली लेवल की चालाकी थी, तुम गेम खेल ही नहीं रही थी, गेम को दो कदम आगे से खेल रही थी!" सच कहें तो, स्कूल लाइफ में ऐसे माइंड गेम्स कई बार देखने को मिलते हैं – कभी बेस्ट फ्रेंड के लिए, तो कभी खुद के एटीट्यूड के लिए।

कुछ पाठकों ने पूछा, "क्या लड़का या लड़की होना वाकई मायने रखता है?" – भारत में भी अक्सर लोगों को यह जानने की उत्सुकता होती है। असल में, कहानी की मस्ती और ट्विस्ट ही असली बात है। वैसे, कहानी की लेखिका ने बाद में खुद ही स्पष्ट किया कि "मैं लड़की हूँ और मैं LGBTQ+ कम्युनिटी से हूँ" – यानी प्यार, दोस्ती और बदमाशी में किसी सीमा-रेखा की ज़रूरत नहीं!

स्कूल लाइफ के माइंड गेम्स: हर किसी की अपनी कहानी

इस कहानी में कोई बड़ा सबक नहीं, बस वो मीठा-तीखा एहसास है जो हमें स्कूल के दिनों की यादों में खो जाने पर मिलता है। कभी-कभी छोटी-छोटी शरारतें ही जिंदगी के सबसे हँसमुख पल बन जाती हैं।

किसी ने सही कहा है – "स्कूल में किसका दिल किस पर आ जाए, और कब किसका दिल टूट जाए, ये तो मास्टरजी भी नहीं समझ सकते!"

आपकी क्या राय है?

क्या आपके स्कूल या कॉलेज में भी ऐसे माइंड गेम्स हुए हैं? आपने कभी किसी को ऐसा मजेदार 'प्यारा सा बदला' लिया है? नीचे कमेंट में अपनी कहानी जरूर साझा करें – क्या पता अगली बार आपकी कहानी पर भी हम हँसें!

चलते-चलते, ये याद रखिए – जिंदगी में कभी-कभी 'छोटी बदला-कहानियाँ' ही सबसे बड़ी हँसी छोड़ जाती हैं!


मूल रेडिट पोस्ट: The time I pretended to like the same boy as the girl I liked in school (I won)