साइबर सुरक्षा की जुगाड़ू यात्रा: जब बॉस बना ‘कंट्रोल फ्रीक’ और ट्रक ड्राइवर ने समझा ‘इंफ्लूएंसर’
एक बात तो माननी पड़ेगी, आजकल की टेक्नोलॉजी वाली नौकरियों में रोमांच की कोई कमी नहीं है। आप सोचते होंगे कि साइबर सिक्योरिटी कंसल्टेंट का काम बस लैपटॉप के पीछे बैठना, स्क्रीन पर कोडिंग करना और कॉफी पीना है। लेकिन जनाब, असलियत में तो ये नौकरी मसाला फिल्मों की तरह है – कभी हेलिकॉप्टर की छाया में वीडियो कॉल, कभी खेतों के किनारे ट्रक के पास रेडियो पकड़े भागना, और कभी कॉर्पोरेट की मीटिंग में समझदारी की चटनी लगाना!
यात्रा में रोमांच: देसी जुगाड़ और बेमिसाल नजारे
हमारे नायक – मान लीजिए उनका नाम अनुपम है – एक साइबर सिक्योरिटी कंसल्टेंट हैं, जो कंसास की सैर पर निकले हैं। रास्ते में दो क्लाइंट प्रोजेक्ट्स के लिए वाई-फाई और ब्लूटूथ नेटवर्क की जांच कर रहे हैं, और साथ में कंपनी की ऑनलाइन मीटिंग का भी झंझट झेल रहे हैं। अब सोचिए, गांव के एक पुराने VFW (यानी वेटरन क्लब) के बाहर खड़े होकर वीडियो कॉल कर रहे हैं, और पीछे एक डीकमिशंड अटैक हेलिकॉप्टर कॉलम पर टंगा हुआ है। मीटिंग में सबकी निगाहें अनुपम पर, लेकिन हेलिकॉप्टर की वजह से सबको लग रहा है कोई बड़ा अधिकारी मिशन पर है!
30 मिनट की मीटिंग में बस इतना ही बोलना पड़ा – “दोनों प्रोजेक्ट समय पर चल रहे हैं।” उसके बाद हमारी देसी जेम्स बॉन्ड जी ट्रैफिक पार करके आगे बढ़ गए।
ऑफिस पॉलिटिक्स: जब नया बॉस बोझ बन गया
कहते हैं, बड़े-बड़े शहरों में छोटी-छोटी बातें होती रहती हैं। यही हाल अनुपम के ऑफिस का था। कंपनी ने हाल ही में ‘दीदी और गोगो’ नाम की छोटी फर्म को खरीद लिया था, ताकि बड़े प्रोजेक्ट्स मिल सकें। अब इन दोनों ने सारी जिम्मेदारियों का बोझ हमारे हीरो पर डाल दिया – “आज ही प्रपोजल बना दो, बहुत जरूरी है!”
अनुपम भाई का जवाब तो मजेदार था – “भाई, मैं तो पहले से बुक हूं। जैनप से बात करो, वही एक्सपर्ट है।” लेकिन बॉस लोग हैं, समझेंगे कैसे! इतना गुस्सा आया कि आधी भरी कॉफी गाड़ी के शीशे और सीट पर फेंक दी। अब कॉफी क्लीनिंग करते-करते दिमाग भी क्लीन हो गया। आखिरकार, जैनप को ईमेल कर दी, और आगे का रास्ता पकड़ लिया।
देसी ‘हैकिंग’ और एक ट्रक ड्राइवर का मजेदार सामना
रास्ते में बारिश होने लगी, तो एक रेस्ट स्टॉप पर रुकना पड़ा। वहां एक सफेद ट्रक देखा, जिस पर वह कंपनी का नाम लिखा था, जिसके नेटवर्क की खोज में थे। अब देसी जुगाड़ शुरू – लैपटॉप, हैकिंग डिवाइस ‘पोर्टापैक’ (जो देखने में 70 के दशक के सोवियत आइपॉड जैसा), मुंह में केबल दबाए, ट्रक के पास घूम रहे थे।
इसी बीच ट्रक ड्राइवर की आवाज़ – “क्या कर रहे हो मेरी ट्रक के साथ?” अब क्या जवाब दें? सच बोलें तो पागल समझेगा! झट से बोले – “भैया, मैं इंफ्लूएंसर हूं!” ड्राइवर गुस्से की बजाय उदास हो गया, और अनुपम भी वहां से फुर्र हो लिए। एक कमेंटबाज ने बढ़िया लिखा – “आजकल सच बोलना कम खतरनाक है या इंफ्लूएंसर बनना? दुनिया सच में बदल गई है!”
कार्पोरेट ड्रामा: जब CEO को आईना दिखा दिया
अब असली मज़ा तो कंसास के लक्ज़री होटल में हुआ, जहाँ टेबल-टॉप एक्सरसाइज (यानी नकली साइबर इमरजेंसी का रिहर्सल) चल रही थी। VCs और सीनियर मैनेजर्स सब इकट्ठा, और हर कोई किसी काल्पनिक SaaS कंपनी SimuKorp के रोल में।
टीम के किरदार भी गजब – एक CEO जो हर चीज़ पर हावी, एक CTO जो “डॉक्युमेंटेशन क्यों करना” वाली सोच लिए, एक लीगल काउंसल जो असलियत में CTO ही है, और दो-चार ऐसे लोग जिन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा।
सिचुएशन आई – ग्राहक का डेटा खुले सर्वर पर लीक हो गया। सबको मिलकर समाधान निकालना था, लेकिन CEO साहब ने अकेले ही सब सुलझाने की कोशिश कर दी और मामला गड़बड़ हो गया। ब्रेक में CEO बोले – “ये तो सब काल्पनिक है, असल में ऐसा हो ही नहीं सकता। हमारे पास तो पूरी सुरक्षा है!”
अब एक कमेंटबाज की याद आ गई – “जो कहे हमारे पास पूरी सुरक्षा है, उसे ‘डिफेंस इन डेप्थ’ का मतलब समझाना पड़ता है।” अनुपम ने भी तड़ाक से पूछ लिया – “चार्ली, तुम्हारे 25 साल के करियर में ऐसा कुछ हुआ है?” चार्ली बोले – “हां, और LawTechie (यानी अनुपम) की टीम काफी टेक्निकल है।” CEO की बोलती बंद!
टेक्नोलॉजी की दुनिया: गलती इंसान से ही होती है
एक पाठक ने बहुत सही लिखा – “डाटा चोरी सबसे बेवकूफी वाले तरीके से ही होती है – जो आप सोच भी नहीं सकते।” चाहे बड़ी कंपनी हो, चाहे सरकारी दफ्तर – एक छोटी सी गड़बड़ी से पूरा सिस्टम फेल हो जाता है। जैसे एक बार यूट्यूब का व्यू काउंटर 2^32 पर फंस गया था – किसी ने सोचा भी नहीं होगा!
हमारे देसी ऑफिसों में भी कुछ ऐसा ही होता है – “इतना तो कभी नहीं होगा” वाले लोग सबसे ज्यादा फंस जाते हैं। एक कमेंट में किसी ने लिखा – “32-बिट काउंटर से डर कर उसे 64-बिट में बदल दिया, बॉस बोला – पागल हो क्या?” लेकिन वही दूरदर्शिता बाद में बचाती है।
अंत में: सीख और मुस्कान
आखिरकार, सबकी मीटिंग खत्म हुई, लोग दोस्त बन गए, और CEO साहब भी मान गए कि टेक्नोलॉजी में गलती की कोई गारंटी नहीं होती। क्लाइंट खुश, कंपनी खुश, लेकिन असली जीत उस देसी जुगाड़ू कंसल्टेंट की, जिसने कॉफी से लेकर कोड तक, हर चीज़ में अपना जलवा दिखाया।
तो दोस्तों, अगली बार जब ऑफिस में कोई बोले – “हमारे यहां तो ऐसा कभी नहीं होता,” तो बस मुस्कुरा कर याद कर लेना कि टेक्नोलॉजी और जिंदगी – दोनों में गड़बड़ी कहीं से भी आ सकती है!
आपके पास ऐसी कोई मजेदार ऑफिस या टेक्नोलॉजी की कहानी है? कमेंट में जरूर बताइए! और हां, अपने ‘इंफ्लूएंसर’ दोस्तों को जरूर शेयर करें – कौन जाने, अगली बार वे भी किसी ट्रक ड्राइवर को चौंका दें!
मूल रेडिट पोस्ट: This is my job! I'm actually paid to do this, Conclusion