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स्कूल केविन की अनोखी दुनिया: गाने, फ्यूरी आर्ट और फ्लैट-अर्थ के किस्से!

स्कूल में हर किसी को वो एक अजीब बच्चा याद रहता है, जिसके कारनामे चर्चा का विषय बन जाते हैं। वैसे तो “अलग” होना बुरा नहीं, लेकिन कभी-कभी कोई इतना आगे निकल जाता है कि बाकी सब हैरान रह जाते हैं। आज हम बात करेंगे केविन की, जिसने गजब की क्रिएटिविटी, बेमिसाल आत्मविश्वास और थोड़ी-बहुत ‘केविनगिरी’ के साथ अपनी अलग ही दुनिया रच डाली।

स्कूल का वेटलिफ्टिंग रूम और केविन के ऊंचे सुर

हमारे स्कूलों में अक्सर पीटी क्लास में सब बच्चे या तो खेलते दिखते हैं या फिर चुपचाप वर्कआउट करते हैं। पर केविन? जनाब ने तो वेटलिफ्टिंग रूम को अपना स्टेज बना लिया था! एकदम छोटे से रूम में, जहाँ आधे बच्चे मशीनों पर पसीना बहा रहे थे, केविन ‘Hazbin Hotel’ पर आधारित ऐसे-ऐसे गाने पूरे सुर में गाते कि सुनने वालों के कान लाल हो जाएँ।

गाने भी वैसे नहीं जो आप स्कूल में सुनना चाहें — इनमें तो सबकुछ था, जो स्कूल के माहौल के बिल्कुल खिलाफ था। कई बार तो बच्चे खुद जाकर केविन से बोलते – “भैया, बस करो!” लेकिन केविन पर कोई असर नहीं। सबको असहज देखकर भी वे मस्त गाते रहे।

एक कमेंट में किसी ने बिल्कुल सही लिखा, “अजीब बच्चे तो हर जगह होते हैं, लेकिन केविन का लेवल ही अलग है!” (जैसे हमारे यहाँ कहा जाता है – ‘ऊँट के मुँह में जीरा’!)

आर्ट क्लास में फ्यूरी आर्ट का कमाल

स्कूल की आर्ट क्लासों में बच्चों को अपनी कलात्मकता दिखाने का मौका मिलता है। लेकिन केविन ने जो किया, वह किसी हिंदी सीरियल के ट्विस्ट से कम नहीं था। फाइनल प्रोजेक्ट मिला – मशहूर कलाकार Louise Bourgeois की एक कृति को नए माध्यम में पेश करना और उनके स्टाइल पर एक शोध निबंध लिखना।

निबंध उन्होंने लिखा या नहीं, किसी को नहीं पता। लेकिन प्रजेंटेशन में जो दिखाया, उससे तो क्लास की आँखें खुली की खुली रह गईं! Louise की ‘Nana’ मूर्तियों को केविन ने फ्यूरी अंदाज में, और वो भी बड़े ही ‘संकेतात्मक’ पोज़ में बना डाला। सोचिए, आर्ट क्लास में ऐसा प्रोजेक्ट आ जाए तो टीचर के भी पसीने छूट जाएँ! एक कमेंट करने वाले ने सवाल उठाया – “टीचर ने टोका नहीं क्या?” असलियत ये थी कि स्कूल में, कई बार टीचर बच्चों को 'अलग' मानकर सीरियसली नहीं लेते – और केविन इसका पूरा फायदा उठाते रहे!

फ्लैट-अर्थ की बहस: केविन का विज्ञान

अगर आपको लग रहा है कि केविन की दुनिया यहीं खत्म हो गई, तो ठहरिए! विज्ञान के मैदान में भी उनकी सोच कुछ अलग थी। केविन पूरी ईमानदारी से मानते थे कि पृथ्वी सपाट है – यानी गोल नहीं! उनकी दलील? “मैं कभी गाँव नहीं गया, न ही कभी दूर-दूर तक समतल खेत देखे, तो मुझे कौन समझाए कि धरती गोल है!”

क्लास में कई बार बहस छिड़ जाती। केविन तर्क देते – “लोगों ने धरती के दूसरी ओर खुदाई की है, और सरकार हमसे ये बात छुपा रही है।” कोई समझाए, तो और बहस! एक यूज़र ने कमेंट किया – “प्राचीन लोग नंगी आँखों से धरती का आकार समझ गए, पर केविन के पास इंटरनेट होते हुए भी कुछ नहीं समझ पाए।”

एक और कमेंट में लिखा था – “समस्या ये है कि केविन को ये भी नहीं पता कि वे कितने गलत हैं।” बिलकुल वही बात, जो हमारे यहाँ अक्सर सुनते हैं – ‘अधजल गगरी छलकत जाए’।

‘अलग’ और ‘अजीब’ में फर्क

कई बार लोग समझते हैं कि ऐसे बच्चों को टोकना या उनकी शिकायत करना ‘बुलीइंग’ है। लेकिन इस कहानी के लेखक ने खुद कहा – “मैं भी अजीब था, पर हर जगह और समय की एक मर्यादा होती है।”

दरअसल, स्कूल में ‘अलग’ होना बुरा नहीं, लेकिन दूसरों की असुविधा को नजरअंदाज करना, चाहे वो ऊँचे सुर में गीत हों या अजीब आर्ट प्रोजेक्ट, ये सही नहीं। कई कमेंट्स में यूज़र्स ने यही महसूस किया – “केविन जैसे बच्चों के लिए स्कूल भी एक सीखने की जगह है, वरना अति आत्मविश्वास उन्हें दूसरों से काट देता है।”

निष्कर्ष: आपकी क्लास का केविन कौन है?

हर स्कूल-कॉलेज में एक ‘केविन’ जरूर होता है – कोई अपने ही रंग में, अपनी ही दुनिया में मस्त। कभी-कभी उनकी हरकतें बेमतलब लगती हैं, तो कभी वे हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं – आखिर समाज की मर्यादा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सीमाएँ कहाँ तक हैं?

आपके स्कूल या कॉलेज में भी कोई ऐसा किरदार रहा है क्या? जिसने अपनी अजीब आदतों से सबका ध्यान खींचा हो? कमेंट में जरूर बताइए – और हाँ, अगली बार जब आपको केविन जैसा कोई मिल जाए, तो उसकी दुनिया को समझने की कोशिश जरूर करें, पर साथ ही सही-गलत का फर्क भी याद रखें!


मूल रेडिट पोस्ट: Singing Furry Art Kevin