शोर का जवाब शोर से: हॉस्टल में जब प्रॉक्टर ने RA को उनकी ही भाषा में जवाब दिया
कॉलेज का हॉस्टल... यहाँ हर कमरे के बाहर एक अलग कहानी चलती रहती है। कोई पढ़ाई में मग्न तो कोई दोस्ती-यारी में मशगूल। लेकिन जब पड़ोसी कमरे से लगातार हंसी-ठहाके और शोरगुल की आवाज़ें आती रहें, तो पढ़ाई में मन लगाना किसी तपस्या से कम नहीं। ऐसे में अगर आप सीधे-सपाट बोलने से बचते हों, तो क्या करेंगे? आज की कहानी कुछ ऐसी ही है—जहाँ एक प्रॉक्टर ने RA (रिज़िडेंट असिस्टेंट) के शोर का जवाब उन्हीं के अंदाज़ में दिया।
हॉस्टल की ड्यूटी, पढ़ाई की मुश्किल
सुनिए, ये कहानी है नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के एक प्रॉक्टर की, जो हॉस्टल में ड्यूटी करता है। प्रॉक्टर का काम होता है—चार-चार घंटे की शिफ्ट में रिसेप्शन डेस्क पर बैठना, सुरक्षा की देखरेख और साथ में अपनी पढ़ाई भी करना। अब ज़रा सोचिए, जिस कमरे के ठीक सामने आपकी डेस्क हो, वहां RA की टोली—यानि हॉस्टल के बड़े भाई-बहन टाइप लोग—लगातार शोर मचाए जा रहे हों, तो क्या हाल होगा?
कई बार RA लोग इस हद तक लाउड हो जाते थे कि लगता था, हॉस्टल उनका ही है। कभी जोर-जोर से हँसी, कभी बहस, कभी खुली मीटिंग—और दरवाज़ा हमेशा खुला! बेचारे प्रॉक्टर साहब को शुरुआत में लगा, छोड़ो... आदत हो जाएगी। लेकिन एक शाम तो हद ही हो गई। RA लोग पढ़ाई के बहाने ज़ोरदार गपशप में लगे थे। प्रॉक्टर ने बहुत कोशिश की कि ध्यान न भटके, लेकिन आखिरकार सब्र का बांध टूट ही गया।
जब शांति की उम्मीद शोर में डूब गई
अब यहाँ दो तरह के लोग होते हैं—एक वो जो सीधा जाकर बोल दें, "भैया, ज़रा धीरे बोलो या दरवाज़ा बंद कर दो।" और दूसरे, जो टकराव से बचते हैं, लेकिन अपनी बात किसी और ढंग से कहते हैं। हमारे प्रॉक्टर साहब दूसरे वाले थे। उन्होंने न RA को टोका, न कोई शिकायत की। बल्कि, अपनी लैपटॉप खोली और पूरी आवाज़ में फ़िल्म चला दी!
मज़ा देखिए—पाँच मिनट के भीतर RA की मीटिंग पटरी से उतर गई और दरवाज़ा बंद हो गया। प्रॉक्टर के चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई—"लो, बात बन गई!" खुद मानते हैं कि ये तरीका बचकाना था, लेकिन कभी-कभी बिना बोले भी बहुत कुछ कह दिया जाता है।
Reddit पर मचा धमाल: लोगों की राय और मजेदार अनुभव
इस कहानी पर Reddit पर भी खूब चर्चा हुई। एक पाठक ने अपने कॉलेज के दिनों का किस्सा सुनाया—"हमारे हॉस्टल वाले रात में खूब शोर मचाते थे। मैंने सुबह-पाँच बजे उन्हें बार-बार फोन कर-करके उनकी नींद खराब कर दी। राहत तो मिली, पर मज़ा भी आया!" अब बताइए, ये तो वही बात हुई—'जैसा करोगे, वैसा भरोगे'।
कई लोगों ने सलाह दी कि ऐसे मामलों में खुलकर बात करना चाहिए—"सीधे बोल दो, 'भाई, मैं बाहर पढ़ रहा हूँ, दरवाजा बंद कर दो या आवाज़ कम करो।'" एक और पाठक ने हँसते हुए जोड़ा, "अगर सीधा बोलना न हो पाए, तो अगली बार किसी हिंदी फिल्म का तगड़ा डायलॉग या ढोल-नगाड़े बजा देना।"
कुछ लोग चिंता भी जता रहे थे कि नौकरी की जगहों से जुड़ी बातें ऑनलाइन शेयर करना खतरे से खाली नहीं। "कम जानकारी दो, वरना पहचान में आ जाओगे," किसी बुज़ुर्ग Reddit यूज़र ने सलाह दी। ये बात भारत के संदर्भ में भी सही बैठती है—यहाँ भी लोग कहते हैं, "अरे, ज़्यादा बताओगे तो कोई नुकसान न कर दे!"
एक मजेदार कमेंट में तो किसी ने कहा, "अगर बचकाना हरकतें ही करनी हैं, तो सुपरग्लू से दरवाजा ही बंद कर दो!" अब ये तो हद ही हो गई, लेकिन पढ़ने में मज़ेदार जरूर है।
क्या कभी आपने भी ऐसा किया है?
कई बार हमारे देश के हॉस्टलों, पीजी या दफ्तरों में भी ऐसे वाकये होते हैं। कोई देर रात फोन पर जोर-जोर से बात करता है, कोई गाने बजा-बजाकर सबका दिमाग खराब कर देता है। तब कई लोग या तो ईयरप्लग लगा लेते हैं, या फिर खुद भी टीवी या मोबाइल पर फुल वॉल्यूम में कुछ चला देते हैं।
हमारी संस्कृति में अक्सर टकराव से बचने की प्रवृत्ति दिखती है—"क्या बोलना, बुरा मान जाएगा..." लेकिन कई बार चुप्पी से बात नहीं बनती। ये कहानी बताती है कि शांति से, या कभी-कभी थोड़ा 'पेटी रिवेंज' लेकर भी अपनी बात रखी जा सकती है।
निष्कर्ष: अपनी आवाज़ उठाना ज़रूरी है
तो साथियों, कहानी से एक बात तो साफ है—चाहे हॉस्टल हो या दफ्तर, सम्मान और शांति हर जगह जरूरी है। अगर कोई दिक्कत हो, तो हिम्मत करके विनम्रता से कह देना सबसे अच्छा तरीका है। और अगर सामने वाला समझदार निकले, तो मामला वहीं सुलझ जाता है। लेकिन कभी-कभी, जब सब्र जवाब दे जाए और बात सीधी न बन पाए, तो 'शोर का जवाब शोर से' भी बुरा नहीं—बस, हद में रहे!
अब आपकी बारी—क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? क्या आपने कभी शोरगुल का जवाब अपने अंदाज़ में दिया है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा करें। और हाँ, अगली बार हॉस्टल में शांति भंग हो, तो सोच-समझकर ही 'पेटी रिवेंज' अपनाएँ!
मूल रेडिट पोस्ट: Fought noise with noise to get loud RAs to close their door